सरकारी खर्च पर इफ्तार पार्टी क्यों?
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सरकारी खर्च पर इफ्तार पार्टी क्यों?

   नई दिल्ली।। मिसायल मेन एपीजे अब्दुल कलाम जब राष्ट्रपति बने थे, तो उन्होंने सरकारी खर्च पर राष्ट्रपति भवन में दी जाने वाली इफ्तार पार्टी पर रोक लगा दी थी। उनका कहना था कि इस पर जनता का पैसा क्यों खर्च किया जाए। उनके बाद 2007 में प्रतिभा पाटील राष्ट्रपति बनीं और यह सिलसिला फिर शुरू हो गया। बीते दिनों राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा दी गई इफ्तार पार्टी के साथ ही यह बहस फिर तेज हो गई है।
    मालूम हो, इफ्तार एक मात्र धार्मिक आयोजन है, जिसके तहत राष्ट्रपति भवन में भोज दिया जाता है। खास बात यह भी है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के सामने राष्ट्रपति की इस इफ्तार पार्टी की शामिल होने का दो बार मौका था, लेकिन PM मोदी नहीं आए।
     टेलीग्राफ ने इस संबंध में कुछ जानकारों से बात की। इतिहासकार एस. इरफान हबीब सरकारी खर्च पर इफ्तार पार्टी के खिलाफ हैं। उनका मानना है कि ये आयोजन और कुछ नहीं, सत्ता का घमंड है। अब तो यह दिखावा भी हो गया है। आमतौर पर मुस्लिम सादे कपड़ों में रोजा खोलते हैं, लेकिन ऐसे आयोजनों में गोल टोली और अरबी कपड़े पहनकर आते हैं, मानों कोई वहां कोई परफॉरमेंस हो रहा है।
     गुजरात के बिजनेसमैन और हैदराबाद स्थित मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के चांसलर जफर सुरेशवाला भी इफ्तार पार्टी से मोदी की गैरमौजूदगी को गलत नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि सियासी इफ्तार पार्टियों पर लगाम कसी जाना चाहिए।
    बकौल सुरेशवाला, सियासी इफ्तार पार्टियों में नेता और गैरमुस्लिम ज्यादा होते हैं। ये अखबारों की सुर्खियां बनने के लिए वहां आते हैं।
    जामा मस्जिद की सलाहकार समिति के महासचिव सैय्यद तारिक बुखारी भी सुरेशवाला से इत्तेफाक रखते हैं। उनका कहना है कि ऐसी इफ्तार पार्टियों में रोजेदार को तवज्जों नहीं दी जाती है। लोग इसी की परवाह करते हैं कि सोनिया गांधी की इफ्तार में मुलायम सिंह या लालू यादव शरीक हुए या नहीं।
अमेरिकी दूतावास गरीब बच्चों को खिलाता है खाना
    सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस मुख्यालय पर इफ्तार पार्टी की शुरुआत की थी। राष्ट्रपति भवन में इफ्तार पार्टी आयोजित करने का रिवाज 80 के दशक से शुरू हुआ था। कलाम के कार्यकाल वाले पांच साल छोड़कर यह परंपरा बदस्तूर जारी है।
    1980 में सत्ता में लौटने के बाद इंदिरा गांधी ने इफ्तार पार्टियों की शुरुआत की, ताकि मुस्लिम वोट बैंक को आकर्षित किया जा सके।
    इसका एक मकसद पाकिस्तान के इस दावे को झूठा साबित करना भी था कि भारत में मुस्लिमों को दबाया जाता है। यहां मेहमानों की सूची में मुस्लिम देशों के राजदूत जरूर शामिल होते थे।
    इंदिरा गांधी के बाद मनमोहन सिंह तक यहां तक कि अटलबिहारी वाजपेयी ने भी प्रधानमंत्री आवास या हैदराबाद हाउस में इफ्तार पार्टियां आयोजित कीं। हालांकि सत्ता में आने के बाद मोदी ने एक बार भी ऐसा नहीं किया है। भारत में अमेरिकी दूतावास में इस मौके पर अनाथालय के बच्चों को बुलाकर खाना खिलाया जाता है।