चुनाव के आखिरी दो दिनों में कई गुना राशि बंट जाती है, यह भारतीय चुनाव है यहाँ सब जायज़ है
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चुनाव के आखिरी दो दिनों में कई गुना राशि बंट जाती है, यह भारतीय चुनाव है यहाँ सब जायज़ है

Image result for black money for election    नई दिल्ली।। चुनाव आयोग ने भले ही इस बार विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए खर्च की सीमा 24 लाख रुपये तय की हो लेकिन वास्तव में आखिरी दो दिनों में इससे कई गुना राशि बंट जाती है। कैश के अलावा लाखों रुपये की शराब भी बहाई जाती है। कई इलाकों में तो यह रकम करोड़ों में भी पहुंच जाती है। विधानसभा का पिछला चुनाव लड़ चुके कुछ उम्मीदवारों ने एनबीटी को बताया कि चुनाव आयोग की खर्च सीमा तो कागजी ही है, वास्तविक खर्चा इससे कई गुना ज्यादा है। यह उम्मीदवार की हैसियत पर निर्भर करता है कि वह कुल कितना खर्च कर सकता है, लेकिन 24 लाख रुपये में तो चुनाव लड़कर जीत लेना टेढ़ी खीर ही है। पिछला चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ने वाले नेता ने बताया कि यों तो पूरे चुनाव के दौरान ही शराब की मांग बनी रहती है लेकिन आखिरी दो रातों में इसकी सप्लाई करना बहुत जरूरी हो जाता है। महंगी स्कॉच भी कुछ इलाकों में भेजी जाती है लेकिन आमतौर पर 300 रुपये बोतल तक की शराब अधिक प्रचलन में होती है। शराब बांटने का काम पार्टी के विश्वसनीय लोग ही करते हैं। 
    उन पॉकेट की लिस्ट बना ली जाती है, जहां शराब बांटी जानी है। झुग्गी बस्तियों या पुनर्वास कॉलोनियों में आमतौर पर हरियाणा या राजस्थान से लाई गई शराब भेजी जाती है। इन पर टैक्स अदा नहीं होता और उम्मीदवार को वह सस्ती मिल जाती है। अंग्रेजी शराब के लिए भी जुगाड़ किया जाता है। आर्मी की शराब भी मंगाई जाती है। उक्त नेता का मानना है कि शराब और पैसे का चलन बीजेपी की तुलना में कांग्रेस में ज्यादा है, लेकिन बीजेपी में भी इसके बिना चुनाव पूरा नहीं होता। इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि जिस तबके के लिए शराब और पैसा मांगा जा रहा है, वह उन तक पहुंच ही जाएगा लेकिन यह उम्मीदवार की बेबसी होती है कि वह अपनी पार्टी के लोगों की डिमांड की अनदेखी नहीं कर सकता। 
     मसलन, पिछले चुनाव में झुग्गी बस्ती के एक प्रधान ने आकर कहा कि उसके पास 500 वोट हैं तो उसे एक लाख रुपये दे दिए गए। इसी तरह चार पेटी शराब की मांग भी पूरी कर दी गई। उस प्रधान के पास इतने वोट हैं या नहीं, इसकी पुष्टि पार्टी के वर्कर ही करते हैं। नेता ने माना कि अक्सर उनसे धोखा भी किया जाता है और वास्तव में झुग्गी क्लस्टर में न तो उतने वोट होते हैं और न ही उन तक यह पैसा और शराब पहुंचाई जाती है। कई वर्कर शराब अपने घर पहुंचा देते हैं और फिर सालों तक उसका सेवन करते हैं। पिछली बार आम आदमी पार्टी का चुनाव लड़ चुके एक नेता ने माना कि उसने चुनाव जीतने के लिए शराब तो नहीं बांटी, लेकिन पैसे की मांग पूरी करनी पड़ी। 
    उनका भी कहना है कि जो शराब बांटी जाती है, उसमें से 70 फीसदी उन लोगों तक नहीं पहुंचती, जिनके लिए वह वसूल की जाती है लेकिन उम्मीदवार के लिए इसके अलावा और कोई रास्ता ही नहीं बचता। पैसा तो वोट खरीदने के लिए दिया ही जाता है लेकिन लाखों रुपये तो पार्टी वर्करों को वोटिंग के दिन काम करने के लिए दिए जाते हैं। इसका भुगतान प्रति पोलिंग स्टेशन के हिसाब से होता है। हर पोलिंग स्टेशन का एक इंचार्ज होता है और उस इंचार्ज को राशि दी जाती है ताकि पोलिंग के दिन बैठे वर्करों के खान-पान का इंतजाम कर सके। हालांकि यह उम्मीदवार की ड्यूटी होती है कि हर पोलिंग स्टेशन में सुबह का नाश्ता, दोपहर का लंच और शाम की चाय पहुंचाए, लेकिन यह राशि उसके अलावा होती है ताकि कुछ आवश्यकता पड़े तो पोलिंग स्टेशन इंचार्ज को इधर-उधर न ताकना पड़े।
    बीजेपी में हर पोलिंग स्टेशन के इंचार्ज को 2 हजार रुपये दिए जाते हैं यानी 200 पोलिंग स्टेशन हैं तो चार लाख रुपये तो पोलिंग से पहली रात को बांटना ही पड़ता है। कांग्रेस में यह राशि ज्यादा है। आप के उम्मीदवार को भी यह राशि तो खर्च करनी ही पड़ती है। पिछला चुनाव लड़ चुके आप के उम्मीदवार ने बताया कि उसने प्रत्येक पोलिंग स्टेशन इंचार्ज को 5 से 10 हजार रुपये बांटे थे और कुल बांटी गई राशि 5 लाख रुपये से ज्यादा थी। पैसे और शराब बांटने का काम चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद शुरू होता है और पोलिंग से पहले वाली रात को करीब एक बजे तक जारी रहता है। उम्मीदवारों ने माना कि शराब और पैसे के बिना तो पार्टी के वर्कर भी हिलने को तैयार नहीं होते। एक उम्मीदवार की पत्नी ने टिप्पणी की कि उनके पति ने चुनाव तो लड़ा लेकिन आखिरी दिनों की लूटमार देखकर वह हैरान रह गई थीं।