अँगूठे और अँगुली का कमाल देगा आपके दिमाग को ऊर्जा
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अँगूठे और अँगुली का कमाल देगा आपके दिमाग को ऊर्जा

   लोगों को कई बार यह कहते हुए सुना है कि दिमाग नहीं चल रहा या दिमाग काम नहीं कर रहा। जब मानसिक तनाव बढ़ता है तो हमारा दिमाग उस उलझन में ठीक से सोच नहीं पाता और हम ठीक से निर्णय नहीं ले पाते। ऐसे में हमेशा डर बना रहता है कि हम कोई गलत निर्णय ना ले लें। इस डर से बचने का एक ही उपाय है कि हमारा दिमाग ठीक से कार्य करे। दिमाग को ठीक से चलाने के लिए और निर्णय शक्ति को बढ़ाने के लिए प्रतिदिन सुबह-सुबह ज्ञान-मुद्रा का प्रयोग करना एक बेहद फायदेमंद और कारगर उपाय हो सकता है।

    चित्र के माध्यम से आपको बताना चाहते है कि ज्ञान मुद्रा की मदद से हमारा दिमाग दौडऩे लगेगा। इस मुद्रा का प्रयोग हजारों वर्षो से ऋषि-मुनि करते आ रहे है। ज्ञान मुद्रा से दिमाग को सही और ज्यादा से ज्यादा प्रखर चेतना मिलेगी और वह पहले की बजाय अधिक बेहतर और तेज गति से सटीक कार्य करने में समर्थ बन जाएगा।
ज्ञान मुद्रा करने की विधि
     किसी शांत और शुद्ध वातावरण वाले स्थान पर कंबल आदि बिछाकर पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं। अब अपने दोनो हाथों को घुटनों पर रख लें। अंगूठे के पास वाली तर्जनी उंगली (इंडेक्स फिंगर) के ऊपर के पोर को अंगूठे के ऊपर वाले पोर से मिलाकर हल्का सा दबाव दें। हाथ की बाकी की तीनों उंगलियां बिल्कुल एक साथ लगी हुई और सीधी रहनी चाहिए। अंगूठे और तर्जनी उंगली के मिलने से जो मुद्रा बनती है उसे ही ज्ञान मुद्रा कहतें है। ध्यान लगाते समय सबसे ज्यादा ज्ञान मुद्रा का इस्तेमाल किया जाता है।
ज्ञान मुद्रा से लाभ
    इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से जीवन रेखा और बुध रेखा के दोष दूर होते हैं तथा अविकसित शुक्र पर्वत का विकास होता है। ज्ञान मुद्रा समस्त स्नायुमंडल को सशक्त बनाती है। विशेषकर, मानसिक तनाव के कारण होनेवाले दुप्रभावों को दूर करके मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओं को सबल करती है। ज्ञान मुद्रा के निरंतर अभ्यास से मस्तिष्क की सभी विकृतियां और रोग दूर हो जाते हैं। अनिद्रा रोग में यह मुद्रा अत्यंत कारगर सिद्ध होती है। मस्तिष्क शुद्ध और विकसित होता है| मन शांत हो जाता है। चेहरे पर अपूर्व प्रसन्नता झलकने लगती है। ज्ञान मुद्रा मानसिक एकाग्रता बढ़ाने में सहायक होती है।
    तर्जनी अंगुली और अंगूठा जहां एक एक दूसरे को स्पर्श करते हैं, हल्का-सा नाड़ी स्पन्दन महसूस होता है। वहां ध्यान लगाने से चित्त का भटकना बंद होकर मन एकाग्र हो जाता है। ज्ञान मुद्रा विद्यार्थियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसके अभ्यास से स्मरण शक्ति उन्नत और बुद्धि तेज होती है। साधना के क्षेत्र में साधक द्वारा लगातार ज्ञान मुद्रा करने से उसका ज्ञान-नेत्र (शिव-नेत्र) खुल सकता है। अन्तःदृष्टि प्राप्त होकर छठी इंद्रिय का विकास हो सकता है। दिव्य-चक्षु के खुलने से साधक त्रिकाल की घटनाओं को यथावत् देख सकने तथा दूसरे के मन की बातें जान सकने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।