आशुतोष त्रिपाठी की बाहदुरी पर एक लेख
पत्रकारिता में जनसरोकार सबसे बड़ी पूंजी है। इसे संभालकर रखना पत्रकारों का धर्म है। शायद बदलते दौर में पत्रकारिता के नैतिक मूल्य पीछे छुटते जा रहे हैं, इन मूल्यों को बचाना भी पत्रकारों का काम है। लेखनी के जरिये समाज को हर तबके को लाभ मिले इसका ख्याल रखना चाहिए। इसके अलावा सतत सर्तकता और सजगता की अवश्यकता होती है। इसीके बल पर जनहित से जुड़ी खबरें लोगों के सामने आती है।
लखनऊ सचिवालय थाना इंचार्ज और इंस्पेक्टर प्रदीप कुमार जीपीओ चैराहे पर पहुंचे। वे सड़क किनारे दुकान चलाने वालों का सामान तोड़ने लगे। इसी दौरान वहां एक बुजुर्ग टाइपिस्ट कृष्ण कुमार का टाइपराइटर उठाकर उन्होंने फेंक दिया। बुजुर्ग टाइपिस्ट हाथ जोड़कर अपनी रोजी-रोटी की दुहाई देते रहे, लेकिन इंस्पेक्टर ने इसे अनसुना कर दिया। सड़क किनारे चाय लगाने वालों के बर्तन भी फेंक दिए। इससे वहां रखा दूध फैल गया।
वहां पर मौजूद दैनिक भाष्कर के छायाकार अशुतोष त्रिपाठी ने पूरी घटना कैमरे में कैद कर ली। उन्होने छायाकार को धमकाया भी लेकिन वह डरे नहीं बड़ी निर्भिकता से अपना काम करते रहे। पहले तस्वीरों को समाप्त करने का दबाव बनाते रहे। लेकिन उन्होंने देखा की छायाकार उनकी बात नहीं सुन रहा तो वह नराजगी में बोले मेरा नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखना, ताकि एसएसपी भी मेरे बारे में जान सकें।
मायावती के मुख्यमंत्रीत्वकाल में जीपीओ की लगी दुकानों को सिर्फ काफिला जाते समय ही हटाया जाता था। इस खबर के बाद इंस्पेक्टर की फोटो सोशल मीडिया पर जमकर शेयर हुई। इसके बाद लखनऊ के एसएसपी राजेश पांडे ने इंस्पेक्टर प्रदीप कुमार को संस्पेंड कर दिया। मुख्यमंत्री ने पूरे मामले में सक्रियता दिखाते हुए जिलाधिकारी राजशेखर और एसएसपी पांडे ने पीडि़त बुजुर्ग के गोमती नगर इलाके में मौजूद घर जाकर टाइपराइटर दिया। घटना बहुुत छोटी है मगर झकझोर देने वाली है। क्या अपने देश में अभी भी अग्रेंजीयत का शासन चल रहा है। ऐसी घटनाओं में पत्रकारिता की संजदीगी भी देखने को मिली। यह छोटी से घटना पूरे देश में आग की तरह फैल गई। पत्रकारिता का असली स्वरूप भी दिखाई दिया। नैतिक मूल्यों का सही मायने क्या होता है यह भी सिखाया। इस घटना से बुर्जुग कृष्णकांत का खोया हुआ सम्मान भी प्राप्त हुआ बल्कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक लाख रुपए आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है। कई सामाजिक संगठन भी उनकी मदद को आगे आए। उनके पास हजारों की संख्या में फोन आ चुके हैं। ज्यादातर लोगों ने उनसे मदद करने के नाम पर उनका अकाउंट नंबर मांगा। सोशल मीडिया में आशुतोष द्वारा खींची गई तस्वीर को अपने देश के अलावा विदेशों में सराहा गया, और कृष्णकांत को उचित न्याय मिला। यह पत्रकारिता की जीत है। यह नैतिक मूल्यों को जीवंात करने का एक उदाहरण है। इस खबर ने कृष्ण कुमार के आस-पास दुकानदारों को भी बल मिला और वह भी अपने आप को गौरन्वित महशूश कर रहे हैं। इस घटना से पुलिस वालों को भी सबक मिला होगा। जो जनता के मित्र हैं पर मित्रता निभातें नहीं है। वैसे कुछ ही पुलिस वाले ऐसे बदनामी भरे कार्य कर रहे हैं। पुलिस का काम जनता को राहत देने का है। लेकिन ऐसे कृत्य उनके पूरे महकमें को बदनाम करने का काम किया है। इससे सारे विभाग की बदनामी हुई है। इस घटना से सबक लेते हुए शायद पुलिस वाले अब सुधर जाए वह पुलिस के सच्चे मित्र हो जाए तो भी जनता का भला हो सकता है।
इस घटना से पत्रकारिता को बल मिला है। नये ऊर्जावान लोग इससे बहुत कुछ सीखगें। अगर हर दिन ऐसी छोटी बड़ी घटनाओं को संज्ञान ले लिया जाए तो शायद समाज में अरजकता की कमी आयेगी, और कानून का इकबाल कायम रहेगा। किसी गरीब के साथ अन्याय नहीं होगा। यही पत्रकारिता के सच्चे मायने भी है। अन्याय को उजागर करना भी पत्रकारों का धर्म होता है। अभी तक पत्रकारिता को सिर्फ गाली सुनते ही देखा, यहां तक इसकी अलोचना भी बड़े स्तर पर होती है। संगोष्ठियों में पत्रकारिता में बैठे बड़े लोग इसका उपहास उड़ाते हैं। फिर भी उनसे पूंछना चाहिए कि यह पत्रकारिता कैसे बचेगी। इसे बचाने के लिए कौन आगे आयेगा। इसका उत्तर आज आशुतोष ने दे दिया है। इसे बचाना हम सभी नौजावन पत्रकारों का धर्म और कर्म दोनों है। अन्याय जिस प्रकार का हो उस पर खुलेआम विरोध दर्ज कराना होगा। हर छोटी बड़ी घटना को अगर अखबार नहीं छापता तो उसे सोशल मीडिया में प्रयोग करना चाहिए जिससे हमारी खबर का असर भी होगा। सरकार को भी मजबूर होना पड़ेगा। पत्रकारिता को बचाने का सबसे कारगर औजार है। ऐसा नहीं की यह कोई पहली घटना है। तमाम घटनाएं रोज हमारे सामने से गुजरती है। हजारों कृष्ण कुमार हर दिन परेशान होते हैं। लेकिन ऐसी घटनाओं का शायद ही कोई संज्ञान लेता हो। राजनीति में हर छोटी बड़ी घटना सुर्खियों में होती है। यह कमीं किसकी है इस पर भी विचार जरूरी है। आधुनिक पत्रकारिता में कोई भी व्यक्ति किसी घटना को छिपा नहीं सकता है। क्योंकि इसमें सोशल मीडिया बहुत ज्यादा धारदार है। यहां पर हर प्रकार की घटना को लिख सकतें है। शासन-प्रशासन तक पहुंचा सकते हैं। यह सभी के लिए प्रयोग करने के लिए बनी है। इसमें कोई बात दब नहीं सकती है। पत्रकारिता में कोई भी खबर छोटी बड़ी नहीं होती है। समाज से जुड़ी हर खबर को प्राथमिकता देनें की जरूरत है। राजधानी की इस घटना को देश-विदेश के हर अखबार और चैनल पोर्टल ने जगह दी। खबर को बस सही ढंग से प्रस्तुत करने की जरूरत है। पत्रकारिता के बड़े धुरंधरों और बुद्धिमानों को नयी पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए उन्हे मार्गदर्शन देने की जरूरत है। बस सेमिनार और संगोष्ठियों में पत्रकारिता को उपेक्षित करने से काम नहीं चलेगा। पत्रकारिता काम सिर्फ नकारात्मक खबरों को छपने से ख्याति नहीं मिलती है। सकारात्मक खबर से पत्रकारिता का प्रसार बढ़ता है। आज पत्रकारिता के मायने बदल रहे हैं। इसे भी ठीक करने की अवश्यकता है। पत्रकारिता को मिशनवादी रूप भी विकसित करना जरूरी है। समाज से जुड़ी हर खबर से सरोकार होना जरूरी है। तभी मिशन पूरा हो सकता है।
पत्रकारिता में जनसरोकार सबसे बड़ी पूंजी है। इसे संभालकर रखना पत्रकारों का धर्म है। शायद बदलते दौर में पत्रकारिता के नैतिक मूल्य पीछे छुटते जा रहे हैं, इन मूल्यों को बचाना भी पत्रकारों का काम है। लेखनी के जरिये समाज को हर तबके को लाभ मिले इसका ख्याल रखना चाहिए। इसके अलावा सतत सर्तकता और सजगता की अवश्यकता होती है। इसीके बल पर जनहित से जुड़ी खबरें लोगों के सामने आती है।
लखनऊ सचिवालय थाना इंचार्ज और इंस्पेक्टर प्रदीप कुमार जीपीओ चैराहे पर पहुंचे। वे सड़क किनारे दुकान चलाने वालों का सामान तोड़ने लगे। इसी दौरान वहां एक बुजुर्ग टाइपिस्ट कृष्ण कुमार का टाइपराइटर उठाकर उन्होंने फेंक दिया। बुजुर्ग टाइपिस्ट हाथ जोड़कर अपनी रोजी-रोटी की दुहाई देते रहे, लेकिन इंस्पेक्टर ने इसे अनसुना कर दिया। सड़क किनारे चाय लगाने वालों के बर्तन भी फेंक दिए। इससे वहां रखा दूध फैल गया।
वहां पर मौजूद दैनिक भाष्कर के छायाकार अशुतोष त्रिपाठी ने पूरी घटना कैमरे में कैद कर ली। उन्होने छायाकार को धमकाया भी लेकिन वह डरे नहीं बड़ी निर्भिकता से अपना काम करते रहे। पहले तस्वीरों को समाप्त करने का दबाव बनाते रहे। लेकिन उन्होंने देखा की छायाकार उनकी बात नहीं सुन रहा तो वह नराजगी में बोले मेरा नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखना, ताकि एसएसपी भी मेरे बारे में जान सकें।
मायावती के मुख्यमंत्रीत्वकाल में जीपीओ की लगी दुकानों को सिर्फ काफिला जाते समय ही हटाया जाता था। इस खबर के बाद इंस्पेक्टर की फोटो सोशल मीडिया पर जमकर शेयर हुई। इसके बाद लखनऊ के एसएसपी राजेश पांडे ने इंस्पेक्टर प्रदीप कुमार को संस्पेंड कर दिया। मुख्यमंत्री ने पूरे मामले में सक्रियता दिखाते हुए जिलाधिकारी राजशेखर और एसएसपी पांडे ने पीडि़त बुजुर्ग के गोमती नगर इलाके में मौजूद घर जाकर टाइपराइटर दिया। घटना बहुुत छोटी है मगर झकझोर देने वाली है। क्या अपने देश में अभी भी अग्रेंजीयत का शासन चल रहा है। ऐसी घटनाओं में पत्रकारिता की संजदीगी भी देखने को मिली। यह छोटी से घटना पूरे देश में आग की तरह फैल गई। पत्रकारिता का असली स्वरूप भी दिखाई दिया। नैतिक मूल्यों का सही मायने क्या होता है यह भी सिखाया। इस घटना से बुर्जुग कृष्णकांत का खोया हुआ सम्मान भी प्राप्त हुआ बल्कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक लाख रुपए आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है। कई सामाजिक संगठन भी उनकी मदद को आगे आए। उनके पास हजारों की संख्या में फोन आ चुके हैं। ज्यादातर लोगों ने उनसे मदद करने के नाम पर उनका अकाउंट नंबर मांगा। सोशल मीडिया में आशुतोष द्वारा खींची गई तस्वीर को अपने देश के अलावा विदेशों में सराहा गया, और कृष्णकांत को उचित न्याय मिला। यह पत्रकारिता की जीत है। यह नैतिक मूल्यों को जीवंात करने का एक उदाहरण है। इस खबर ने कृष्ण कुमार के आस-पास दुकानदारों को भी बल मिला और वह भी अपने आप को गौरन्वित महशूश कर रहे हैं। इस घटना से पुलिस वालों को भी सबक मिला होगा। जो जनता के मित्र हैं पर मित्रता निभातें नहीं है। वैसे कुछ ही पुलिस वाले ऐसे बदनामी भरे कार्य कर रहे हैं। पुलिस का काम जनता को राहत देने का है। लेकिन ऐसे कृत्य उनके पूरे महकमें को बदनाम करने का काम किया है। इससे सारे विभाग की बदनामी हुई है। इस घटना से सबक लेते हुए शायद पुलिस वाले अब सुधर जाए वह पुलिस के सच्चे मित्र हो जाए तो भी जनता का भला हो सकता है।
इस घटना से पत्रकारिता को बल मिला है। नये ऊर्जावान लोग इससे बहुत कुछ सीखगें। अगर हर दिन ऐसी छोटी बड़ी घटनाओं को संज्ञान ले लिया जाए तो शायद समाज में अरजकता की कमी आयेगी, और कानून का इकबाल कायम रहेगा। किसी गरीब के साथ अन्याय नहीं होगा। यही पत्रकारिता के सच्चे मायने भी है। अन्याय को उजागर करना भी पत्रकारों का धर्म होता है। अभी तक पत्रकारिता को सिर्फ गाली सुनते ही देखा, यहां तक इसकी अलोचना भी बड़े स्तर पर होती है। संगोष्ठियों में पत्रकारिता में बैठे बड़े लोग इसका उपहास उड़ाते हैं। फिर भी उनसे पूंछना चाहिए कि यह पत्रकारिता कैसे बचेगी। इसे बचाने के लिए कौन आगे आयेगा। इसका उत्तर आज आशुतोष ने दे दिया है। इसे बचाना हम सभी नौजावन पत्रकारों का धर्म और कर्म दोनों है। अन्याय जिस प्रकार का हो उस पर खुलेआम विरोध दर्ज कराना होगा। हर छोटी बड़ी घटना को अगर अखबार नहीं छापता तो उसे सोशल मीडिया में प्रयोग करना चाहिए जिससे हमारी खबर का असर भी होगा। सरकार को भी मजबूर होना पड़ेगा। पत्रकारिता को बचाने का सबसे कारगर औजार है। ऐसा नहीं की यह कोई पहली घटना है। तमाम घटनाएं रोज हमारे सामने से गुजरती है। हजारों कृष्ण कुमार हर दिन परेशान होते हैं। लेकिन ऐसी घटनाओं का शायद ही कोई संज्ञान लेता हो। राजनीति में हर छोटी बड़ी घटना सुर्खियों में होती है। यह कमीं किसकी है इस पर भी विचार जरूरी है। आधुनिक पत्रकारिता में कोई भी व्यक्ति किसी घटना को छिपा नहीं सकता है। क्योंकि इसमें सोशल मीडिया बहुत ज्यादा धारदार है। यहां पर हर प्रकार की घटना को लिख सकतें है। शासन-प्रशासन तक पहुंचा सकते हैं। यह सभी के लिए प्रयोग करने के लिए बनी है। इसमें कोई बात दब नहीं सकती है। पत्रकारिता में कोई भी खबर छोटी बड़ी नहीं होती है। समाज से जुड़ी हर खबर को प्राथमिकता देनें की जरूरत है। राजधानी की इस घटना को देश-विदेश के हर अखबार और चैनल पोर्टल ने जगह दी। खबर को बस सही ढंग से प्रस्तुत करने की जरूरत है। पत्रकारिता के बड़े धुरंधरों और बुद्धिमानों को नयी पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए उन्हे मार्गदर्शन देने की जरूरत है। बस सेमिनार और संगोष्ठियों में पत्रकारिता को उपेक्षित करने से काम नहीं चलेगा। पत्रकारिता काम सिर्फ नकारात्मक खबरों को छपने से ख्याति नहीं मिलती है। सकारात्मक खबर से पत्रकारिता का प्रसार बढ़ता है। आज पत्रकारिता के मायने बदल रहे हैं। इसे भी ठीक करने की अवश्यकता है। पत्रकारिता को मिशनवादी रूप भी विकसित करना जरूरी है। समाज से जुड़ी हर खबर से सरोकार होना जरूरी है। तभी मिशन पूरा हो सकता है।
(Vivek Tripathi)