कैबिनेट के ऐतिहासिक फैसले से टूटी 92 साल पुरानी परंपरा

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Image may contain: 4 people , indoor      प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट ने बुधवार को एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए 92 साल से चली आ रही रेल बजट की परंपरा को खत्म कर दिया है। कैबिनेट ने रेल बजट को आम बजट में मिलाने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है। इसके साथ ही अब संसद की मंजूरी के बाद आगामी साल से एक ही बजट पेश किया जाएगा। यानी अब अलग से रेल बजट पेश करने की जरूरत नहीं होगी।
     इसे भारत की जीवनरेखा भारतीय रेल के लिए राहत भरा फैसला कहा जा रहा है। 7वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद रेलवे उच्‍च स्‍तरीय वेतन पर 40,000 करोड़ रुपए के अतिरिक्‍त भार से दबा हुआ है। रेलवे को 35,000 करोड़ रुपए का सब्सिडी बोझ भी उठाना पड़ता है।
     रेल बजट के आम बजट में विलय के बाद, रेलवे को वार्षिक लाभांश नहीं चुकाना पड़ेगा, जो कि अभी उसे सरकार द्वारा सकल बजटीय समर्थन के लिए चुकाना पड़ता है।
     कैबिनेट के फैसले के बाद रेलवे एक विभाग बन जाएगा जो व्‍यापारिक उपक्रम चलाता है, हालांकि इसकी अलग पहचान और काफी हद तक वित्‍तीय स्‍वायत्‍ता बनी रहेगी। अन्‍य उपक्रमों से रेलवे को अलग करने वाले प्रावधानों को खत्‍म कर दिया जाएगा। रेलवे को पूंजी खर्च करने के लिए आम बजट से बजटीय सहायता मिलती रहेगी।

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