रिसर्च में फिसड्डी है भारत
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रिसर्च में फिसड्डी है भारत

     बेंगलुरु।। भारत शोधकत्र्ताओं की संख्या केन्या और चिली जैसे देशों में रिसर्चर्स की संख्या से भी कम है। देश में 10 हजार काम करने वाले लोगों पर सिर्फ 4 रिसर्चर्स हैं जबकि केन्या और चिली में यह संख्या 6 और 7 की है। यह आंकड़े स्कोपस डेटाबेस के शोध में सामने आए हैं, जो सायंटिफिक लिटरेचर पर विश्व का सबसे बड़ा ऐब्स्ट्रैक्ट और साइटेशन (उद्धरण) डेटाबेस है। डेटा का अध्ययन करते हुए, नेचर मैगजीन ने कहा कि वैज्ञानिक रूप से आगे बढ़े रहे ब्राजील में एक हजार वॄकग लोगों में से 14 रिसर्चर्स हैं जबकि चीन में यह संख्या 18 है। यूके और यूएस इस मामले में 79-79 रिसर्चर्स के साथ शीर्ष पर हैं जबकि रूस में यह संख्या 58 है। मई 2015 की अपनी रिपोर्ट में नेचर मैगजीन ने कहा, ब्राजील और चीन जैसे बाकी साइंस फोकस देशों के विपरीत भारत की पब्लिकेशंस औसतन कम साइटेशन ही पैदा कर रही हैं। 
    रिपोर्ट के अनुसार अपने आकार के मुताबिक भारत में बहुत कम वैज्ञानिक हैं और भारत में जन्म लेने वाले बहुत से वैज्ञानिक पदों की चाह में विदेश चले जाते हैं, जबकि विदेश के कम वैज्ञानिक ही भारत आकर बसते हैं। नेचर स्कोपल के डेटा के अनुसार, भारत में सिर्फ 2 लाख पुसल टाइम रिसर्चर्स हैं, जिसमें महिलाओं की संख्या 14 फीसदी हैं। केंद्र में प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार आर चिदंबरम ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, निजी तौर पर मैं नंबर और रेटिंग को लेकर परेशान नहीं हूं। लेकिन योग्य युवाओं को इसमें बने रहने और इस तरफ आकॢषत करने की कोशिश हो रही है। मुख्य रूप से समस्या दो जगहों पर है, एक क्लास 12 के स्तर पर है, जहां विशुद्ध विज्ञान में रुचि रखने वाले बहुत से छात्र इंजिनियरिंग का रुख कर लेते हैं। दूसरी समस्या बी-टेक को लेकर है, जहां बहुत सारे इंजिनियङ्क्षरग के अच्छे रिसर्चर्स मैनेजमेंट कोर्सेस में छलांग लगा लेते हैं। अमेरिका जाकर नासा जॉइन करने से पहले डॉ. गजानन बिरूर ने दो साल तक इसरो के साथ काम किया था। वह कहते हैं, एक पॉइंट पर समस्या इंप्रसास्ट्रक्चर के साथ है। अब, जब भारत इंफ्रास्ट्रक्चर बना रहा है, यहां समग्र रूप से अच्छे रिसर्च के लिए माहौल की कमी है। हालांकि इसरो, आईआईएस, आईआईएम जैसे संस्थान इस दिशा में अच्छा काम कर रहे हैं। लेकिन यह लोगों को बाहर जाने के लिए प्रेरित करता है।