जानिये इंडियन टाइगर : अजीत डोभाल के बारें में
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जानिये इंडियन टाइगर : अजीत डोभाल के बारें में


मित्र S.k. Burman कि टाईमलाईन से लि गई अजीत डोभाल जी के जीवनी के कुछ अंश।।
आखिर कौन हैं ये अजीत डोभाल..!! जिनके डर से पाकिस्तान का सरताज अजीज मुँह छिपाकर बिल में घुस गया है..!!

   अजित डोभाल का झुकाव हिंदुत्ववादी विचारधारा की ओर माना जाता है। वो उस विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के फाउंडर अध्यक्ष भी रहे हैं जिसे RSS के थिंक टैंक के तौर पर जाना जाता हैं।
    साल 2010 में बीजेपी ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर हरिद्वार में जो पहला अधिवेशन बुलाया था उसमें अजीत डोभाल को खास तौर से बुलाया गया था।
    अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में अहम पदों पर रहे अजित डोभाल लालकृष्ण आडवाणी के भी काफी करीबी माने जाते हैं। कहा जाता है कि अगर 2009 में बीजेपी चुनाव जीतती और आडवाणी प्रधानमंत्री बनते तो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की जिम्मेदारी अजित डोभाल को सौंपी जानी तय थी। यानी बीजेपी और आरएसएस से उनके पुराने एवं नजदीकी संबंध रहे हैं।
   आईबी के पूर्व प्रमुख अरूण भगत का खुले तौर पर बयान था कि RSS से उनका संबंध तो निश्चित रूप से है। क्योंकि विवेकानंद फाउंडेशन उन्हीं का बनाया हुआ है।
    वे आडवाणी के गृहमंत्री रहते हुए उनके काफी करीब आ गये थे। जब विपक्ष में रहते हुए आडवणी ने विदेशी खातों के बारे में एक दस्तावेज जारी किया तो उसे तैयार करने में उनकी काफी अहम भूमिका रही थी।
    तब पत्रकार अक्सर मजाक में कहा करते थे कि जब आडवाणी प्रधानमंत्री बनेंगे तो डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया जाएगा। वे तो प्रधानमंत्री नहीं बने पर बाद में संघ परिवार के दूसरे शेर मोदीजी ने सत्ता संभाली और अजीत डोभाल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बना दिए गए।
    आमतौर पर कांग्रेस शासन काल में आईबी के निदेशक रहे हर अधिकारी को रिटायर होने पर राज्यपाल बना दिया जाता था। इनमें टीवी राजेश्वर, श्यामल दत्ता, एम के नारायणन आदि शामिल है। परन्तु अजीत डोभाल के साथ ऐसा नहीं हुआ। इसकी मूल वजह यही रही कि कांग्रेसी उन्हें भाजपा का आदमी समझते थे।
    लेकिन RSS, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी से अजित डोभाल की नजदीकियों से भी कही ज्यादा अहम उनकी काबीलियत और देशभक्ति है। डोभाल आतंकी संगठनों में घुसकर उनकी कमर तोड़ने वाले अधिकारियों में गिने जाते रहे हैं और मूलतः आपरेशंस में विश्वास करने वाले व्यक्ति हैं।
   आइये जानते हैं भारत माँ के सपूत और संघ की विचारधारा से प्रभावित श्री डोभाल की गौरवशाली गाथा: -
1968 बैच के IPS ऑफिसर अजीत डोभाल ने तैनाती के चार साल बाद ही इंटेलीजेंस ब्यूरो ज्वाइन कर लिया था। 46 साल की अपनी नौकरी में महज 7 साल ही उन्होंने पुलिस की वर्दी पहनी। क्योंकि डोभाल के जीवन का 37 वर्ष देश के लिए जासूसी करते गुजरा है।
    देश के लिए जान की बाजी लगा देने का जज्बा लिए जब एक जासूस अपने मिशन पर निकलता है तो उसके पीछे छूट जाता है उसका परिवार और पूरा समाज। डोभाल ने भी जब इंटेलीजेंश ब्यूरो में काम शुरु किया तो उनका ये काम ही उनकी जिंदगी का जुनून बन गया और 70 के दशक में डोभाल का यही जुनून उन्हें पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम तक खींच लाया था। इनकी कुछ ही समय पहले शादी हुई थी। वे फैमिली छोड़कर चले गए।
    70 के दशक में मिजोरम भारत विरोध का अड्डा बना हुआ था। जहां अलगाववादी नेता लालडेंगा अलग देश की मांग कर रहा था और इसीलिए उसके संगठन मिजो नेशनल आर्मी ने लंबे वक्त से सरकार के खिलाफ खूनी संघर्ष छेड़ रखा था। डोभाल ने जान पर खेलकर एक अंडर कवर ऑपरेशन चलाया और मिजो नेशनल आर्मी की कमर तोड़ दी।
    बाद में लाल डेंगा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अजित डोभाल ने उसके ही संगठन में घुसकर उसके 7 में से 6 टॉप कमांडरों को उसके ही खिलाफ भड़का दिया था। मजबूरन साल 1986 में लाल डेंगा को भारत सरकार के साथ समझौता करने के लिए मजूबर होना पडा था।
   मिजो नेशनल आर्मी को शिकस्त देकर डोभाल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का भी दिल जीत लिया था। यही वजह है कि उन्हें महज 6 साल के करियर के बाद ही इंडियन पुलिस मेडल से सम्मानित भी किया था जबकि ये पुरस्कार 17 साल की नौकरी के बाद ही दिया जाता है ।
   यही नहीं राष्ट्रपति वेंकटरमन ने अजीत डोभाल को 1988 में कीर्तिचक्र से सम्मानित किया तो ये भी एक नई मिसाल बन गई। अजीत डोभाल पहले ऐसे शख्स थे जिन्हें सेना में दिए जाने वाले कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था।
   1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार में आतंकवादियों को मार गिराने के ठीक चार साल बाद 1988 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर भी चलाया गया था। जब स्वर्ण मंदिर में छिपे चरमपंथियों को बाहर निकालने के लिए एक बार फिर सुरक्षा बलों ने धावा बोला था। मंदिर में खालिस्तान समर्थक सुरजीत सिंह पनेटा के आतंकी घुस गए थे। तब डोभाल इलाके में रिक्शा चालक बनकर पहुंचेे। उन्होंने खुद को एेसे पेश किया कि वो पाकिस्तानी आईएसआई एजेंट हैं । आतंकी डोभाल के जाल में फंस गए। डोभाल स्वर्ण मंदिर के अंदर पहुंचे और आतंकियों की संख्या, उनके हथियार और बाकी चीजों का मुआयना किया। उन्होंने पनेटा को नकली विस्फोटक भी दिया। लौटकर पंजाब पुलिस को नक्शा बनाकर दिया, जिसकी मदद से ऑपरेशन चला और कई आतंकी मारे गये। और बाकी आतंकियों ने समर्पण कर दिया।
   डोभाल ने वर्ष 1991 में खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट द्वारा अपहरण किए गए रोमानियाई राजनयिक लिविउ राडू को बचाने की सफल योजना बनाई थी।
   डोभाल की कामयाबी की लिस्ट में आतंकवाद से जूझ रहे पंजाब में चुनाव कराना भी शामिल रहा है। 90 के दशक में आतंकवाद की आग में झुलसते कश्मीर में डोभाल ने आतंकवादियों और आम कश्मीरियों दोनों के साथ संवाद कायम कर लिया था। उन्होंनें अपने अनथक प्रयासों से कश्मीर में माइंड सेट चेंज करने वाला बहुत बड़ा काम किया जिससे आतंकवाद की धारा ही मुड़ गयी थी।
    खूँखार आतंकवादी कूका पैरी का ब्रैनवॉश कर अजीत डोभाल ने उसी के संगठन इखवान ए मुस्लेमीन को आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार कर दिया था। कूका की सूचना पर बहुत से पाकिस्तानी आतंकवादी मारे गये। उसका एक परिणाम ये हुआ कि आतंकवादी संगठनों में अफरा-तफरी मचनी शुरू हो गई और वे एक दूसरे को शक की नजर से देखने लगे। इस तरह डोभाल ने उनकी कमर तोड़ डाली।
    इस सफल अंडर कवर ऑपरेशन के बाद ही कश्मीर में राजनीतिक भी राह निकली थी और कश्मीर में 1996 में केंद्र सरकार चुनाव करवाने में कामयाब रही थी।आतंकवादी कूका पैरी ने भी अपनी राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव में हिस्सा लिया था और वो विधायक चुना गया था। लेकिन 2003 में एक आतंकवादी हमले में वो मारा गया। लेकिन कहा जाता है कि डोभाल ने ही उसे उड़ा दिया था।
    अपनी ऐसी ही साफ समझ की बदौलत अजित डोभाल ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को भी एक बड़े संकट से उभारा था।
    24 दिसंबर 1999 को नेपाल से दिल्ली आ रही एयर इंडिया की फ्लाइट आईसी 814 जिसमें 176 भारतीय सवार थे, को आतंकवादी हाईजैक कर अफगानिस्तान के शहर कंधार ले जाने में कामयाब रहे थे।
    कंधार में हाईजैकिंग का ये पूरा ड्रामा करीब सात दिनों तक चला। ऐसे मुश्किल हालात के बीच अजित डोभाल ने सरकार और आतंकवादियों के बीच बातचीत में अहम भूमिका निभाई थी और सरकार महज तीन आतंकवादियों की रिहाई के बदले 176 भारतियों को सुरक्षित देश वापस लाने में कामयाब रही थी। जबकि आतंकवादी अपने 40 साथियों की रिहाई की मांग कर रहे थे।
    पश्चिम बंगाल के बर्धमान में जब बम फटे तो खुद अजित डोभाल घटना स्थल का जायजा लेने बर्धमान पहुंचे थे। ऐसा पहली बार हुआ कि देश का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मौका ए वारदात पर स्वयं पहुँचा। यही नहीं पश्चिम बंगाल की सरकार के साथ बात करके साफ-साफ उनको ये समझाया कि देखिए ये पश्चिम बंगाल का इश्यू नहीं है, ये बर्धमान का इश्यू नहीं है, ये एक जिला दो जिला या तीन जिला की इश्यू नहीं है। ये पूरे देश का इश्यू है।
    जून महीने में 46 भारतीय नर्सों को ईराक में आतंकी संगठन ISIS ने बंधक बनाया था। तब परदे के पीछे नर्सों की सुरक्षित वापसी के लिए जो ऑपरेशन चला उसके मास्टर माइंड थे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल।
    हाल ही में 4 जून को मणिपुर के चंदेल गांव में उग्रवादियों के हमले में 18 जवान शहीद हो गए थे। डोभाल ने पूर्वोत्तर भारत में सेना पर हुए हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाई और भारतीय सेना ने सीमा पार करके म्यांमार की सेना और एनएससीएन खाप्लांग गुट के बागियों के सहयोग से ऑपरेशन चलाया, जिसमें करीब 30 उग्रवादी मारे गए। अपनी रणनीति को अंजाम देने के लिए डोभाल ने पीएम मोदी के साथ बांग्लादेश जाने का प्लान भी टाल दिया था।
   अजित डोभाल ने अंडर कवर ऑपरेशन के तहत मुंबई अडंरवर्ल्ड में दाउद इब्राहीम को मारने के लिए डॉन छोटा राजन को इस्तेमाल किया था। रॉ के पूर्व अफसर आर के यादव बताते हैं कि कराची में दाउद पर छोटा राजन के आदमी विक्की मल्होत्रा ने जो अटैक किया था। वो दाउद को खत्म करने के लिए डोभाल का ही आपरेशन था।
क्या है अजीत डोभाल का पुराना बयान?
* नेपोलियन कहता था-मरना एक बार है। चाहे तलवार से मरो या एटम बम से। एटमी युद्ध हुआ भी तो हम इतने बच जाएंगे कि दुनिया में पहचान बना लें। लेकिन पाकिस्तान एक देश के रूप में खत्म ही हो जाएगा।
* आप (पाकिस्तान) हम पर सौ पत्थर फेंकोगे तो शायद 90 पत्थरों से हम खुद को बचा लें। लेकिन 10 फिर भी हमें लगेंगे। आप इसी का फायदा उठा रहे हैं। हमें आक्रामक होना होगा। उन्हें साफ कर देना चाहिए कि आप एक और 26/11 करोगे तो बलूचिस्तान खो दोगे।
   डोभाल ने सात साल लाहौर में मुसलमान बनकर गुजारे और तरह-तरह का भेष बदलकर जासूसी की है। उन्होंने इस्लामाबाद में नौकरी भी की है।
    अजित डोभाल ने न केवल पाकिस्तान की जमीन पर सालों गुजारे बल्कि वो चीन और बांग्लादेश की सीमा के उस पार मौजूद आतंकवादी संगठनों और घुसपैठियों की नाक में नकेल डालने में भी कामयाब रहे हैं।
   यही नहीं डोभाल ने पाकिस्तान और ब्रिटेन में राजनयिक जिम्मेदारियां भी संभालीं और फिर करीब एक दशक तक खुफिया ब्यूरो की ऑपरेशन शाखा का लीड किया।
   वैसे बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के प्रमुखों को आमंत्रित करने की सलाह उन्होंने ही मोदी को दी थी। कहते हैं कि उन्होने ही अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से बात कर राष्ट्रपति ओबामा की भारत यात्रा तय करवाई। उन्हें जानने वाले लोग बताते हैं कि राजग के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र को खबरों में बने रहना अच्छा लगता था जबकि डोभाल चुपचाप काम करने में विश्वास करते हैं। शायद इसकी एक वजह उनकी आईबी की जासूस पृष्ठभूमि भी है।
    डोभाल ने चाइना, म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, जापान आदि मोदीजी के अनेकों सफल विदेश दौरोंं पर अपना रोल बखूबी निभाया। चाहे डिफेंस मिनिस्टर हो चाहे होम मिनिस्टर हो, चाहे प्राइम मिनिस्टर हो, सबको इन पर काफी भरोसा है।
    राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी मामला हो या विदेश नीति से संबंध का कोई मसला या रक्षा सौदों की बात हो। हर जगह उनकी सलाह ली जा रही हैं। चीन और पाकिस्तान के साथ संबंधों के मामले में तो उनकी भूमिका और भी अहम है। अमेरिका के साथ आतंकवाद के मुद्दे पर बात करनी हो या यूरोपीय देशों से काला धन लाने की मुहिम हो, हर जगह उनकी सलाह ली जा रही है।
   जो रक्षा खरीद दशकों से नहीं हो पायी थी, उन्हें उनके आते ही हरी झंडी मिलनी शुरु हो गई है। इजरायल से रक्षा संबंधी उपकरणों की 525 मिलियन डॉलर का सौदा वर्षों से लटका चला आ रहा था। अक्टूबर में डोभाल की वहां के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जोसेफ कोहेन के साथ मुलाकात हुई व तीसरे ही दिन ही इसे खरीद की स्वीकृति जारी कर दी गई।
    बताते हैं कि वे शुरु से ही इजरायल के साथ रक्षा क्षेत्र में घनिष्ठ रिश्ते बनाए जाने के समर्थक रहे हैं। डोभाल को फाइलों पर नोटिंग कर उसे एक मंत्रालय से दूसरे मंत्रालय में या फिर विभागों में चक्कर खिलवाते रहने का शौक नहीं है। वे फैसले लेने में जरा भी देर नहीं करते हैं।
    उनके बारे में आईबी में एक चुटकुला काफी चर्चित रहा। वहां के लोग बताते हैं कि उनका मुंह उनके दिमाग से भी कहीं ज्यादा तेजी से काम करता है। यही वजह है कि जब वे बोलते हैं तो अक्सर तमाम शब्द मुंह में ही छूट जाते हैं क्योंकि दिमाग जो सोच रहा होता है, जुबान उससे पहले ही उसे कह देने के लिए बैचेन रहती है। उनकी एक खासियत यह भी है कि वे आमतौर पर आला अफसरों की तरह सरकारी प्रोटोकाल निभाने में विश्वास नहीं रखते हैं।
     श्री अजित डोभाल भारत में हिम्मत और जासूसी की दुनिया का एक चेहरा बन गये हैं । वो आज नरेंद्र मोदी की सरकार में रुतबे और रसूख की एक नई पहचान बन चुके हैं । देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की प्रधानमंत्री मोदी से ये करीबियत ही उनकी अहमियत को बयान कर देती है।
अजीत डोभाल ने सीमापार पलने वाले आतंकवाद को करीब से देखा है और आज भी आतंकवाद के खिलाफ उनका रुख बेहद सख्त माना जाता है। कहते हैं उपरवाले ने इनमें देश के दुश्मनों की खातिर दया का एक भी पुर्जा नहीं बनाया है।  
माँ भारती के शेर को शत्-शत् नमन ।