रोहतक।। वर्तमान में बन रहे मकान गर्मी में तपते हैं तो सर्दी में सिकुड़ने को मजबूर कर देते हैं। इसके पीछे कारण है कि मकान निर्माण में प्रयोग होने वाला लोहा, सीमेंट और पक्की ईंट ऊष्मा को अंदर आने से नहीं रोक पाते। इस समस्या से निजात पाने के लिए डॉ. शिव दर्शन मलिक ने गाय के गोबर एवं जिप्सम को मिलाकर एक मकान तैयार किया है। इस नई तकनीक में नींव से ऊपर एक दाना भी सीमेंट, रोड़ी, पक्की ईंट आदि का प्रयोग नहीं होगा। प्राकृतिक संसाधनों से बने इस भवन में वातानुकूलन की आवश्यकता नहीं। अपने इस अविष्कार को लेकर डॉ. मलिक ने मंगलवार को प्रेसवार्ता की।
शहर के शीला बाईपास के निकट रहने वाले डॉ. मलिक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल व अविष्कार में लगे हैं। इन्होंने पूर्व में कृषि कचरे से इंजन, आटा चक्की और ट्यूबवेल भी चलाये हैं। राष्ट्रीय कृषि मेले गंगानगर, राजस्थान में इनको सर्वश्रेष्ठ किसान के रूप में नवाजा जा चुका है। जिप्सम से बना विशेष प्लास्टर होता हो उपयोग इस भवन में 26, 20 और 4 इंच आकार के जिप्सम ब्लॉक लगे हैं। इनमें एक तरफ कट व दूसरी तरफ उभार है जिससे वे एक-दूसरे में फंस जाते हैं। इनके जोड़ों को भरने के लिए भी सीमेंट का प्रयोग नहीं किया जाता, बल्कि जिप्सम से निर्मित एक विशेष प्लास्टर उपयोग में लिया जाता है। खास बात ये भी है कि दीवार फटाफट बनती है और बाद में तराई भी नहीं करनी पड़ती।उष्मा, ध्वनि और अग्नि रोधी जिप्सम उष्मा रोधी, ध्वनि रोधी होने के साथ-साथ सर्वश्रेष्ठ अग्नि रोधी पदार्थ है। यह आग लगने के चार घंटे तक नहीं जलता। अगर तब तक भी आग न बुझे तो यह क्रिस्टलीय जल छोड़ने लगता है और आग बुझाने में मदद करता है। जिप्सम गाय का गोबर मिलाने पर यह सोने में सुहागे जैसा काम करता है। गोबर के मिलाने से जिप्सम प्लास्टर की कमियां जैसे की भंगुरपन व पानी सोखना काफी हद तक दूर हो जाती हैं व इसकी मजबूती बढ़ती है। प्रतीकामत्क फोटो गौशालाओं की बढ़ेगी आमद डॉ. शिवदर्शन ने बताया कि वे अपने इस नए वैदिक प्लास्टर अविष्कार से गौशालाओं को जोड़ेंगे। इसके गोबर से वे ब्लॉक बनाकर लोगों को मकान बनाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। इससे लागत बहुत ही कम आती है और गौशालाओं की आमदनी भी बढ़ेगी, क्योंकि उनका गोबर खरीदा जाएगा। उष्मा रोधी भवन की मियाद भी ज्यादा है।