सीरिया में गृह युद्ध हुए 5 साल होने वाले हैं लेकिन अब तब यहां के हालात सुधर नहीं पाए हैं। गोलियों के डर से दुबकने वाले, कूड़े में से अपने लिए जरूरत की चीजें तलाशने वाले और तबाह हो चुके अपने घर मोहल्लों को खाली आंखों से देखने वाले ये हैं सीरिया के मासूम बच्चे। इनकी जिंदगी इस कदर बर्बाद हुई है कि न जाने कभी वापस पटरी पर आ भी पाएगी या नहीं।
हाल ही में सामने आईं नई तस्वीरों से साफ पता चलता है कि 2,50,000 से भी ज्यादा युवा आज भी आजाद नहीं हैं। अधिकतर लोग राष्ट्रपति असद की सेना से घिरे रहते हैं। ये सैनिक लगातार हथियार लिए उन शहरों में चक्कर लगाते रहते हैं जो पहले ही 40 बार बम गिराए जाने के बाद बर्बाद हो चुके थे। बंदूकधारक जिसे चाहें अचानक उठा लेते हैं और उसकी जान के पीछे पड़ जाते हैं।
कोई अगर इनसे बच भी जाए तो उसे आईएस वाले अपनी बंदूक से दाग डालते हैं। कई ऐसे भी हैं जिन्होंने महीनों से फल, चिकन जैसी कोई चीज सूंघी तक नहीं और घास-फूंस या जानवरों का खाना खा कर जिंदा रहे। बम धमाकों के धुएं से इन्हें जानलेवा इफेक्शन हो गए हैं। पानी की सेवा बंद कर देने के बाद से ये कीचड़ का पानी पीने को मजबूर हैं जिसके कारण पेट की बीमारियां हो गई हैं।
सेव द चिलड्रेन की रिपोर्ट के मुताबिक इन युवाओं से बात करो तो ये कहते हैं कि अब उन्हें अपने मारे जाने का इंतजार है। 560 मरने वालों में से आधे तो 14 साल से भी कम की उम्र के बच्चे थे। सड़ा खाना खाने, पानी की कमी, चिकित्सा सेवा ना मिल पाने और बम धमाकों के कारण इनके शरीर में जहर फैल गया और इनकी मौत हुई।
सयुंक्त राष्ट्र संघ की कई कोशिशों के बावजूद कई परिवारों को जरूरी मदद नहीं मिल पाती। खाना और दवाइयां थोड़ी ही दूरी पर गोदाम में रखा होता है लेकिन सेना की गश्त के कारण वहां तक भी पहुंचना नामुमकिन होता है। यहां बिजली भी नहीं होती जिस वजह से डॉक्टरों को मोमबत्ती की रोशनी में इलाज करना पड़ता है। सही वक्त पर इलाज न मिल पाने के कारण नवजात चेकप्वाइंट पर ही दम तोड़ देते हैं।
रिसर्च में पता चला कि 2015 में केवल 1% इलाकों तक यूएन की तरफ से दिया गया खाना और 3% इलाकों में चिकित्सा सेवा पहुंची। इस संस्थान ने अपील की कि सीरिया में लगातार हो रहे स्कूलों और अस्पतालों पर हमलों को रोका जाए।
छोटे छोटे से बच्चे काम करते दिखते हैं। इन्होंने भी खुद को पूरी तरह इसी में ढाल लिया है और इससे खुश हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि हजारों बच्चे इस घेरेबंदी में रह रहे हैं। बाहरी दुनिया से इन लोगों का पूरी तरह संपर्क कट गया है। ये लोग जी तो खुले आसमान के नीचे रहे हैं लेकिन फिर भी जेल में कैद हैं।
हाल ही में सामने आईं नई तस्वीरों से साफ पता चलता है कि 2,50,000 से भी ज्यादा युवा आज भी आजाद नहीं हैं। अधिकतर लोग राष्ट्रपति असद की सेना से घिरे रहते हैं। ये सैनिक लगातार हथियार लिए उन शहरों में चक्कर लगाते रहते हैं जो पहले ही 40 बार बम गिराए जाने के बाद बर्बाद हो चुके थे। बंदूकधारक जिसे चाहें अचानक उठा लेते हैं और उसकी जान के पीछे पड़ जाते हैं।
कोई अगर इनसे बच भी जाए तो उसे आईएस वाले अपनी बंदूक से दाग डालते हैं। कई ऐसे भी हैं जिन्होंने महीनों से फल, चिकन जैसी कोई चीज सूंघी तक नहीं और घास-फूंस या जानवरों का खाना खा कर जिंदा रहे। बम धमाकों के धुएं से इन्हें जानलेवा इफेक्शन हो गए हैं। पानी की सेवा बंद कर देने के बाद से ये कीचड़ का पानी पीने को मजबूर हैं जिसके कारण पेट की बीमारियां हो गई हैं।
सेव द चिलड्रेन की रिपोर्ट के मुताबिक इन युवाओं से बात करो तो ये कहते हैं कि अब उन्हें अपने मारे जाने का इंतजार है। 560 मरने वालों में से आधे तो 14 साल से भी कम की उम्र के बच्चे थे। सड़ा खाना खाने, पानी की कमी, चिकित्सा सेवा ना मिल पाने और बम धमाकों के कारण इनके शरीर में जहर फैल गया और इनकी मौत हुई।
सयुंक्त राष्ट्र संघ की कई कोशिशों के बावजूद कई परिवारों को जरूरी मदद नहीं मिल पाती। खाना और दवाइयां थोड़ी ही दूरी पर गोदाम में रखा होता है लेकिन सेना की गश्त के कारण वहां तक भी पहुंचना नामुमकिन होता है। यहां बिजली भी नहीं होती जिस वजह से डॉक्टरों को मोमबत्ती की रोशनी में इलाज करना पड़ता है। सही वक्त पर इलाज न मिल पाने के कारण नवजात चेकप्वाइंट पर ही दम तोड़ देते हैं।
रिसर्च में पता चला कि 2015 में केवल 1% इलाकों तक यूएन की तरफ से दिया गया खाना और 3% इलाकों में चिकित्सा सेवा पहुंची। इस संस्थान ने अपील की कि सीरिया में लगातार हो रहे स्कूलों और अस्पतालों पर हमलों को रोका जाए।
छोटे छोटे से बच्चे काम करते दिखते हैं। इन्होंने भी खुद को पूरी तरह इसी में ढाल लिया है और इससे खुश हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि हजारों बच्चे इस घेरेबंदी में रह रहे हैं। बाहरी दुनिया से इन लोगों का पूरी तरह संपर्क कट गया है। ये लोग जी तो खुले आसमान के नीचे रहे हैं लेकिन फिर भी जेल में कैद हैं।