सांप का जहर मारने वाला 'सीरम' कुछ इस तरह से तैयार किया जाता है
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सांप का जहर मारने वाला 'सीरम' कुछ इस तरह से तैयार किया जाता है

    प्रयोगशालाओं में अनगिनत प्रयोग करने पर यह पाया गया है कि यदि किसी जानवर के खून में थोड़ा - थोड़ा करके सांप का ज़हर सुई देकर प्रविष्ठ कराया जाए और रोज इस विष की मात्रा क्रमश: बढ़ाई जाए, तो कुछ ही दिनों में उस जानवर के खून में यह गुण आ जाएगा कि यदि उसे सचमुच कोई सांप काट ले, तब भी उसे कुछ न हो। ऐसी दशा में पहुंचे जानवर के खून से ही सांप का जहर मारने वाला 'सीरम' तैयार किया जाता है। 
     इस सीरम को तैयार करने के लिए वास्तव में सैंकड़ों स्वस्थ सांपों की जरूरत होती है। इन सांपों को शीशे के हवादार बक्सो में पाला जाता है और समय—समय पर उनका जहर निकाल कर आगे की प्रक्रिया सम्पन्न करने के लिए प्रयोगशाला में भेज दिया जाता है।
    भारत में इस प्रकार की एकमात्र प्रयोगशाला मुम्बई में है, जिसे 'हाफकिन इंस्टीट्यूट' के नाम से जाना जाता है। यहां पर लगभग 200 प्रकार के सांपों को पाला जाता है और सावधानीपूर्वक उनका जहर निकाला जाता है। इस इंस्टीट्यूट में यूं तो भारत में पाए जाने वाले लगभग सभी प्रकार के जहरीले सांप पाले जाते हैं, किन्तु 'करैत' सांप नहीं मिलता है। क्योंकि करैत सांप की प्रकृति इस तरह की होती है कि यदि उसे कैद करके पिंजड़े में रखा जाए, तो वह कुछ ही दिनों में मर जाता है।
      सांप का जहर निकालने के लिए उसे एक छड़ी की मदद से बाहर निकाला जाता है और फिर उसे सावधानी से मुंह के पास पकड़कर एक बारीक झिल्‍ली चढ़े शीशे के प्‍याले के पास लाया जाता है। सांप गुस्से में जोरों से प्‍याले में अपने दांत गड़ाने की कोशिश करता है, जिससे उसका जहर प्‍याले में इकट्ठा हो जाता है। इस प्रक्रिया से जहर निकालने पर प्‍याले में सांप के मुंह का फेन भी इकट्ठा हो जाता है, जिसे बाद में अलग कर दिया जाता है।
     अमेरिका में वैज्ञानिकों ने विद्युत धारा के द्वारा सांप का जहर निकालने की विधि ईजाद की है। इस विधि में सांप के सिर पर 10 वोल्‍ट की शॉक दिया जाता है, जिससे उसके विष ग्रन्थि सम्‍बंधी स्‍नायु प्रभावित होते हैं और उनमें संकुचन होने के कारण जहर अपने आप सांप के मुंह से बाहर आ जाता है। इस विधि का आविष्‍कार करने वाले डॉक्‍टर जान्‍सन का मानना है कि इससे सांपों को कोई तकलीफ नहीं होती, जबकि शीशे के प्‍याले में जहर निकालने की परम्‍परागत विधि में उन्‍हें बेहद तकलीफ सहनी पड़ती है।
   प्रयोगशाला में सांप के विष को दुहने के बाद उसे कसौली, हिमांचल प्रदेश स्थित गवर्नमेन्‍ट प्रयोगशाला 'सेन्‍ट्रल रिसर्च इंस्‍टीट्यूट' भेज दिया जाता है, जहां पर उसे शोधित करके एंटीवेनम का निर्माण किया जाता है।