क्या कहे बस .... "दुर्भाग्य है इस देश का"
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क्या कहे बस .... "दुर्भाग्य है इस देश का"

    टाटा का नैनो production project भी ममता ने किसानों के हितों या अपने राजनीतिगत हितों को ध्यान में रखकर रुकवा दिया था। वही टाटा का उक्त प्लांट गुजरात चला गया। जिससे गुजरातियों को रोजगार मिला। Plant के आस-पास की जमीन के दाम भी रातों - रात बढ़ गए। साथ ही गुजरात मे खुशहाली भी आ गई।
    दूसरी और बंगाल में क्या हुआ ममता की सरकार तो बन गई लेकिन किसान बद से बदतर स्थिति में पहुँच गया। कई किसानो ने अत्महत्या कर ली क्योंकि उनके बच्चे टाटा के गुजरात जाने से बेरोजगार हो गए। बंगाल में बदहाली आ गई।

   क्या इसका सीधा सा मतलब यह है की कुछ नामी चुंनिंदा सामाजिक कार्यकर्त्ता सामाजिक हित के नाम पर उन  नेताओं की जमात है, जिन्हें देश और देश के विकास से कोई सरोकार नहीं, सरोकार है तो बस किसी तरीके से देश की सत्ता पर काबिज रहना।  "दुर्भाग्य है इस देश का"