सियाचिन में जवान के जिन्दा बचने पर Mauro Prosperi की कहानी याद आ गयी ... इन्हें "किंग ऑफ़ डेजर्ट" के नाम से जाना जाता है ... क्योकि ये नौ दिनों पर सहारा के विशाल रेगिस्तान में भटक गये थे और बिना पानी और खाना के जिन्दा रहे ...
Mauro Prosperi इटली के पुलिस अधिकारी थे और 1994 में मोरक्को में होने वाले "सहारा रेस " में भाग लेगे गये थे .. करीब दस घंटे बाद ये रेस के रूट से भटक गये ... फिर तो ये सहारा के खतरनाक रेगिस्तान में और भी अंदर तक भटकते रहे ...
दो दिनों तक जब इनका कोई पता नही चला तक एक प्लेन और हेलीकॉप्टर को इनकी खोज में लिए भेजा गया लेकिन वो भी इनका पता नही नही लगा सके ...
मौरो भटकते भटकते रेगिस्तान में एकदम अंदर तक चले गये .. 56 डिग्री तेज तापमान से इनके शरीर का पानी खत्म होने लगा और ये डिहाईड्रेशन की वजह इनके शरीर के कई अंगो में खराबी आने लगी .. इनका दिमाग भी मतिभ्रम का शिकार होने लगा ... ये अपना पेशाब पीकर, रेगिस्तान के कीड़ो मकोडो और सांपो को खाकर जिन्दा रहे ... एक कब्र पर इन्हें कुछ चमगादड़ मिली तो ये आठ चमगादड़ को खा गये ... फिर जब इनके शरीर में उर्जा मिली तो ये फिर से चलने लगे ... लेकिन पांच दिनों तक चलने के बाद जब इनकी हिम्मत जबाब दे गयी तो इन्होने आत्महत्या करने के लिए अपने पेन नाइफ से अपनी कलाई की नसे काट ली ... लेकिन पानी की कमी की वजह से इनका खून इतना गाढ़ा हो गया था की घाव पर आते ही जम गया ... इन्होने दो चीरे और लगाये .. लेकिन मरने में असफलता ही मिली ... फिर इनकी अंतरात्मा ने इन्हें कहा की जब ईश्वर तुम्हे मरने ही नही दे रहा है तो तुम जिन्दगी के लिए संघर्ष करो ...फिर इन्होने रेगिस्तान में कई कीड़े मकोड़े सांप आदि पकड़कर खाए ... फिर जब इनके दिमाग को उर्जा मिली तो इन्हें एक नियम याद आया ... जिसमे अनुसार यदि तुम रेगिस्तान में भटक जाओ तो एकदम सुबह जिस दिशा में बादल नजर आये उसी दिशा में चलते रहो .. क्योकि बादल उसी दिशा में नजर आते है जिधर पेड़ होंगे ... फिर वो तपती रेगिस्तान में बालू के नीचे अपने आपको दबाकर सो गये .. और अगली सुबह बादलो की दिशा में चलते रहे .. कुछ चार दिन और चलने के बाद इन्हें एक छोटी सी बच्ची नजर आई जो बकरी चरा रही थी .. वो बच्ची इन्हें देखते ही डरकर भाग गयी ... ये बहुत चिल्लाए लेकिन बच्ची नही रुकी .. फिर ये एक बकरी को मारकर खा गये ... जिससे इनके शरीर को पानी और उर्जा मिली ... करीब दो घंटे के बाद वो बच्ची अपने पिता को बुलाकर लाई.. ये भटकते भटकते अल्जीरिया में चले गये थे ... उस बच्ची के पिता ने इन्हें अपने कबीले ले गया .. पानी दिया और पुलिस को खबर की .. पुलिस आई ..फिर उसे पता चला ...
फिर जब ये खबर मोरक्को और इटली पहुंची तो किसी को विश्वास ही नही हुआ क्योकि पुरे नौ दिनों के बाद सहारा के रेगिस्तान में मौरो जिन्दा रहे थे ... और कई हजार किलोमीटर पैदल चले थे ...
बाद में उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था .. इनकी किडनी, लीवर आदि को काफी नुकसान हुआ था जो बाद में एकदम ठीक हो गया .. बाद में दो सालो बाद मौरो फिर उसी दौड़ में हिस्सा लिए और उसे पूरा किये ...
इनकी इस कहानी को फॉक्स, नेट जियो और डिस्कवरी पर भी दिखाया गया था ..इस कहानी से हमे यही प्रेरणा मिलती है की बुरी से बुरी स्थिति में हिम्मत नही हारनी चाहिए ...इन्सान यदि चाह ले तो वो प्रकृति को हरा सकता है.
Mauro Prosperi इटली के पुलिस अधिकारी थे और 1994 में मोरक्को में होने वाले "सहारा रेस " में भाग लेगे गये थे .. करीब दस घंटे बाद ये रेस के रूट से भटक गये ... फिर तो ये सहारा के खतरनाक रेगिस्तान में और भी अंदर तक भटकते रहे ...
दो दिनों तक जब इनका कोई पता नही चला तक एक प्लेन और हेलीकॉप्टर को इनकी खोज में लिए भेजा गया लेकिन वो भी इनका पता नही नही लगा सके ...
मौरो भटकते भटकते रेगिस्तान में एकदम अंदर तक चले गये .. 56 डिग्री तेज तापमान से इनके शरीर का पानी खत्म होने लगा और ये डिहाईड्रेशन की वजह इनके शरीर के कई अंगो में खराबी आने लगी .. इनका दिमाग भी मतिभ्रम का शिकार होने लगा ... ये अपना पेशाब पीकर, रेगिस्तान के कीड़ो मकोडो और सांपो को खाकर जिन्दा रहे ... एक कब्र पर इन्हें कुछ चमगादड़ मिली तो ये आठ चमगादड़ को खा गये ... फिर जब इनके शरीर में उर्जा मिली तो ये फिर से चलने लगे ... लेकिन पांच दिनों तक चलने के बाद जब इनकी हिम्मत जबाब दे गयी तो इन्होने आत्महत्या करने के लिए अपने पेन नाइफ से अपनी कलाई की नसे काट ली ... लेकिन पानी की कमी की वजह से इनका खून इतना गाढ़ा हो गया था की घाव पर आते ही जम गया ... इन्होने दो चीरे और लगाये .. लेकिन मरने में असफलता ही मिली ... फिर इनकी अंतरात्मा ने इन्हें कहा की जब ईश्वर तुम्हे मरने ही नही दे रहा है तो तुम जिन्दगी के लिए संघर्ष करो ...फिर इन्होने रेगिस्तान में कई कीड़े मकोड़े सांप आदि पकड़कर खाए ... फिर जब इनके दिमाग को उर्जा मिली तो इन्हें एक नियम याद आया ... जिसमे अनुसार यदि तुम रेगिस्तान में भटक जाओ तो एकदम सुबह जिस दिशा में बादल नजर आये उसी दिशा में चलते रहो .. क्योकि बादल उसी दिशा में नजर आते है जिधर पेड़ होंगे ... फिर वो तपती रेगिस्तान में बालू के नीचे अपने आपको दबाकर सो गये .. और अगली सुबह बादलो की दिशा में चलते रहे .. कुछ चार दिन और चलने के बाद इन्हें एक छोटी सी बच्ची नजर आई जो बकरी चरा रही थी .. वो बच्ची इन्हें देखते ही डरकर भाग गयी ... ये बहुत चिल्लाए लेकिन बच्ची नही रुकी .. फिर ये एक बकरी को मारकर खा गये ... जिससे इनके शरीर को पानी और उर्जा मिली ... करीब दो घंटे के बाद वो बच्ची अपने पिता को बुलाकर लाई.. ये भटकते भटकते अल्जीरिया में चले गये थे ... उस बच्ची के पिता ने इन्हें अपने कबीले ले गया .. पानी दिया और पुलिस को खबर की .. पुलिस आई ..फिर उसे पता चला ...
फिर जब ये खबर मोरक्को और इटली पहुंची तो किसी को विश्वास ही नही हुआ क्योकि पुरे नौ दिनों के बाद सहारा के रेगिस्तान में मौरो जिन्दा रहे थे ... और कई हजार किलोमीटर पैदल चले थे ...
बाद में उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था .. इनकी किडनी, लीवर आदि को काफी नुकसान हुआ था जो बाद में एकदम ठीक हो गया .. बाद में दो सालो बाद मौरो फिर उसी दौड़ में हिस्सा लिए और उसे पूरा किये ...
इनकी इस कहानी को फॉक्स, नेट जियो और डिस्कवरी पर भी दिखाया गया था ..इस कहानी से हमे यही प्रेरणा मिलती है की बुरी से बुरी स्थिति में हिम्मत नही हारनी चाहिए ...इन्सान यदि चाह ले तो वो प्रकृति को हरा सकता है.
(J.P. Singh)