नई दिल्ली।। भारत में चलने
वाले नोटों में खतरनाक बैक्टीरिया, वायरस और ऐंटीबायोटिक रजिस्टेंस जीन पाए
गए हैं। भारतीय वैज्ञानिकों की एक स्टडी में इसका खुलासा हुआ है। काउंसिल
ऑफ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च और इंस्टिट्यूट ऑफ जिनोमिक्स ऐंड
इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के साइंटिस्ट इस स्टडी में शामिल थे। पिछले महीने यह
स्टडी पल्स वन रिसर्च जनरल में पब्लिश हुई है। इस स्टडी में 10, 20 और 100
रुपए के नोट ग्रॉसरी शॉप्स, केमिस्ट शॉप्स, स्रैक्स बार, हार्डवेयर शॉप,
स्ट्रीट वेंडर आदि से लिए गए थे। स्टडी में नोटों पर 70 पर्सेंट यूकेरयोटा
पाया गया है। इसे आम भाषा में फफूंदी कहते हैं। 9 पर्सेंट नोटों में
बैक्टीरिया पाया गया, हालांकि एक पर्सेंट से कम नोटों पर वायरस पाया गया।
स्टडी में 78 ऐसे एंटीबायोटिक रजिस्टेंस जीन पाया गया। इनमें से 18 जीन सभी
सैंपल में पाए गए। यह जीन बॉडी के इम्यून सिस्टम को कमजोर करता है।
इनफेक्शन एक्सपर्ट डॉ. नरेंद्र सैनी ने कहा कि कागज के नोट एक हाथ से दूसरे
हाथ में जाते हैं। नोट कभी मीट के दुकान पर तो कभी रेहड़ी-पटरी पर तो कभी
चाय की दुकान पर तो कभी अस्पताल में जाते हैं। कहीं भी इनसे बैक्टीरिया या
वायरस चिपक जाते हैं। बैक्टीरिया और वायरस की संख्या इस बात पर निर्भर करती
है कि वह नोट कितना यूज हो रहा है। नोट जितना गला और पुराना होगा, उसमें
बैक्टीरिया होने की संभावना उतनी ज्यादा होगी।
अगर आप नोट बिना यूज किए
कहीं रख दो तो उसमें भी कुछ दिन के बाद फफूंदी बन जाती है। इंडियन मेडिकल
असोसिएशन के महासचिव डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा कि हॉस्पिटल के लैब में
ऐसे इनफेक्शन होते हैं। अगर आप वहां जाते हैं और फॉर्म भरते हैं तो उस
फॉर्म को छूने पर हाथ में बैक्टीरिया चिपक जाता है। फिर यह ट्रैवल करता है।
इसी तरह यह बैक्टीरिया नोट पर आ जाता है। अगर कोई टीबी का मरीज है या फ्लू
का मरीज है और वह नोट गिनने के लिए स्लैबा यूज कर रहा है तो उसके स्लैबा
के साथ बैक्टीरिया नोट पर चिपक जाता है और फिर वह आपके पर्स तक पहुंचता है।
डॉक्टरों का कहना है कि नोटों से फैलने वाले इनफेक्शन को रोकने के लिए
प्लास्टिक करेंसी का यूज करना होगा। कई देशों में इसका चलन है। अपने देश
में लोगों को क्रेडिट और डेबिट कार्ड का यूज ज्यादा करना होगा। साथ ही अपने
लेवल पर साफ-सफाई रखनी होगी। हर समय अलर्ट रहें। बिना हाथ धोए खाना नहीं
खाएं।