सिर्फ 3 लाख रुपये में मुगलों ने बेच दिया था बेंगलुरु
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सिर्फ 3 लाख रुपये में मुगलों ने बेच दिया था बेंगलुरु

    मुगल शासक औरंगजेब ने 1686 में बीजापुर के शासकों को पराजित किया था और उसके बाद दक्षिण के महत्वपूर्ण शहर बेंगलुरु को 3 लाख रुपये में बेच दिया था। इस जुलाई महीने में बेंगलुरु की इस बिक्री को 330 साल पूरे होने वाले हैं। अपने असहिष्णु और आक्रामक व्यवहार के लिए कुख्यात मुगल शासक औरंगजेब की योजना दक्षिण में भी खुद को अजेय साबित करने की थी। उस वक्त दक्कन में औरंगजेब के सामने एक ही चुनौती थी और वह था मराठा साम्राज्य। औरंगजेब और मराठों के वर्चस्व की इस लड़ाई का प्रमुख केंद्र बेंगलुरु था। मराठों और मुगलों के बीच वर्चस्व की जंग में मैसूर के राजा की इच्छा इस इलाके में अपनी राजनीतिक और प्रशासनिक आजादी को बनाए रखने की थी। इसी योजना के तहत उन्होंने सही वक्त पर सही ताकत का समर्थन किया और बदले में फायदा उठाया।
     मैसूर वंश 14वें शासक देवराजा वाडियार वह व्यक्ति थे, जिन्होंने बेंगलुरु की किस्मत को एक बार फिर से लिखने का काम किया। वाडियार को औरंगजेब से उनकी दोस्ती के लिए जाना जाता था, जिसके बदले औरंगजेब ने उनके राज्य में कभी दखल नहीं दिया। इसी दौरान उन्होंने मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी से हुए सैन्य युद्ध में उन्हें मात देकर बढ़त हासिल की थी। 1687 में हुए मुगलों के हमले से पहले शिवाजी के सौतेले भाई इकोजी के पास बेंगलुरु की कमान थी, जिसे लेकर वाडियार आसानी से डील कर सकते थे।
     'द मैसूर मुगल रिलेशंस' के लेखक बी. मुद्दाचारिया लिखते हैं कि इकोजी ने तंजावुर में अपनी राजधानी बनाई थी। मराठा आर्थिक तौर पर कमजोर थे और स्थानीय शासकों की ओर से बेंगलुरु पर किए जा रहे लगातार अतिक्रमण का जवाब देने में सक्षम नहीं थे। ऐसे में इकोजी ने बेंगलुरु को सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को बेचने का फैसला ले लिया। मराठा शासक ने वाडियार से इस बारे में बातचीत शुरू की और शहर को तीन लाख रुपये के बदले में उन्हें सौंपने का फैसला किया। मुद्दाचारिया लिखते हैं, 'यह डील अभी चल ही रही थी कि कासिम खान के नेतृत्व में मुगल सेना ने शहर पर हमला बोल दिया और 10 जुलाई, 1687 को दुर्ग पर अपना झंडा फहरा दिया।'
     मराठाओं ने जब इस हमले का जवाब देने की कोशिश की तो देवराजा वाडियार ने मुगलों के साथ लड़ने का फैसला किया। मैसूर के शासक को उम्मीद थी कि इसके चलते उन्हें औरंगजेब का भरोसा जीतने में मदद मिलेगी। ऐसा ही हुआ और वाडियार ने मराठा शासक से जो डील की थी, उतनी ही रकम पर मुगलों ने बेंगलुरु को मैसर के शासकों को सौंप दिया। इस जुलाई महीने में बेंगलुरु की इस बिक्री को 330 साल पूरे होने वाले हैं।


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