मोदी दुनियां को मंत्रमुग्ध कर रहे है, विरोधी जल-भुन रहे हैं
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मोदी दुनियां को मंत्रमुग्ध कर रहे है, विरोधी जल-भुन रहे हैं


    नरेन्द्र मोदी का विलक्षण व्यक्तित्व दुनियां को चमत्कृत कर रहा है। विश्व समुदाय को उनकी बातें प्रभावित कर रही है। विश्वमंच पर अपना कद ऊंचा कर उन्होंने भारतीयों का गौरव बढ़ाया है, किन्तु उनके विरोधियों को उनके व्यक्तित्व का कोर्इ पक्ष नहीं लुभा रहा है। उन्होंने कहीं भी कुछ भी बोला नहीं कि उनके शब्दों का पोस्टमार्टम कर बाल की खाल निकालने के लिए पूरी जमात खड़ी हो जाती है। ऐसा लगता है भारत के प्रधानमंत्री को जब तब अपमानित करने का उन्होंने धर्म बना लिया है। खबरियां चेनल ऐसे लोगों के लिए एक मंच बन रहे हैं, जहां आ कर वे अपनी भड़ास निकाल सकते हैं।
    जनता की गाढ़ी कमार्इ को घपलों-घोटालों से अरोग, दस वर्षों तक एक अर्कमण्य और भ्रष्ट सरकार अजगर की तरह मस्त पड़ी थी। उस सरकार को न तो देश की प्रतिष्ठा की चिंता थी, न वह जनता की तकलीफों के प्रति संवदेनशील थी। विदेश नीति उनके लिए अपने कुनबे के साथ सैर सपाटे का पर्याय बन गर्इ थी। देशभक्ति का रंच मात्र भी अंश इन लोगों के व्यक्तित्व में नहीं दिखार्इ देता था। देश को जी भर कर लूटो। खाओं -पीओ और मौज करों की नीति के अनुपालक आजकल नरेन्द्र मोदी के प्रखर आलोचक बन गये हैं। इसकी खास वजह यह है कि सत्ता से जुड़ कर लुत्फ उठाने के दिन अब लद गये। उन्हें चिंता इस बात की भी सता रही है कि नरेन्द्र मोदी इसी तरह आगे बढ़ते रहे और भारतीय जनमानस का दिल जीतते रहे, तो भविष्य में भी वे सत्ता सुख के लिए तरसते ही रहेंगे।
    जिस पार्टी का नेता डेढ़ मिनिट भाषण के अंश भी किसी से उधार ले कर पढ़ता है, उन लोगों को डेढ़ घंटे तक धारा प्रवाह बोलने वाले व्यक्तित्व के कथन में भी खोट नज़र आ रही है। उन्हें शायद नहीं मालूम कि प्रभावशाली भाषण देने के लिए जीवट ऊर्जा चाहिये, विषय का गहन अध्ययन चाहिये, तप का बल चाहिये। दुर्भाग्य से ये सारे गुण उनके नेता में नहीं है । चार दिन तक इधर-उधर घूम कर निरर्थक बकवास कर जो व्यक्ति आठ दिन आराम करता है। दो महीने देश में रहता है, फिर चार महीने विदेशों में कहीं अज्ञातवास करता है, वह नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व की तुलना में कहीं नहीं ठहरता। ऐसे व्यक्तित्व खुश करने के लिए जो नरेन्द्र मोदी की आलोचना करने की प्रतिस्पर्धा में लगे हुए हैं, वे शायद वे इस खुशफहमी में जी रहे हैं कि कभी सत्ता हमारे नेता के पास आयेगी, तब हमारे अच्छे दिन फिर आ जायेंगे। इसलिए जो जितना ज्यादा नेता की निगाहों में चढ़ेगा, उसे ज्यादा सत्ता का प्रसाद मिलेगा। परन्तु शायद उन्हें नहीं मालूम है कि सूखें हुए वृक्ष में कभी फल नहीं आते। भारतीय जनता इस सूखें वृक्ष को सींच कर इसे फिर हरा-भरा नहीं बनायेगी। जनता की स्मरण शक्ति इतनी भी कमजोर नहीं कि वह सब कुछ भूल कर फिर उसी गड्ढ़े में गिरने को आतुर हो जायेगी, जिससे बमुश्किल बाहर निकली है।
    मीडिया का सहारा ले, नरेन्द्र मोदी को खलनायक बता कर देश भर में प्रचार करने से उन्हें कुछ हाथ नहीं लगा। मीडिया के सहयोग से उन्होंने जिस व्यक्तित्व को राष्ट्र का खलनायक बनाने की अभद्र कोशिश की थी, वह अपने तपोबल से अब राष्ट्रीय नायक बन गया है। मोदी विरोधी लाख सर पटक लें पर जनता अब उन्हें अपने दिल से बाहर नहीं कर सकती। समाचार मीडिया, जनता की नब्ज नहीं पहचानता। उसे अपने व्यावसायिक हितों की चिंता रहती है। संजय सिंह जैसा नेता, जिनका अभी भारत की राजनीति में जन्म हुआ है और उनके राजनीतिक जीवन पर ही प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है, उस व्यक्ति द्वारा नरेन्द्र मोदी पर कोर्इ टिप्पणी की जाती है, उसे मीडिया सुर्खिया देता हैं, जबकि हकीकत यह है कि इस व्यक्ति को दिल्ली के बाहर कोर्इ नहीं जानता। इस उदाहरण से यही निष्कर्ष निकलता है कि समाचार प्रसारण में मीडिया समाचार की सार्थकता के बजाय धन को ज्यादा महत्व देता है।
    अत: राजनीति के बिगड़े नवाब के व्यक्तित्व में जो लोग अपना सुनहरा भविष्य तलाश रहें हैं, वे दुखद छलावें में जी रहे हैं। एक परिवार की पूंछ पकड़ कर राजनीति के सरोवर को पार करने वालें लोगों की बुद्धि पर तरस आ रहा है, क्योंकि जो स्वयं डूब रहा है, वह दूसरों को क्या बचायेगा ? परन्तु सरोवर की मछलियों के लिए तो अपना सरोवर ही पूरा संसार होता है, जिसे छोड़ कर वे कहीं जा नहीं सकते। उन्हें इस बात की भी चिंता सताती रहती है कि यदि सरोवर का पानी सूख गया तो उनके पास तड़फ-तड़फ कर जान देने के अलावा कोर्इ विकल्प ही नहीं बचेगा। इसीलिए सारे नेता अपने नेता का राजनीतिक जीवन बचाने के लिए उनका स्तुति गान करते रहते हैं। वे दिन को अगर रात कहते हैं, तो आंखें बंद कर रात कह देते हैं। कह देते हैं हुजूर हमे भी अंधेरा ही दिखार्इ दे रहा है।
     भारत की राजनीति में नरेन्द्र मोदी का उत्कर्ष एक मिथक नहीं, हकीकत है, जिसे उनके आलोचकों को अब स्वीकार कर लेना चाहिये। उन्हें यह भी स्वीकार कर लेना चाहिये कि विश्वमंच पर नरेन्द्र मोदी जो कुछ बोलते हैं, वह एक व्यक्ति की नहीं, भारत के प्रधानमंत्री की आवाज होती है, जिससे भारत के एक सौ पच्चीस करोड़ नागरिकों के हित जुड़े होते हैं। वे जो कुछ कह रहे हैं और कर रहे हैं, उसका संबंध भारत के विकास से है। उन्होंने अब तक ऐसा कुछ नहीं कहा है और किया है, जिससे भारत के हित प्रभावित हुए हैं। अत: बिना ठोस तथ्यों के जिस किसी को भी भारत के प्रधानमंत्री पर कीचड़ उछालने का नैतिक अधिकार नहीं है। हां, यह जरुर है कि उनके वक्तव्य की और नीतियों की समीक्षा की जा सकती है, परन्तु सिर्फ और सिर्फ आलोचना ही करना प्रधानमंत्री के सारे परिश्रम पर पानी फेरना ही है, जिससे भारत का जनमत सहन नहीं कर सकता।
    नरेन्द्र मोदी की अन्य विदेश यात्राओं की तरह उनका खाड़ी देशों का दौरा भी सफल रहा है। वे वहां कुछ खो कर नहीं, कुछ ले कर ही लौटें है। हमे अपने प्रधानमंत्री पर गर्व करना चाहिये। प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व को कलंकित करने का जो भी प्रयास उनके विरोधियों द्वारा किया जाता है, वह उनकी कुटिल मनोवृति का परिचायक है। ऐसे व्यक्तियों का तिरस्कार कर उनके राजनीतिक जीवन को समाप्त करने की प्रतीज्ञा भारतीय जनमानस को लेनी चाहिये। इनकी बातों का विरोध करने का यही एक मात्र उपाय है।