शिव आज भी इंसान बनकर धरती पर घूम रहे है..जानें कैसे ?
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शिव आज भी इंसान बनकर धरती पर घूम रहे है..जानें कैसे ?

     शिव का अघोरी रूप सबसे खूबसूरत माना जाता है। अघोरी शिव के रूप की पूजा आप भी करते हैं। सावन की सोमवारी पूजा हो, शिवरात्रि या आम दिनों की शिव पूजा भांग और धतूरे को शिव की सबसे प्रिय वस्तु मानकर हर शिव-भक्त शिवलिंग पर जरूर चढ़ाता है। पुराणों के अनुसार शिव के इस रूप को औघड़ या अघोरी बोला जाता है, भांग-धतूरे के नशे में मदमस्त रूप।
     आपको जानकर हैरानी होगी कि शिव का यह रूप आज भी धरती पर मौजूद है। वह हमारे ही बीच लेकिन आम जिंदगी और आम इंसानों से दूरी बनाकर रहता है। मुश्किल से पूरे हिंदुस्तान में 5-6 से ऐसे शिव रूप हैं। पर आप उसे पहचानेंगे कैसे?
     इलाहाबाद में ….(माघ)…मेला के बारे में तो जानते ही होंगे आप। माघ मेला में आए नागा साधु इस मेले का खास आकर्षण होते हैं। आज के जमाने में भी इनके बदन पर कपड़े नहीं होते और नंगे बदन पर गंगा तट पर घूमा करते हैं। ये अघोरी साधु हैं। ये विरले ही आपको किसी आबादी वाले इलाके में दिखेंगे और अगर दिख गए तो लोगों को अपनी ताकत से खत्म कर डालने के लिए डराते ही दिखेंगे।
    लाल आंखें, हुक्का पीते हुए, राख से सने, नंगे बदन ये साधु श्मशानों में रहते हैं। इन्हें जीने के लिए किसी सुख-सुविधा की जरूरत नहीं। यहां तक खाने-पीने के लिए कंकाल की खोपड़ी ही इनका प्लेट और कंकाल की खोपड़ी ही इनका ग्लास है। इनका विश्वास होता है कि दुनिया में कोई भी चीज गंदी नहीं हो सकती है क्योंकि हर चीज भगवान ब्रह्मा का बनाया हुआ है उतना ही शुद्ध-स्वच्छ है जितना कोई और चीज।
     आपको शायद एक बार यह सोचकर घिन आए कि ये गाय का मांस छोड़कर सभी कुछ खाते हैं यहां तक कि आदमी का मांस भी। अघोर तंत्र सिद्धि के लिए ये श्मशानों में रहते हैं। इनकी एक साधना है श्मशान में रहना और लाशों पर खड़े रहकर साधना करना। एक अघोरी बनने के लिए लाशों को अपने ऊपर से गुजारना इनके लिए सबसे जरूरी माना जाता है। जो राख ये शरीर पर मलते हैं या जिन राखों को अपने शरीर के ऊपर उड़ेलते हैं वह भी श्मशान में जलाई हुई लाश की राख ही होती है। सड़ी हुई लाश का खुली आग में भूना हुआ मांस खाना भी इनकी साधना का एक हिस्सा है। शराब, भांग पीना इन साधुओं के लिए निषेध नहीं बल्कि जरूरी है। श्मशान में रहते हुए लाशों का मांस खाना और शराब, भांग, गांजा पीना इनकी साधना से जुड़ा हुआ है। पर ये लाशें आती कहां से हैं? किसी का कत्ल तो नहीं करते ये?
     आज भी किसी 5 साल से कम उम्र के बच्चे, सांप काटने से मरे हुए लोगों, कई बार धार्मिक कार्य में होने वाले खर्च में पैसे न खर्च कर पाने की स्थिति में होने के कारण गरीबों का, आत्महत्या किए लोगों का शव जलाया नहीं जाता बल्कि दफनाया या गंगा में प्रवाहित कर कर दिया जाता है। पानी में प्रवाहित ये लाश डूबने के बाद हल्के होकर पानी में तैरने लगते हैं। अक्सर अघोरी तांत्रिक इन्हीं शवों को पानी से ढूंढ़कर निकालते और अपनी तंत्र सिद्धि के लिए प्रयोग करते हैं।
     शिव के पांच चेहरे माने जाते हैं जिसके एक चेहरे का नाम ‘अघोर’ है. ‘घोर’ का शाब्दिक अर्थ है ‘घना’ जो अंधेरे का प्रतीक है और ‘अ’ मतलब ‘नहीं’। इस तरह अघोर का अर्थ हुआ जहां कोई अंधेरा नहीं, हर ओर बस प्रकाश ही प्रकाश है। शिव का सबसे चमकीला रूप ‘अघोरी’ कहलाता है। अघोरी मतलब घने अंधेरे को हटाने वाला। अंधेरे का अर्थ भय भी हो सकता है। इस तरह यह अघोर रूप उस भय से मुक्त कराने वाला भी है, अघोरी जो हर घोर (अंधेरे की तरह दिखने वाले भय को हटा दे)। शिव का यह अघोरी रूप सबसे खूबसूरत माना जाता है। इस रूप में शिव औघड़ भी कहलाते हैं जो दुनिया से विरक्त, अपनी ही साधना में लीन आत्मा का प्रतीक है।
अघोरी साधु शिव की साधना करते हैं और दुनिया से दूर वीराने में रहते हैं। इनके रहने की खास जगह है श्मशान क्योंकि यहां शिव और पार्वती का वास माना जाता है। जिस भी चीज या काम को दुनिया निषेध मानती है अघोरी साधु उसे ही कर ब्रह्मा के हर रूप में भगवान का वास होने, उसके पवित्र होने की बात कहते हैं; जैसे, लाशों को अपने ऊपर से गुजारना, लाशों की राख से नहाना, श्मशान में रहना आदि।
     शिव की साधना करने वाले ये साधु खुद को शिव का रूप बताते हैं और शिव की कृपा प्राप्त होने की बातें कहकर लोगों को नुकसान पहुंचाने के नाम पर डराते भी हैं। हालांकि यह सच इससे बहुत अलग है।
     अघोरियों का जीवन बहुत मुश्किल होता है। सभी साधु इस साधना को पूरा नहीं कर पाते। पूरे भारत में ऐसे मात्र 1500 अघोरी साधु हैं। पर वास्तव में ये अघोरी ‘साधु’ नहीं, बल्कि काला जादू करने वाले ‘अघोरी तांत्रिक’ होते हैं।श्मशान में लाशों के ऊपर सिद्धियों की साधना करना दरअसल आत्माओं को वश में करने और काला जादू तंत्र विद्या की साधना होती है। लोगों का ऐसा मानना है कि अघोरी साधु हमेशा गंदे होते हैं पर यह भी गलत है। जरूरी नहीं कि अघोरी साधु गंदे ही हों बल्कि वे साफ-सुथरे होंगे और आपको पता भी नहीं चलेगा। कहते हैं पूरे भारत में असली अघोरी साधु मात्र 5 से 6 ही हैं लेकिन वे ऐसे कहीं आपको नहीं मिलेंगे क्योंकि वे शिव साधना में हमेशा लीन रहते हैं !