सरकारी नौकरी से इस्तीफ़ा देकर एलोवेरा की खेती से बने करोड़पति

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Alovira
      ये कहानी बदलते हुए भारत के एक ऐसे किसान की है जो पढ़ा-लिखा है, इंजीनियर है और फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोलता है. इतना ही नहीं उन्होंने तो एमबीए की पढ़ाई के लिए दिल्ली के एक कॉलेज में दाख़िला भी लिया था, लेकिन शायद उनकी मंज़िल कहीं और थी. ये कहानी जैसलमेर के हरीश धनदेव की है जिन्होंने 2012 में जयपुर से बीटेक करने के बाद दिल्ली से एमबीए करने के लिए एक कॉलेज में दाख़िला लिया, लेकिन पढ़ाई के बीच में ही उन्हें 2013 में सरकारी नौकरी मिल गई सो वो दो साल की एमबीए की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए. हरीश जैसलमेर की नगरपालिका में जूनियर इंजीनियर के पद पर तैनात हुए. यहां महज दो महीने की नौकरी के बाद उनका मन नौकरी से हट गया. हरीश दिन-रात इस नौकरी से अलग कुछ करने की सोचने लगे. कुछ अलग करने की चाहत इतनी बढ़ गई थी कि वो नौकरी छोड़कर अपने लिए क्या कर सकते हैं इस पर रिसर्च करना शुरु किया.
एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने दी दिशा
       अपने लिए कुछ करने के तलाश में हरीश की मुलाकात बीकानेर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में एक व्यक्ति से हुई. हरीश राजस्थान की पारंपरिक खेती ज्वार या बाजरा से अलग कुछ करना चाह रहे थे. सो चर्चा के दौरान हरीश को उन्होंने एलोवेरा की खेती के बारे में सलाह दी. अपने लिए कुछ करने की तलाश में हरीश आगे बढ़े और एक बार फिर दिल्ली पहुंचे जहां उन्होंने खेती-किसानी पर आयोजित एक एक्सपो में नई तकनीक और नए जमाने की खेती के बारे में जानकारी हासिल की. एक्सपो में एलोवेरा की खेती की जानकारी हासिल करने के बाद हरीश ने तय किया कि वो एलोवेरा उगाएंगे. यहीं से कहानी में मोड़ आया और नई शुरुआत को एक दिशा मिल गई. दिल्ली से लौटकर हरीश बीकानेर गए और एलोवेरा के 25 हजार प्लांट लेकर जैसलमेर लौटे.
शुरुआत में कई लोगों ने मना किया
      जब बीकानेर से एलोवेरा का प्लांट आ गया, इन प्लांटों को खेत में लगाए जाने लगे तब कुछ लोगों ने बताया कि जैसलमेर में कुछ लोग इससे पहले भी एलोवेरा की खेती कर चुके हैं, लेकिन उन सभी को सफलता नहीं मिली. फसल को खरीदने कोई नहीं आया सो उन किसानों ने अपने एलोवेरा के पौधों को खेत से निकाल दूसरी फ़सलें लगा दी. हरिश कहते हैं इस बात से मन में थोड़ी आशंका तो घर कर गई लेकिन पता करने पर जानकारी मिली कि खेती तो लगाई गई थी, लेकिन किसान ख़रीददार से सम्पर्क नहीं कर पाए सो कोई ख़रीददार नहीं आया. अत: हरीश को ये समझते देर नहीं लगी कि यहां उनकी मार्केटिंग स्किल से काम बन सकता है.
कैसे हुई एलोवेरा की खेती की शुरुआत
     हरीश बताते है, ‘घर में इस बात को लेकर कोई दिक्कत नहीं थी कि मैंने नौकरी छोड़ दी, लेकिन मेरे सामने खुद को साबित करने की चुनौती थी.’ काफी खोज-बीन के बाद 2013 के आखिरी में एलोवेरा की खेती की शुरुआत हुई. बीकानेर कृषि विश्वविद्यालय से 25 हजार प्लांट लाए गए और करीब 10 बीघे में उसे लगाया गया. आज की तारीख में हरीश 700 सौ बीघे में एलोवेरा उगाते हैं, जिसमें कुछ उनकी अपनी ज़मीन है और बाक़ी लीज़ पर ली गई है.
Alovira
मार्केटिंग स्किल काम आया
      हरीश कहते हैं कि शुरु में सब कुछ पता था ऐसा नहीं है. वो बताते हैं कि काफी यंग एज होने की वजह से उन्हें अनुभव की कमी थी, लेकिन कुछ अलग करने का जुनून था और उसी जुनून ने उन्हें यहां तक पहुंचा दिया. खेती की शुरुआत होते ही जयपुर से कुछ एजेंसियों से बातचीत हुई और अप्रोच करने के बाद हमारे एलोवेरा के पत्तों की बिक्री का एग्रीमेंट इन कंपनियों से हो गया. इसके कुछ दिनों बाद कुछ दोस्तों से इस काम को और आगे बढ़ाने के बार में बात हुई. हरीश बताते हैं कि इसके बाद उन्होंने अपने सेंटर पर ही एलोवेरा लीव्स से निकलने वाला पहला प्रोडक्ट जो कि पल्प होता है निकालना शुरु कर दिया. शुरुआत के कुछ दिनों बाद राजस्थान के ही कुछ ख़रीददारों को हमने ये पल्प बेचना शुरु कर दिया.
टर्निंग प्वाइंट
      ये सब चल ही रहा था कि एक दिन मैं ऑनलाइन सर्च से ये देखने की कोशिश कर रहा था कि कौन-कौन बड़े प्लेयर हैं जो एलोवेरा का पल्प बड़े पैमाने पर खपाते हैं. मुझे बड़े ख़रीददारों की तलाश थी क्योंकि खेती का दायरा बढ़ चुका था और उत्पाद भी अधिक मात्रा में आने लगे थे. इसी दौरान मुझे पतंजलि के बारे में पता चला, भारत में पतंजलि एलोवेरा का एक बड़ा ख़रीददार है. बस क्या था मैंने पतंजलि को मेल भेजकर अपने बारे में बताया. पतंजलि का जवाब आया और फिर मुझसे मिलने उनके प्रतिनिधी भी आए. योर स्टोरी से बात करते हुए हरीश कहते हैं कि यहीं से इस सफर का टर्निंग प्वाइंट शुरु हुआ. पतंचलि के आने से चीजें बदली और आमदनी भी. करीब डेढ़ साल से हरीश एलोवेरा पल्प की सप्लाई बाबा रामदेव द्वारा संचालित पतंजली आयुर्वेद को करते हैं.
आमद के साथ-साथ काम की समझ भी बढ़ी
      हरीश कहते हैं शुरु में कई बार मुझे ये आशंका घेर लेती थी कि इसे आगे कैसे ले जाउंगा…कैसे इसे और बड़ा करुंगा? आगे हरीश कहते हैं, धीरे-धीरे समय के साथ काम की समझ बढ़ने लगी. आज ना सिर्फ हरीश की कंपनी ‘नेचरेलो एग्रो’ की आमद बढ़ी है बल्कि उनके साथ काम करने वालों की आमदनी भी बढ़ी है. हरीश कहते हैं पतंजलि के आने से काम करने के तौर-तरीके भी बदलाव आया और हम अब पहले से ज्यादा प्रोफेशनल तरीके से काम करने लगे हैं.
क्वालिटी पर रहता है खास ज़ोर
     हरीश कहते हैं कि हमारे यहां उत्पाद में क्वालिटी कंट्रोल का खास ध्यान रखा जाता है. हम अपने उत्पाद को लेकर कोई शिकायत नहीं चाहते सो प्रत्येक स्तर में हमें इसका खास ध्यान रखना होता है कि हम जो पल्प बना रहे हैं उसमें किसी प्रकार की कोई मिलावट या गड़बड़ी ना हो.
     एलोवेरा की खेती से करोड़पति बनने वाले हरीश लाखों लोगों की प्रेरणा बन चुके हरीश धनदेव मूल रुप से जैसलमेर के रहने वाले हैं. यहीं से उनकी आरंभिक शिक्षा हुई, इसके बाद वो उच्च शिक्षा के लिए जयपुर गए और फिर दिल्ली पहुंचे. दिल्ली से एमबीए की पढ़ाई के बीच सरकारी नौकरी मिली और जैसलमेर नगरपालिका में जूनियर इंजिनीयर बने. जैसलमेर नगरपालिका से इस्तिफे के बाद शुरु हुई कहानी ने हरीश को करोड़पति किसान बना दिया. हरीश की सफलता हिन्दी फिल्मों की हैप्पी एंडिंग वाली कहानी जैसी है. साथ ही अधिक पैसों की चाहत में कमाई के लिए विदेश जाने वाले युवाओं के लिए भी एक उदाहरण प्रस्तुत करती है.

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