नई दिल्ली।। भूंकप और अन्य प्राकृतिक आपदाओ से सिर्फ पृथ्वी ही नही
बल्कि इसके एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा पर भी भूकंप आते हैं?
चंद्रमा पर आने वाले भूकंप से हमारी धरती को क्या लाभ हो सकता है ? इससे
कितने लोगों की जान बचाई जा सकती है। इन सवालों का जवाब मिला है भारत के
चंद्रयान-1 से प्राप्त हुए डाटा से। इस डाटा की व्याख्या की है जवाहरलाल
नेहरू विश्वविद्यालय में भूविज्ञान, सुदूर संवेदन एवं अंतरिक्ष विज्ञान
विभाग के संयोजक (कन्वेनर) प्रोफेसर सौमित्र मुखर्जी ने। उनके इस अध्ययन
में उनके छात्र प्रियदर्शनी सिंह ने भी सहयोग किया है इस अध्ययन से
संबंधित कई लेख अंतरराष्ट्रीय विज्ञान जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं।
प्रो. सौमित्र मुखर्जी ने चंद्रयान के नैरो एंगल कैमरा और लूनार
रिकॉनिएसेंस ऑॢबटर कैमरा से चंद्रमा की सतह की ली गई तस्वीरों का विश्लेषण
किया और पाया कि चंद्रमा की सतह के भीतर भी गतिमान टेक्टोनिक प्लेट्स हैं
जिनके आपस में टकराने से भूकंप जैसी आपदाएं आती हैं। चंद्रमा के दक्षिणी
ध्रुव से प्राप्त इस डाटा के अध्ययन के दौरान उन्होंने चंद्रमा की सतह पर
कई ऐसे चिन्ह देखे जो इस बात को स्थापित करते हैं कि चंद्रमा पर भी धरती की
तरह टेक्टॉनिक प्लेट्स में हलचल पायी जाती है।
प्रोफेसर मुखर्जी ने कहा,
''जैसे कि धरती की उपरी सतह गतिमान रहने के लिए, उसके नीचे पाए जाने वाले
तरल रूप में उपस्थित मेटल पर निर्भर करती है, उसी तरह चंद्रमा पर दिखाई
देने वाली टेक्टॉनिक प्लेट्स की हलचल से यह बात स्थापित होती है कि उसकी
सतह के नीचे भी तरल अवस्था में कोई पदार्थ है जिस कारण उसकी उपरी सतह
चलायमान है। इस प्रकार अवधारणात्मक रूप से हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं
कि चंद्रमा का भी केंद्र (कोर) है, तो यह संभव है कि चंद्रमा की संरचना भी
धरती के तरह ही हो। इससे वहां आने वाले भूकंपों और धरती पर आने वाले
भूकंपों का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है।
प्रोफेसर मुखर्जी ने कहा
कि अभी भी हम धरती पर भूकंप की भविष्यवाणी करने में सक्षम नहीं हो पाए हैं।
इस अध्ययन से चंद्रमा हमारे लिए प्रयोगशाला के तौर पर काम कर सकता है और
भविष्य में चंद्रमा के भूकंपों और धरती के भूकंपों के तुलनात्मक अध्ययन के
सहारे हम धरती पर भूकंप की भविष्यवाणी करने की दिशा में आगे कदम बढ़ा सकते
हैं। उनके इस अध्ययन में अहमदाबाद स्थित अंतरिक्ष उपयोग केंद्र ने सहायता
दी थी। यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का सहयोगी संस्थान है। इस
अध्ययन से संबंधित लेख नेचर इंडिया, प्रंसटियर्स इन अर्थ साइंस, आईईईई
जियो साइंस एंड रिमोट सेंङ्क्षसग लेटर्स और एल्सेवियर जैसे प्रतिष्ठित
जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं। प्रोपेससर मुखर्जी ने कहा कि इस अध्ययन
में स्वदेश में निॢमत भारतीय अंतरिक्ष यान के डाटा का प्रयोग हुआ और विश्व
में पहली बार चंद्रमा पर टेक्टॉनिक्स प्लेट्स के हलचल की बात स्थापित हुई
एवं इस डाटा की व्याख्या भी भारतीय विज्ञानियों ने की, इसलिए यह सही मायने
में 'मेक इन इंडिया' अध्ययन है।