जाने संस्कार क्या है...?
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जाने संस्कार क्या है...?

    संस्कार का अर्थ है किसी वस्तु का परिष्कार, सुधार शुद्धि। परिशोधित करना, अशुद्धियों को दूर करना। यह उदाहरण जड़ वस्तु का है परन्तु यहाँ संस्कार से हमारा आशय मनुष्य के मन, बुद्धि, भावना, अहंकार को चमकाने विकसित करने से है। कोष ग्रन्थों में ‘संस्कृत शब्द का अर्थ भी संस्कार शब्द से मिलता जुलता है। इसका अर्थ शुद्ध किया हुआ परिमार्जित, परिष्कृत, सुधारा हुआ, सँवारा हुआ है।
   प्राचीन काल में ऋषियों ने संस्कारों का निर्माण मनुष्य के समग्र व्यक्तित्व के परिष्कार के लिए किया था। यह विश्वास किया जाता था कि संस्कारों के अनुष्ठान जो कि पूर्णतया आध्यात्मिक वैज्ञानिक तरीके से व्यक्ति में दैवी गुणों का आविर्भाव हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को अनुशासित किया जाना उसकी आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक है। आध्यात्मिक उन्नति मानव के चरम विकास का पर्याय है संस्कारों से इसी की पूर्ति होती है।
 "इस तरह मानव जीवन को पवित्र एवं उत्कृष्ट बनाने वाले आध्यात्मिक उपचार का नाम ही संस्कार है।’’
संस्कार कैसे बनते हैं?
   संस्कारों का प्रारम्भ अभ्यास से होता है। वस्तुतः मनुष्य अपने संस्कारों का दास होता है। संस्कार बहुत ढीठ प्रकृति के होते हैं। ये जल्दी नहीं बदलते।
संस्कार निर्माण की प्रक्रियाः-
1. विचार
2. विचार की पुनरावृत्ति (बारम्बार चिन्तन)
3. विचारों का कर्म से क्रियान्वयन
4. कर्म की पुनरावृत्ति (अभ्यास)
5. आदत बन जाना।
6. प्रवृत्ति बन जाना व जीवन के साथ प्रवृत्ति का ओत प्रोत हो जाना
7. संस्कार- (स्वभाव में परिणित हो जाना)
8. तद्नुरूप चरित्र का निर्माण
9. व्यक्तित्व का निर्माण
    विचार से संस्कार बनता है, संस्कार से चरित्र बनते हैं और चरित्र ही व्यक्तित्व बनाता है। भारतीय संस्कृति में 16 प्रकार के संस्कारों का उल्लेख मिलता है। वर्तमान समय में यह संस्कार परम्परा एक तरह से लुप्त ही हो गयी थी जिसे गायत्री परिवार के संस्थापक वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं.श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने पुनर्जीवित किया।
वर्तमान परिवेश के अनुकूल उसे नया स्वरूप देते हुए उसकी वर्तमान में संख्या 12 है जिसमें दो संस्कारों को व्यक्ति निर्माण एवं परिवार निर्माण के शिक्षण के ध्येय से नया जोड़ा गया है।
   गुरु चिकित्सक की भांति शिवम् के चित्त एवं मनः क्षेत्र में जमे हुए जन्म- जन्मान्तर के कुसंस्कारों का उच्छेदन करता है, उसके प्रारब्ध को संवारता है।
संस्कार निर्माण के उपाय
   भक्ति एवं समर्पण बुद्धि के द्वारा जब साधक अपने कुसंस्कारों से मुक्ति हेतु अपने ईष्ट या गुरु को आर्त भाव से पुकारता है और उसके निमित्त तप करता है, अपने कुविचारों और गलत आदतों से लड़ता है, अपने आप से संघर्ष करता है, तो कुसंस्कारों का शमन होता है, श्रेष्ठ संस्कारों की स्थापना होती है।