हमारे पारिस्थितिक तंत्र में हर प्राणी का एक विशेष महत्व है। सांप भी उन्हीं में से एक है। आमतौर पर सांप को बहुत ही खतरनाक प्राणी माना जाता है और देखते ही मार दिया जाता है। यही कारण है कि सांप की कई विशेष प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो सांप मनुष्य का शत्रु नहीं बल्कि मित्र है, क्योंकि ये अनाज को बर्बाद करने वाले चूहों को खाता है।
नागपंचमी पर सांप को देवता मानकर पूजन भी किया जाता है। हमारे देश में कई नाग मंदिर भी है, जहां बड़ी ही श्रद्धा से नागों की पूजा की जाती है।यूं तो नागपंचमी को सिर्फ धार्मिक नजरिए से देखा जाता है, लेकिन इसकी अपनी वैज्ञानिक अहमयित भी है। जू निदेशक थामस कुरुविला ने बताया कि सांप को इको सिस्टम की सबसे मजबूत कड़ी माना जाता है। सांपों को किसानों का मित्र भी कहा जाता है।
पहले सांपों की पूजा होती थी, लेकिन उन्हें पकड़ना, पिटारा में बंद करने के गंदे खेल नहीं खेले जाते थे। लेकिन बदलते दौर में इसका व्यवसायीकरण हो गया और इको सिस्टम गड़बड़ाने लगा। अब हमें इस बात पर गौर करना होगा कि सांपों का वजूद न केवल धार्मिक कारण, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
हम और आप में से कई लोगों ने बचपन में सांप की केंचुली को सहेजकर किताबों में रखा होगा, ताकि 'विद्या माता' हम पर मेहरबान रहे। लेकिन आज इस बात पर हंस लीजिए, क्योंकि ऐसा कुछ भी नहीं है। जू डॉक्टर यूसी श्रीवास्तव कहते हैं कि सांप साल में एक बार जुलाई-अगस्त के महीने में अपनी खाल उतारते हैं।
वह डेड स्किन निकालते हैं, ताकि नई त्वचा आ सके। नई स्किन में नमीं ज्यादा होती है, जिससे उसको मूवमेंट करने में आसानी होती है। यह गलतफहमी भी है कि सांप की आंखों में फोटो उतर आती है। डॉ. श्रीवास्तव कहते हैं कि सांपों की आंख में कंप्माउंड लेंस होते हैं। इससे अगर सांप आपको देख रहा होता है तो उसे आपकी एक तस्वीर नहीं दिखती।
बल्कि उस तस्वीर के कई लाख हिस्से दिखाई पड़ते हैं। अब इसे फोटो उतारना नहीं कह सकते। इसके अलावा कई सपेरे दो मुंह का सांप दिखाकर लोगों से पैसा वसूलते हैं। डॉ. सिंह कहते हैं कि अंग्रेजी में इसे सैनबोआ कहते हैं। इसके मुंह और पूंछ की मोटाई और शेप, एक तरह की होती है, इसलिए यह गलतफहमी हो जाती है।
आम तौर पर माना जाता है कि सांप दूध पसंद करता है। अपना बचपन याद कीजिए, तो जहन में आएगा कि किस तरह मदारी सांप दिखाकर हमसे दूध मांगा करता था। और न केवल बच्चे बल्कि सभी लोग मानते थे कि यह दूध सांप को वाकई पिलाया जाएगा। हम इसे पुण्य का काम समझते थे। लेकिन ऐसा कतई नहीं है।
यूं तो सांप को दूध पिलाना हमेशा पवित्र मानते हैं, लेकिन नागपंचमी के मौके पर यह प्रथा खासी लोकप्रिय है। अगर डॉक्टरों और सर्प विशेषज्ञों की बात मानें, तो सांप को दूध कतई पसंद नहीं आता। यह हमारी गलतफहमी है, जिसे हम बीते कई साल से ढो रहे हैं।
नागपंचमी पर खास तौर पर सांपों को दूध पिलाने का चलन देखने में आया है। लेकिन हम सभी को यह बात पता होनी चाहिए कि सांप कभी दूध नहीं पीता, क्योंकि उसे यह बिलकुल पसंद नहीं आता। हकीकत यह है कि अगर कहीं गलती से सांप के मुंह में दूध चला भी जाए, तो वह तुरंत मर भी सकता है।
सांप से खिलवाड़, सात साल की जेल.......
आंखों पर पड़ी अंधश्रद्धा के पर्दे के चलते हम सांपों की तकलीफ नहीं देख पाते। सांपों को दूध पिलाकर, उन पर पैसे लुटाकर, कानून तोडऩे वाले आयोजकों का मनोबल बढ़ाते हैं। पिछले कई दशकों में एक भी नजीर नहीं मिलती जब किसी जिम्मेदार अधिकारी ने सांपों से श्रृंगार करने वाले आयोजन या आयोजकों को इसके लिए टोका भी हो।
वे क्यों मुंह बंद किए बैठे हैं, हम नहीं जानते। अखबार की जिम्मेदारी बनती है कि लोगों को गैरकानूनी कामों के खिलाफ जागरूक करें। 'अमर उजाला' वही कर रहा है। हमारा इरादा किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है। हम सांपों पर होने वाले अत्याचार का कड़ा विरोध करते हैं।
सांप शिड्यूल वन के तहत संरक्षित जीव है। इन्हें मारना, पकडऩा, डिब्बे में बंद करके घूमना, विष की थैली निकालना, चोट पहुंचाना, प्रदर्शनी लगाना, उनका किसी भी प्रकार की सजावट में प्रयोग करना कानूनी अपराध है। पहली बार सांप पकडऩे पर तीन साल की सजा और 25,000 जुर्माना है। दोबारा ऐसा करने पर 7 साल की सजा और 25,000 हजार जुर्माना है।
हम और आप में से कई लोगों ने बचपन में सांप की केंचुली को सहेजकर किताबों में रखा होगा, ताकि 'विद्या माता' हम पर मेहरबान रहे। लेकिन आज इस बात पर हंस लीजिए, क्योंकि ऐसा कुछ भी नहीं है। जू डॉक्टर यूसी श्रीवास्तव कहते हैं कि सांप साल में एक बार जुलाई-अगस्त के महीने में अपनी खाल उतारते हैं।
बल्कि उस तस्वीर के कई लाख हिस्से दिखाई पड़ते हैं। अब इसे फोटो उतारना नहीं कह सकते। इसके अलावा कई सपेरे दो मुंह का सांप दिखाकर लोगों से पैसा वसूलते हैं। डॉ. सिंह कहते हैं कि अंग्रेजी में इसे सैनबोआ कहते हैं। इसके मुंह और पूंछ की मोटाई और शेप, एक तरह की होती है, इसलिए यह गलतफहमी हो जाती है।
आम तौर पर माना जाता है कि सांप दूध पसंद करता है। अपना बचपन याद कीजिए, तो जहन में आएगा कि किस तरह मदारी सांप दिखाकर हमसे दूध मांगा करता था। और न केवल बच्चे बल्कि सभी लोग मानते थे कि यह दूध सांप को वाकई पिलाया जाएगा। हम इसे पुण्य का काम समझते थे। लेकिन ऐसा कतई नहीं है।
यूं तो सांप को दूध पिलाना हमेशा पवित्र मानते हैं, लेकिन नागपंचमी के मौके पर यह प्रथा खासी लोकप्रिय है। अगर डॉक्टरों और सर्प विशेषज्ञों की बात मानें, तो सांप को दूध कतई पसंद नहीं आता। यह हमारी गलतफहमी है, जिसे हम बीते कई साल से ढो रहे हैं।
नागपंचमी पर खास तौर पर सांपों को दूध पिलाने का चलन देखने में आया है। लेकिन हम सभी को यह बात पता होनी चाहिए कि सांप कभी दूध नहीं पीता, क्योंकि उसे यह बिलकुल पसंद नहीं आता। हकीकत यह है कि अगर कहीं गलती से सांप के मुंह में दूध चला भी जाए, तो वह तुरंत मर भी सकता है।
सांप से खिलवाड़, सात साल की जेल.......
आंखों पर पड़ी अंधश्रद्धा के पर्दे के चलते हम सांपों की तकलीफ नहीं देख पाते। सांपों को दूध पिलाकर, उन पर पैसे लुटाकर, कानून तोडऩे वाले आयोजकों का मनोबल बढ़ाते हैं। पिछले कई दशकों में एक भी नजीर नहीं मिलती जब किसी जिम्मेदार अधिकारी ने सांपों से श्रृंगार करने वाले आयोजन या आयोजकों को इसके लिए टोका भी हो।
वे क्यों मुंह बंद किए बैठे हैं, हम नहीं जानते। अखबार की जिम्मेदारी बनती है कि लोगों को गैरकानूनी कामों के खिलाफ जागरूक करें। 'अमर उजाला' वही कर रहा है। हमारा इरादा किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है। हम सांपों पर होने वाले अत्याचार का कड़ा विरोध करते हैं।
सांप शिड्यूल वन के तहत संरक्षित जीव है। इन्हें मारना, पकडऩा, डिब्बे में बंद करके घूमना, विष की थैली निकालना, चोट पहुंचाना, प्रदर्शनी लगाना, उनका किसी भी प्रकार की सजावट में प्रयोग करना कानूनी अपराध है। पहली बार सांप पकडऩे पर तीन साल की सजा और 25,000 जुर्माना है। दोबारा ऐसा करने पर 7 साल की सजा और 25,000 हजार जुर्माना है।