65000 की नौकरी छोड़ यह कर रहे है मरीजो की निशुल्क सेवा
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65000 की नौकरी छोड़ यह कर रहे है मरीजो की निशुल्क सेवा

65000 की नौकरी छोड़ने का कारण जानने के बाद आप भी करेंगे इन्हे सलाम
     यह बात सच है कि ना जाने एक व्यक्ति की जिंदगी कब और कैसे बदल जाए। हालाकि प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा यही होती है कि पढ़ लिख कर उसे कोई ऐसी नौकरी मिले जिससे उसे अधिक से अधिक पैसा कमा कर अपने परिवार का अच्छे से लालन पालन कर उसे बेहतर जिंदगी दे। मुंबई के विजय ठाकुर उक्त विचार रखने वाले व्यक्तियो से भिन्न है बल्कि उनकी सोच ऐसे विचार के विपरीत है।
      विजय ठाकुर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के पश्चात 65,000 रूपए प्रति माह की नौकरी कर रहे थे, किंतु एक घटना ने उनकी जिंदगी को बदल कर रख दिया जिसके परिणामस्वरूप उन्होने 65,000 रूपए की नौकरी छोड़कर टेक्सी चलाने को प्राथमिकता दी। नौकरी की तुलना मे तो एक टैक्सी ड्राईवर 65,000 रूपए नही कमा सकता लेकिन विजय ठाकुर को जो टैक्सी चलाकर आय हो रही है वह उस से संतुष्ठ है हालांकि टैक्सी के जरिए उनको केवल 10,000 रूपए ही कमाते है। विजय ठाकुर के टैक्सी ड्राईवर बनने से उनका परिवार प्रसन्न नही है लेकिन जब आप इस व्यक्ति के टैक्सी ड्राईवर बनने का कारण जानेगे तो निश्चित रूप से आप भी उनके साहस को प्रणाम करेंगे।
     विजय ठाकुर ने 65,000 रूपए की नौकरी छोड़कर टैक्सी चलाने के साथ-साथ मरीजो को निशुल्क सेवा दे रहे है। उनका कहना है कि 1984 में उनकी पत्नी का गर्भपात हुआ था, जिसके चलते उन्हें रात के 2 बजे अस्पताल ले जाना पड़ा। पर कोई भी टैक्सी या रिक्शा चालक उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ। ऐसे में विजय ने तय किया कि वो अंत तक कोशिश करेंगे जरूरतमंदों को वक़्त पर अस्पताल पहुंचाने की।
   अपने इस पेशे से वो सिर्फ़ 10,000 रुपये महीना कमाते हैं और साथ ही वो ज़रूरतमंद लोगों को फ्री में अस्पताल भी पहुंचाते हैं। वे हमेशा सवारियों को अपना कार्ड भी देते हैं जो उन्हें ज़रूरत पड़ने पर सुबह के 3 बजे भी कॉल कर सकते हैं।
    वे कुछ महीनों पहले हुए एक वाकये का ज़िक्र करते हुए बताते हैं कि सुबह के 2 बजे, उन्होंने दो व्यक्तियों को टैक्सी रोकने का असफ़ल प्रयास करते देखा तो वे उनके पास गये, उनकी नज़र व्यक्तियों के साथ खड़ी एक महिला पर पड़ी जो 75 प्रतिशत जल चुकी थी। यही कारण था कि कई टैक्सी ड्राइवर उस महिला को अपनी टैक्सी में बैठाने सा कतरा रहे थे। लेकिन उन्होंने उस महिला को अपनी कार में बैठाया और टैक्सी में पड़ा एक कंबल भी उसे दिया और उसे खुद को पुरी तरह से ढकने को कहा। इसके बाद वे उन्हें पास के अस्पताल ले गए। वे लगातार ये जानने का भी प्रयास करते रहे कि वो महिला जीवित है या नहीं। अब वो महिला उनकी अच्छी दोस्त बन गई है और आज भी वो उन्हें उस रात के लिए धन्यवाद कहती है।
     “26 जुलाई में आई बाढ़ और 26/11 के हमलों के दौरान भी मेरी यही कोशिश रही थी कि मैं उन लोगों तक पहुंच पाऊं जिन्हें मेरी ज़रूरत है। अब मैं 74 साल का हूं और 11 भाषाएं बोल लेता हूं। आज तक मैंने 500 से ज़्यादा ज़रूरतमंदो को अस्पताल पहुंचाया है। जब भी कोई मुझे टैक्सी ड्राइवर कहता है तो मुझे खुद पर गर्व ही होता है”।