अमेरिका में वहाँ की खाद्य मानक संस्थाएँ और उनके नियम इतने कठोर हैं कि कोई कोई कम्पनी इस प्रकार की हरकत के बारे में सोच भी नहीं सकती. भारत में यह कोई पहला उदाहरण नहीं है. विदेश से आने वाली कम्पनियाँ हों या भारतीय कम्पनियाँ, मानक-नियम-क़ानून-सुरक्षा आदि के बारे में रत्ती भर भी परवाह नहीं करतीं. युनियन कार्बाईड (Union Carbide) मामले में हम देख चुके हैं कि हजारों मौतों और लाखों को विकलांग बना देने के बावजूद कम्पनी के कर्ताधर्ताओं का बाल भी बाँका न हुआ. भारत में जमकर रिश्वतखोरी होती है, और जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ जारी रहता है.
चीन से आने वाले बेबी पावडर में भी "मेलामाइन" पाए जाने की रिपोर्ट भी सार्वजनिक हो चुकी हैं. चूँकि ताज़ा मामला हाई-प्रोफाईल "मैगी" से जुड़ा है, इसलिए इतना हो-हल्ला हो रहा है (हालाँकि रिपोर्ट में जहर पाए जाने के बावजूद कुछ "पत्रकार ???" मैगी की तरफदारी कर रहे हैं).
वास्तव में आज की तारीख में कोई नहीं जानता कि भारत में बिकने वाली खाद्य सामग्री अथवा पैकेटबंद भोजन में कितना जहर है? कितना मोम है? कितना प्लास्टिक है? जब इसके भयानक नतीजे सामने आना शुरू होते हैं तब तक देर हो चुकी होती है.
मैगी की धोखाधड़ी और झूठ के बारे में कुछ चित्रों में सरलता से समझाया गया है, इसे देखें और सोचें कि क्या वास्तव में हम "महाशक्ति" बनने की ओर अग्रसर हैं?? महाशक्ति अपने नागरिकों का कैसा ख़याल रखती हैं, यह हम जानते हैं...
चीन से आने वाले बेबी पावडर में भी "मेलामाइन" पाए जाने की रिपोर्ट भी सार्वजनिक हो चुकी हैं. चूँकि ताज़ा मामला हाई-प्रोफाईल "मैगी" से जुड़ा है, इसलिए इतना हो-हल्ला हो रहा है (हालाँकि रिपोर्ट में जहर पाए जाने के बावजूद कुछ "पत्रकार ???" मैगी की तरफदारी कर रहे हैं).
वास्तव में आज की तारीख में कोई नहीं जानता कि भारत में बिकने वाली खाद्य सामग्री अथवा पैकेटबंद भोजन में कितना जहर है? कितना मोम है? कितना प्लास्टिक है? जब इसके भयानक नतीजे सामने आना शुरू होते हैं तब तक देर हो चुकी होती है.
मैगी की धोखाधड़ी और झूठ के बारे में कुछ चित्रों में सरलता से समझाया गया है, इसे देखें और सोचें कि क्या वास्तव में हम "महाशक्ति" बनने की ओर अग्रसर हैं?? महाशक्ति अपने नागरिकों का कैसा ख़याल रखती हैं, यह हम जानते हैं...
(CA Anil Goel)