स्वाभाविक माहमारी का भी उपचार होना चाहिए
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स्वाभाविक माहमारी का भी उपचार होना चाहिए

     भारतीय राजनीति का घोटाले शर्मनाक सच बनते जा रहे हैं। घोटाला सार्वजनिक होने पर अब कोई स्तब्ध नहीं होता। घोटाला करने वाले नेताओं और अफसरों की छवि पर भी कोई बड़ा विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि अब आम धारणा बन गई है कि नेता और अफसर ईमानदार होते ही नहीं हैं। अब कोई ईमानदार दिखता है, तो लोग अब स्तब्ध रह जाते हैं। हालात भयावह हो चले हैं, इसके लिए कोई एक व्यक्ति, कोई एक दल, या सिर्फ सरकार ही जिम्मेदार नहीं ठहराई जा सकती।
   सर्वसमाज की सोच में ही परिवर्तन आया है। न्यायपालिका, कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और निजी संस्थाओं को संभालने वाले इसी भारतीय समाज के नागरिक हैं। समाज श्रेष्ठ होता, तो नेता, अफसर और कर्मचारी भी आदर्श आचरण करने वाले होते। पूरी तरह बदल चुकी सामाजिक सोच के दुष्परिणाम के रूप में ही भ्रष्टाचार और अन्य तमाम तरह के अपराध सामने आ रहे हैं। अब पति के  रिश्वतखोर होने पर पत्नी को, बेटे के रिश्वतखोर होने पर पिता को, दामाद के रिश्वतखोर होने पर ससुर को कोई फर्क नहीं पड़ता। अब तो ज्यादा रिश्वत मिलने वाले और बड़े घोटाले की संभावना वाले पद भी सार्वजनिक हो चुके हैं, जिन पर तैनात होने के लिए अफसर और कर्मचारी रिश्वत देते हैं व शक्तिशाली नेताओं से सिफारिश कराते हैं, ऐसे ही ज्यादा धन कमाने की संभावना वाले  मंत्रालयों को नेता लेना पसंद करते हैं, इस तरह के वातावरण में घोटाले का प्रकाश में आना कोई मुददा ही नहीं है। थोड़ी-बहुत चर्चा होती भी है, तो जनता दो गुटों में बंट जाती है। घोटाला करने वाले संबंधित दल और आरोपी नेताओं की लोकप्रियता में कोई गिरावट नहीं आती, ऐसे समाज में एक और व्यापमं नाम का घोटाला होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
     व्यापमं घोटाले की तो कोई चर्चा तक नहीं करना चाहता। चर्चा घोटाले से जुड़े लोगों की हत्या होने की है। घोटाले से संबंधित इतनी हत्यायें होने का शायद, यह विश्व रिकॉर्ड होगा। घोटाला एक तरह से माहमारी का रूप ले चुका है। घोटालों को लेकर जो लोग चर्चा तक करना पसंद नहीं करते, वे लोग भी हत्याओं को लेकर दुखी हैं और यहाँ तक कहने लगे हैं कि भाजपा सरकार की तुलना में यूपीए सरकार के घोटाले ही सही थे, उस सरकार में कम से कम लोग तो नहीं मर रहे थे।
    खैर, आम जनता तरह-तरह की प्रतिक्रियायें व्यक्त करती है, जो असंवैधानिक भी हो सकती हैं। बात फिलहाल व्यापमं घोटाले की करते हैं, तो अधिकाँश आम आदमी अभी तक यह नहीं समझ पा रहे हैं कि यह व्यापमं घोटाला है क्या? व्यापमं का अर्थ है व्यावसायिक परीक्षा मंडल, इसे संक्षेप में एमपीवीपीम, या एमपीपीईबी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है क्रमशः मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल और मध्य प्रदेश प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड।
    मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) का कार्य चिकित्सा क्षेत्र से संबंधित मेडिकल टेस्ट, पीएमटी प्रवेश परीक्षा, इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा व शैक्षिक स्तर पर बेरोजगार युवकों के लिए नियुक्ति आदि के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन कराना है। व्यापमं घोटाले का खुलासा वर्ष- 2013 में हुआ। पुलिस ने एमबीबीएस की भर्ती परीक्षा में बैठे कुछ फर्जी छात्रों को गिरफ्तार किया, जो दूसरे छात्रों के नाम पर परीक्षा दे रहे थे। पूछताछ में पता चला कि मध्य प्रदेश में कई सालों से एक बड़ा रैकेट चल रहा है, जो फर्जीवाड़ा कर छात्रों को एमबीबीएस में एडमिशन दिलाता है। फर्जी छात्रों से की गई पूछताछ के दौरान रैकेट के सरगना के रूप में डॉ. जगदीश सागर का नाम प्रकाश में आया। डॉ. जगदीश सागर पर आरोप है कि वो रिश्वत लेकर फर्जी तरीके से मेडिकल कॉलेजों में छात्रों का एडमिशन करवाता था, इस धंधे से वो अरबपति हो चुका है। इसके बाद डॉ. जगदीश सागर से पूछताछ हुई, तो खुलासा हुआ कि व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) का कार्यालय ही नहीं, बल्कि शिक्षामंत्री व मध्य प्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल के मुखिया लक्ष्मीकांत शर्मा भी संलिप्त है।
     रैकेट के सरगना डॉ. जगदीश सागर से ही पुलिस को पता चला कि परिवहन विभाग में परिचालक पद के लिए 5 से 7 लाख रूपये, फूड इंस्पेक्टर के लिए 25 से 30 लाख रूपये और सब-इंस्पेक्टर की भर्ती के लिए 15 से 22 लाख रुपये लेकर फर्जी तरीके से नौकरी दिलाई जाती है, इस अहम खुलासे के बाद 16 जून 2014 को मध्य प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री व मध्य प्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल के मुखिया लक्ष्मीकांत शर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया, इसके अलावा घोटाले से संबंधित बड़े लोगों में अरविंदो मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन डॉ. विनोद भंडारी और व्यापमं के परीक्षा नियंत्रक डॉ. पंकज त्रिवेदी की भी गिरफ्तारी हुई। पूर्व मंत्री ओ.पी. शुक्ला को तो घोटाले के रूपये के साथ गिरफ्तार किया गया था। अब तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के के.एस. सुदर्शन और सुरेश सोनी, सुधीर शर्मा और मध्य प्रदेश के राज्यपाल राम नरेश यादव तक का नाम इस घोटाले से जुड़ चुका है। विरोधी तो यहाँ तक आरोप लगा रहे हैं कि इस घोटाले में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी संलिप्त हैं। फिलहाल न्यायालय के आदेश पर उक्त घोटाले की जांच स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) कर रही है। 
     अब तक की जांच में खुलासा हो चुका है कि परीक्षा नियंत्रक डॉ. पंकज त्रिवेदी मध्य प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री व मध्य प्रदेश के  व्यावसायिक परीक्षा मंडल के मुखिया लक्ष्मीकांत शर्मा के बंगले पर आता था और वहां से उसे फर्जी छात्रों की सूची और अनुक्रमांक दिए जाते थे। फर्जीवाड़े को अंजाम देने के लिए थंब इंप्रेशन मशीन और ऑनलाइन फॉर्म की व्यवस्था समाप्त कर दी गई थी, ताकि फर्जी छात्र परीक्षा में आसानी से बैठाये जा सकें, इस फर्जीवाड़े में मंत्री से लेकर निचले स्तर तक के कर्मचारी तक संलिप्त रहे हैं, जिनमें सबका अपना हिस्सा निश्चित था। व्यापमं घोटाला आश्चर्यचकित कर देने वाला घोटाला तो है ही, जो अब दिल दहला देने वाला घोटाला बन चुका है। इस घोटाले से किसी भी तरह जुड़े लोगों की मृत्यु शुरू में ही होने लगी, तो एक-दो घटना तक तो लोग स्वाभाविक मृत्यु ही समझते रहे, लेकिन अब इस प्रकरण से जुड़े लोगों की मौत का आंकड़ा अर्धशतक के करीब पहुंचता जा रहा है। समूचा देश मौत की घटनाओं से दहल उठा है, लेकिन सरकार में बैठे लोग घटनाओं को स्वाभाविक ही मान रहे हैं।
     जघन्यतम घोटाले से जुड़े लोगों की लगातार हो रही मौत की घटनाओं को स्वाभाविक मृत्यु कोई भी कैसे मान सकता है। स्वाभाविक बताई जा रही मौत की घटनाओं पर स्वाभाविक सवाल ही उठते नजर आ रहे हैं कि घोटाले से संबंधित साक्ष्य दिलाने वाले और अहम गवाह बनने वाले ही क्यूं मर रहे हैं? इस प्रकरण की रिपोर्टिंग को गया पत्रकार क्यूं मर गया? पोस्टमार्टम रिपोर्ट स्वाभाविक मृत्यु ही बता रही है। अधिकाँश मौतें मध्य प्रदेश में ही हुई हैं, इसलिए मध्य प्रदेश में हुए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट को आँख बंद कर सच क्यूं मान लिया जाये? इतने बड़े पैमाने पर कार्य करने वाले रैकेट के तार देश भर में होने स्वाभाविक ही हैं, उसके बनाये डॉक्टर कहीं भी हो सकते हैं, वे उस रैकेट को बचाने के लिए उसका साथ क्यूं नहीं देंगे? घोटाले से संबंधित माफिया चिकित्सा क्षेत्र का है, तो उसके पास ऐसे तरीके क्यूं नहीं होंगे कि मृत्यु स्वभाविक ही लगे? मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं को बेदाग बताते हुए यह भी दावा करते नजर आ रहे हैं कि एक भी दोषी कार्रवाई से नहीं बचेगा, लेकिन सवाल यह है कि जब वे तटस्थ और बेदाग हैं, तो उन्हें सीबीआई जांच की संस्तुति करने में क्या आपत्ति है? असलियत में उनकी कार्यप्रणाली में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ भाजपा के शीर्ष पदाधिकारियों को बचाने की नीयत स्पष्ट झलक रही है और अगर, ऐसा ही है, तो फिर एसटीएफ दोषियों तक कैसे पहुंच सकती है?
       घोटाला भले ही मध्य प्रदेश में हुआ हो, लेकिन सवालों के घेरे में केन्द्रीय भाजपा और केंद्र सरकार भी है। भाजपा और केंद्र सरकार के लिए भ्रष्टाचारियों के प्रति स्वयं की मंशा स्पष्ट करने का समय है यह। माहमारी बन चुके व्यापमं घोटाले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुल कर हस्तक्षेप करना चाहिये। देश की जनता समूचे प्रकरण की जांच सीबीआई से कराने के पक्ष में हैं, उन्हें देश की जनता की भावनाओं को दरकिनार नहीं करना चाहिए। मृत्यु की घटनायें स्वाभाविक ही हों, तो भी आशंकित और दुखी जनता को शांत करने के लिए सीबीआई की दबाव रहित जांच होनी अब आवश्यक है।

(बी.पी. गौतम)
स्वतंत्र पत्रकार