बीजेपी में नेता पुत्रों के लिए रेड कार्पेट
Headline News
Loading...

Ads Area

बीजेपी में नेता पुत्रों के लिए रेड कार्पेट


    ग्वालियर।। वंशवाद के लिए कांग्रेस को कोसने वाली भारतीय जनता पार्टी में भी ये प्रथा बढ़ती जा रही है। पार्टी में बड़े कद वाले ग्वालियर के तीन नेता अपने पुत्रों का इस वर्ष राजनीतिक ‘तिलक’ करने की कवायद में जुटे हुए हैं। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, राज्यसभा सांसद प्रभात झा और प्रदेश की काबीना मंत्री माया सिंह के बेटे इस साल सक्रिय राजनीति का हिस्सा बनने वाले हैं। हालांकि, माया सिंह के बेटे पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर एक कमेटी की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।
     तोमर के पुत्र रामू ने हाल ही में पार्टी के कार्यक्रमों में भाग लेना शुरू किया है और पिता के करीबियों के साथ रहकर राजनीति सीख रहे हैं। नरेंद्र सिंह तोमर के प्रदेश संगठन में चल रहे एकछत्र राज के कारण रामू को पार्टी के लोग सिरमौर बनाए हुए हैं और उन्हें ही अगला नेता भी मान रहे हैं। वहीं प्रभात झा के पुत्र तुष्मुल पार्टी के कार्यक्रमों में भी नजर नहीं आते। सूत्रों के मुताबिक, जल्द ही इन तीनों नेता पुत्रों की सक्रिय राजनीति पार्टी के युवा मोर्चा या दूसरे बड़े मोर्चे से शुरू कराई जाएगी ताकि 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ाया जा सके।
पार्टी में बढ़ रहा वंशवाद
 विश्वास सारंग: राज्यसभा सांसद कैलाश सारंग के पुत्र होने का लाभ मिला और युवा मोर्चा से राजनीति की शुरुआत करते हुए अब विधायक हैं।
दीपक जोशी- पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र होने के कारण पार्टी में पकड़ बनी और अब प्रदेश सरकार में मंत्री हैं।
सुरेंद्र पटवा- पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के भतीजे के तौर पर पार्टी में पहले संगठन स्तर पर पद लिया। अब राज्य सरकार में मंत्री हैं।
अभिषेक भार्गव- प्रदेश सरकार के मंत्री गोपाल भार्गव के पुत्र हैं और युवा मोर्चा में प्रदेश उपाध्यक्ष है।
सत्यपाल सिंह सिकरवार(नीटू)- पूर्व विधायक गजराज सिंह सिकरवार के पुत्र सुमावली से विधायक हैं और गजराज के बड़े पुत्र सतीश सिकरवार एवं बहू शोभा सिकरवार पार्षद हैं।
सेवा के लिए जमीनी कार्यकर्ता
     कार्यकर्ताओं को पार्टी का भगवान बताने वाली भाजपा के कार्यकर्ता, नेताओं की स्वार्थ भरी राजनीति से दुखी है। पिछले कई दशकों से मेहनत कर पार्टी को फर्श से अर्श तक ले जाने वाले कार्यकर्ता आज भी झंडे उठाने व नारे लगाने के काम आ रहे हैं। वहीं इस सवाल पर वरिष्ठ नेता बोलते हैं कि हर कोई ऊंचे पदों तक नहीं पहुंच सकता। जिनकी कार्यशैली सही नहीं, वे कैसे पार्टी की जिम्मेदारी में शामिल हो सकते हैं। वहीं जब नेतापुत्रों की बात आती है तो उनका जवाब सिद्धांतों को नहीं देखता।