ऐसी ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी के बाद इनसे ईमानदारी की आस, जीते जी किसी आत्महत्या से कम नहीं
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ऐसी ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी के बाद इनसे ईमानदारी की आस, जीते जी किसी आत्महत्या से कम नहीं

    इस फोटो को मैं कई सालों से इंटरनेट पर देख रहां हूँ, पुलिस को लेकर लोग बुरा भला कहते हैं, फिटनेस को लेकर मोटा गैंडा ठुल्ला कहते हैं, करप्शन को लेकर जमकर गालियाँ देते हैं। मैंने सोचा आप सबको तस्वीर के दूसरे रुख से परिचय कराऊँ।
    पुलिसवाला प्रतिदिन कम कम 12 घण्टे की ड्यूटी करता है, न कोई रविवार न कोई छुट्टी, जिस दिन राष्ट्रीय छुट्टी होती है उस दिन वह सुबह 4 बजे जगकर अपनी वर्दी दुरुस्त करता है, जूता बेल्ट चमकाता है और जनता के सामने एक आदर्श बनने की कोशिश करता है। भाई साहब कभी इनकी यूनिफार्म उतरवा कर देख लेना, 10 में से 4 कि बनियान फटी हुई होगी, मोज़े फटे हुए होंगे।
कोई भी सरकारी विभाग
रविवार : 52
द्वितीय शनिवार: 12
सरकारी छुट्टियां : 36
कुल मिलाकर एक साल में 100 छुट्टियाँ
   भाई साहब पुलिस वाला भी एक सरकारी कर्मचारी ही है, सैलरी भी किसी भी सरकारी कर्मचारी जितनी ही मिलती है।
फिर इन 100 दिनों में से एक भी दिन सिपाही को क्यों नहीं मिलता
    विभिन्न श्रम एक्ट और फैक्ट्रीज एक्ट 1948 के अनुसार किसी भी व्यक्ति से पूरे सप्ताह में 48 घण्टे से ज्यादा काम नहीं कराया जा सकता, और एक दिन में अधिकतम 9 घण्टे, भाई साहब एक पुलिसवाला प्रतिदिन कम से कम 12 घण्टे की ड्यूटी करता है और सप्ताह में 84 घण्टे, दिहाड़ी मजदूरों से भी बदतर हालत है इनकी, अगर कोई दंगा फसाद हो जाये तो ड्यूटी कब ख़त्म होगी कोई पता नहीं।
    भाई साहब इनके भी बच्चे होते हैं, माँ होती है पत्नी, परिवार सब होता है, आप जरा सोचिये कि एक सिपाही को अपनी बेटी की फीस भरनी है, उसकी दिन की ड्यूटी है, कब भरेगा ?
   पूरी जिंदगी निकल जाती है, कोई भी त्यौहार घर पर नहीं मना पाते, क्यूंकि अगर ये सड़क पर न खडें हों तो कोई भी त्यौहार बिना फसाद पूरा नहीं होगा।
पूरी जिंदगी निकल जाती है ये ख्वाइश लिए कि कभी टीचर पेरेंट्स की मीटिंग में जा सकें
    पूरे देश में जाकर देखिये, 24 प्रतिशत से भी कम को सरकारी आवास मिला होता है, और ये आवास सिर्फ एक कमरे का होता है, एक बार सोच के देखिये कैसे रखते होंगे अपने माता पिता बच्चों को साथ लेकर घरों की हालत इतनी ख़राब कि कोई पता नहीं कब छत गिर जाये, न साफ़ पानी की व्यवस्था न शौचालय की और जो बैरक में रहते हैं उनकी स्थिति और ज्यादा ख़राब, पुलिस लाइन में सुबह 4 बजे से शौचालय के बाहर लाइन लगती है कि टाइम से फारिग हो जाएँ, शेविंग भी करना है, लाइन में लगकर नहाना भी है, और फिर लाइन में लगकर मेस में खाना भी खाना है क्युकी ड्यूटी सुबह 8 बजे शुरू हो जाएगी वहाँ अगर 5 मिनट भी लेट हो गए। तो गैरहाजिरी लिख जाएगी
    पूरे दिन जनता की उपेक्षा, अधिकारियों और पावरफुल लोगों की डाँट, बात बात पर वर्दी उतरवाने की धमकी के तनाव बाद जब रात में 9 बजे बैरक पहुँचता है तो उसके जहन में सिर्फ एक बात होती है कि सुबह चार बजे फिर से जागना है और टॉयलेट की लाइन में लगना है।
    भाई साहब मैंने इन सबकी जिंदगी को बहुत करीब से देखा है, 45 से ऊपर शायद ही कोई पुलिसवाला स्वस्थ होगा, चालीस पार करते करते अनेकों बीमारियां इनको घेर लेती हैं, लेकिन बच्चों को पालना है, मजबूरी है जिंदगी है तो काटनी है, कट ही जाएगी, शायद इसी को जिंदगी कहते हैं।