उच्च शिक्षा का बजट बढ़ा, लेकिन गुणवत्ता वही : वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
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उच्च शिक्षा का बजट बढ़ा, लेकिन गुणवत्ता वही : वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में हुआ खुलासा

गुणवता बढ़ाने के लिए नहीं हुए कोई प्रयास
    भोपाल।। पिछले पांच सालों में प्रदेश में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए बजट में काफी वृद्धि हुई, लेकिन गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हुआ। शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के लिए कोई प्रयास तक नहीं किए गए। प्रदेश की शैक्षणिक व्यवस्थाओं में गवर्नेंस की कमी तो है ही, टीङ्क्षचग स्टाफ भी जरूरत से 30 फीसदी कम है। यह खुलासा हुआ है वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट में। उच्च शिक्षा के विकास के लिए प्रदेश सरकार को करीब 3600 करोड़ का ऋण दे रहे वल्र्ड बैंक ने हायर एजुकेशन क्वालिटी इंप्रूवमेंट प्रोजेक्ट नाम से रिपोर्ट जारी की है। इसमें हायर एजुकेशन की कमियां गिनाई गईं हैं। आईआईएम इंदौर सहित अन्य संस्थाओं के सहयोग से तैयार की गई इस रिपोर्ट पर वल्र्ड बैंक ने सभी से सुझाव मांगे हैं। सुझाव मिलने के बाद रिपोर्ट को बोर्ड के सामने रखा जाएगा। पिछले दो सालों से उच्च शिक्षा में गुणवत्ता वर्ष मना रहे हायर एजुकेशन डिपार्टमेंट के लिए यह रिपोर्ट चौंकाने वाली है। रिपोर्ट में पूरे सिस्टम पर ही सवाल उठाए गए हैं।
     उच्च शिक्षा के सिस्टम में कमियां गिनाते हुए कहा कि उच्च शिक्षा में गवर्नेंस, लीडरशिप और जिम्मेदारी की कमी है। ऑटोनॉमी की कमी होने के कारण मैनेजमेंट स्तर पर फैसले लेने का अधिकार नहीं है। एक यूनिवर्सिटी से करीब सौ कॉलेज संबद्ध हैं जहां एक जैसा व्ॉसरीकुलम चलता है। प्रदेश की उच्च शिक्षण संस्थाओं, उच्च शिक्षा विभाग, यूजीसी और एआईसीटीई के बीच को-ऑर्डिनेशन की कमी है। क्वालिटी एश्योरेंस की प्रक्रिया काफी कमजोर है या फिर है ही नहीं। पांच प्रतिशत से भी कम कॉलेज नैक से एव््रोसडिटेड हैं। कुलपति, टीङ्क्षचग और नॉन टीचिंग स्टाफ का सिलेक्शन राजनीति से प्रेरित होता है। एक तिहाई छात्र निजी कॉलेजों में पढ़ते हैं लेकिन प्रदेश शासन से उन्हें कोई आॢथक सहायता नहीं मिलती है। बताया गया है कि, प्रदेश का हायर एजुकेशन सिस्टम मानव संसाधन की कमी से जूझ रहा है। टीचिंग की 8000 स्वीकृत पोस्ट में से 30 फीसदी खाली हैं। यही स्थिति नॉन टीचिंग स्टाफ की भी होने के कारण टीचिंग स्टाफ पर प्रशासनिक काम का भार बढ़ गया है। ऑडिट सिस्टम में भी कई कमियां हैं और इंटरनल फाइनेंशियल मैनेजमेंट का कंप्यूटराइज्ड सिस्टम पूरी तरह से अपर्याप्त है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने प्रदेश के हायर एजुकेशन सिस्टम को इंप्रूव करने के लिए पांच सालों में बजट 159 फीसदी बढ़ा दिया। 2009 में 767.76 करोड़ से बढ़कर 2014 में 1989.14 करोड़ हो गया।
     लेकिन, पंसङ्क्षडग मैकेनिज्म और परफारमेंस बेस्ड क्राइटेरिया साफ नहीं है। शिक्षण संस्थानों के बीच को-ऑर्डिनेशन की कमी है। रिपोर्ट में गुणवत्ता सुधारने दिए सुझावों में कहा गया है कि रिसर्च, डेवलपमेंट और कंसल्टेंसी के लिए स्टेट इंस्टीटयूट ऑफ हायर एजुकेशन, ट्रेनिंग एंड रिसर्च की स्थापना की जाए। पेसकल्टी और प्रिंसिपल के ट्रांसफर और गेस्ट पेसकल्टी के अपॉइंटमेंट की प्रक्रिया में बदलाव किया जाए। टीचिंग स्टाफ और प्रिंसिपल का ट्रांसफर कम से कम पांच साल तक न किया जाए। पेसकल्टी को स्टेबिलिटी दी जाए ताकि वे उच्च शिक्षा के विकास में बेहतर काम कर सके। गेस्ट पेसकल्टी की नियुक्ति भी दस महीने के लिए की जाए। सरकारी कॉलेजों और स्टेट यूनिवर्सिटीज की जिम्मेदारी का सुदृढ़ीकरण किया जाए। इस संबंध में प्रदेश के उच्च शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी का कहना है कि वल्र्ड बैंक विश्व स्तर की व्यवस्था के आधार पर सुधार चाहता है। लेकिन प्रदेश में वन क्षेत्र अधिक हैं और बड़ी संख्या में ट्राइबल रहतेहैं। हमें अपनी भौगोलिक, आॢथक और सामाजिक परिस्थितयों के हिसाब से फैसले लेने होते हैं। फिर भी राज्य सरकार हर स्तर पर सुधार कर रही है।