लक्ष्मी तरु जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है एक पौधा ऎसा है जो कि हर मायने में इतना बड़ा वरदान है कि इससें लक्ष्मी की वृष्टि होती है। इस पादप को भारत वर्ष में पनपाया जा रहा है। इस पौधे का हर अंग कीमती है। यह पौधा धरती का कल्पवृक्ष ही कहा जा सकता है। असंख्य उपयोग वाले इस पौधे को अधिक से अधिक लगाकर आर्थिक व सामाजिक तरक्की में नये आयाम पाए जा सकते हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि लक्ष्मी तरु (Simarouba Glauca) के बारे में व्यापक प्रचार प्रसार कर इसे बढ़ावा दिया जाए।
देश भर में हो रहा प्रचार
श्री श्री कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान बैंगलोर ने भारत में लाखों की संख्या में लक्ष्मी तरु पौधे लगाने की परियोजना शुरू की है। लक्ष्मीतरु के वृक्षारोपण की यह महत्त्वाकांक्षी योजना श्रीश्री रविशंकरजी के आशीर्वाद से प्रारम्भ की गई है। देश के विभिन्न स्थानों पर हजारों की संख्या में लक्ष्मी तरु के पौधे लगाने का संकल्प साकार हो रहा है।
बहुद्देशीय उपयोग से भरा है यह अनूठा पेड़
यह एक खाद्य तेल वाले बिज का पेड़ है जो गर्म आद्र्रए ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह 10.40 डिग्री तापक्रम के मध्य अनुकूल है। यह पेड़ अब भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है। इसे बंजर एवं बेकार भूमि में विकसित किया जा सकता है।
लक्ष्मीतरु एक दृढ़ किस्म का पौधा हैए सभी तरह की जमीन तथा मिट्टी में उगाया जा सकता है। लक्ष्मीतरु 400 मिमी वार्षिक वर्षा के क्षेत्र में पनपता है। यह पदाउन्नत मिट्टी (degraded soil) तथा अपशिष्ट भूमि में विकसित हो सकते है। यह पशुओं गायए भेड, बकरी द्वारा नहीं खाया जाता है। इसकी बडी मात्रा में घनी पत्तियां होती हैंए जो गिरने पर मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाती हैं। घना पेड़ सूरज की गर्मी से मिट्टी को बचाता है। इसके बीज में 65 प्रतिशत खाद्य तेल होता है। इसका फल खाद्यए मीठा व रसदार है। इसके सभी भागों में औषधीय गुण हैं।
इसका जीवन 70 वर्ष है। इसकी लकड़ी दीमक प्रतिरोधी है तथा इसमें किट व कीड़े नहीं लगते हैं। इसकी लम्बी जडे, मिट्टी के कटाव को रोकती है। इसके पीले फूल आते हैं एवं अण्डाकार बैंगनी रंग के फल आते हैं। यह सदाबहार पेड़ है। लक्ष्मीतरु की एक हेक्टर से 4 टन बीज तथा 2 से 6 टन तेल आर 1.4 टन खल (केक) निकलती है। इसमें 60 से 75 प्रतिशत तक तेल हैए जिसे परम्परागत तरीके से निकाला जा सकता है। एक पेड़ से 15 से 30 किलो बीज तथा ढाई से पाँच किलोग्राम तक तेल व 2.5 से 5 कि.ग्रा. केक प्राप्त होता है।
एक हेक्टर से प्रतिवर्ष 1000 से 2000 किण्ग्राण् तेल प्राप्त होता है। यह तेल बेकरी उत्पाद कार्य में काम आता है। यह आईल सीड केक के सर्वरेष्ठ पीके वैल्यू का है। इसका तेल वनस्पति घी व खाद्य तेल बनाने में काम आता है। यह तेल कोलेस्ट्रोल से मुक्त होता है। यह तेल जैविक ईंधन, साबुन, डिटर्जेन्ट, स्नेटक, वार्निश, कॉस्मेटिक तथा दवाईयां आदि बनाने में काम आता है। बीज की खल (ओईल केक) में 8 प्रतिशत नाईट्रोजन, 1.1 प्रतिशत फास्फोरस तथा 1.2 प्रतिशत पोटाश है जो कि एक अच्छा कार्बनिक खाद्य है।
बीज का खोल लकड़ी के बोर्ड बनाने व ईधन में व कोयला बनाने में काम आता है। फल के रस में 11 प्रतिशत शक्कर होने से मीठा पेय है तथा उद्योग में काम आता है। फल.फूल तथा पत्तियों से सस्ता वर्मी कम्पोस्ट बनता है। इसकी पैदावार 8 टन प्रति हेक्टर प्रतिवर्ष है। इस पौधे की लकड़ी फर्नीचरए खिलौनेए माचिस आदि वस्तुएं बनाने तथा लकड़ी की लुगदी बनाने के काम में आती है।
ग्रामीण क्षेत्र में एवं जडी-बूटी में उपयोग
यह पौधा प्राकृतिक औषधीय है। स्वदेशी भारतीय जनजातियां इसकी छाल से मलेरिया व पेचिश एवं प्रभावी उपचार में इस्तेमाल करते हैं। दक्षिणी अमेरिका में लक्ष्मीतरु की छाल का बुखार, मलेरिया, पेचिस को रोकने व रक्तचाप को रोकने में टॉनिक के रूप प्रयोग किया जाता है।
दवाइयों में उपयोग
इसकी पत्तियों और कोमल टहनियों को उबाल कर काढ़ा बनाया जाता है जो केंसरए अल्सर सहित कई प्रकार की बीमारियों के काम आता है।
जरूरी है अधिकाधिक रोपण
लक्ष्मी तरु की बहुआयामी खासियतों को देखते हुए इस पौधे का अधिक से अधिक रोपण व फसल की तरह उत्पादन किए जाने पर बल दिया जाना चाहिए। इससे सामाजिक एवं आर्थिक स्वावलम्बन को मजबूती दी जा सकती है। इसके साथ ही लक्ष्मी तरु के फायदों के बारे में भी व्यापक जन जागरण किया जाना जरूरी है ताकि लोग इसे अपने.अपने क्षेत्रों में व्यापक ढंग से अपना सकें।
(डॉ. दीपक आचार्य)
(डॉ. दीपक आचार्य)