ऐसे थे चन्द्रशेखर आज़ाद
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ऐसे थे चन्द्रशेखर आज़ाद

    एक बार भगतसिंह ने बातचीत करते हुए चन्द्रशेखर आज़ाद से कहा, 'पंडित जी, हम क्रान्तिकारियों के जीवन-मरण का कोई ठिकाना नहीं, अत: आप अपने घर का पता दे दें ताकि यदि आपको कुछ हो जाए तो आपके परिवार की कुछ सहायता की जा सके।'
   चन्द्रशेखर सकते में आ गए और कहने लगे, 'पार्टी का कार्यकर्ता मैं हूँ, मेरा परिवार नहीं। उनसे तुम्हें क्या मतलब? दूसरी बात -उन्हें तुम्हारी मदद की जरूरत नहीं है और न ही मुझे जीवनी लिखवानी है। हम लोग नि:स्वार्थभाव से देश की सेवा में जुटे हैं, इसके एवज़ में न धन चाहिए और न ही ख्याति।
   स्वातंत्र्य समर महानायक क्रन्तिकारी प.चन्द्रशेखर आजाद जी को उनकी जन्म जयंती पर कोटि कोटि नमन्।
    आज इस महान वीर हुतात्मा के जीवन से जुडी एक प्रेरणादायी और मार्मिक घटना का वर्णन करने से स्वयं को रोक पाने में असमर्थ पा रहा हूँ । घटना उस समय की है जब स्वतन्त्र क्रांति समर के महानायक आजाद से मिलने आये उनके एक मित्र ने उन्हें उनके माता पिता के भयंकर रूप से बीमार होने की सूचना दी। और उपचार के लिए धन के प्रबन्ध हेतु सलाह दी कि संगठन का सारा काम करते हो घर बार छोड़ा हुआ है तो संघटन के धन से कुछ धन माता पिता के लिए भी भेज दिया करो । इतना सुनकर इस वीर ने जो उत्तर दिया वो जान कर यदि आप सब की आँखे और आत्मा सिहर न जाये और ऐसे देशभक्त के लिए सम्मान और गर्व की अनुभूति किये बिना आप रह नही पाएंगे। 
    आजाद ने निर्भीकता भरे स्वर में कहा कि मेरी तरह और क्रांतिकारियों के भी माता पिता है और ये खजाना भारत माता की सेवा के लिए है । यदि मैंने इसका उपयोग किया तो बाक़ियों के माता पिता का क्या ? और यदि इतने पर भी तुम सहमत और संतुष्ट नही हो, और मेरे पडोसी बीमार माँ बाप की सेवा और देखभाल करने में असमर्थ और असहज महसूस कर रहे है कहते कहते आजाद ने अपने पिस्तौल से दो गोलियां निकालकर उस मित्र के हाथों पर रख कर कहा की ये लो मेरी अंतिम सेवा मेरे बीमार माता पिता के लिये मेरी ओर से कर देना।