धरतीपुत्र हुआ आत्महत्या को मजबूर लहसुन लील गया परिवार की खुशिया
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धरतीपुत्र हुआ आत्महत्या को मजबूर लहसुन लील गया परिवार की खुशिया

    फिर एक मजबूरी का मारा अन्नदाता फांसी के फंदे पर झूल गया। सफेद चांदी कहे जाने वाली फसल लहसुन के भाव लागत से कम मिलने पर घर परिवार की खुशियों काख में मिल गयी। राजस्थान के कोटा जिले के किशनगंज निवासी किसान बनवारी मालव ने आर्थिक तंगी से हार कर जीवन लीला समाप्त कर ली। वर्षभर पसीना बहाकर लोगों का पेट पालने वाला अन्नदाता उपेक्षा की की भेंट चढ़ गया। जो मिट्टी में मिट्टी होकर फसल उगाता है। और खुद भूखे रहकर लोगों की भूख को मिटाने में जी तोड़ मेहनत करता है। आज वही सत्ता पर बैठे बैठे नेताओं की नीतियों का शिकार हो गया। सभी राजनेतिक दल किसान का नाम वोट बैंक बढ़ाने के लिए उपयोग तो करते हैं। लेकिन किसी भी दल ने इस इस किसान की ओर नहीं देखा, जो फसल की बुवाई से लेकर उत्पादन तक जी तोड़ मेहनत करता है। कभी इसको मेहनत का आंकलन नही हुआ। यह उत्पादन करता है तो कम कीमत मिलती है। लेकिन इसके उत्पादन से बनी हुई वस्तुओं को दूगनी चोगनी कीमत में बाजार में खरीदा बेचा जा रहा है। आज मेरे देश का किसान आर्थिक तंगी बदहाली और कर्जे से डूबा हुआ है। परिवार का पालन करना मुश्किल हो रहा है। ऐसी जगह पर खड़ा हुआ है। जहां उसे मौत ही नजर आ रही है। फसलों के भाव नहीं मिलने से कर्ज में डूबा बेबस किसान फंदे पर झूल रहा और पुत्र-पुत्रियों के पिता, माता पिता का बेटा और बहनों का भाई छीन लिया जा रहा है। 
      कई सरकारे आई गयी पर किसान वहीँ का वहीँ खड़ा है नीतियां तो बनाई लेकिन समुचित तरीके से लागु नहीं हुई। आजादी के 67 साल बाद भी देश का किसान दरिद्रता का अभिश्राप झेल रहा है। देश की आर्थिक स्थिति का मुख्य आधार कृषि है। और सब खेती पर निर्भर है। किसान का जब तक उत्थान नहीं होगा तब तक देश विकास के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता। आज नेता और राजनीतिक दल किसानों की मौत के नाम का सौदा कर रहे हैं जो केवल किसानों के मरने का इंतजार कर रहे हैं। मुद्दे मिलने की बात जो रहे हैं। हाड़ोती संभाग में अब तक 6 से अधिक किसान किसी न किसी तरीके से मौत की आगोश में चले गए। नेता आए गए, फोटो खिंचवाए और लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि ने इन किसानों के परिवारों की स्थिति और परिस्थिति का कोई आकलन नहीं किया। परिवार किस हाल में है? क्या उसके जीविका का साधन है? कैसे वह जी रहा है ?बदहाल स्थिति में है क्या उनके लिए किया जा सकता है ? यह सब भूल कर मृतक परिवार के घर में जाकर परिजनों को ढांढस बनाने का एक फैशन बन गया। लेकिन किसी ने भी इन किसान परिवारों के असली दर्द को नहीं समझा और लगातार मृतक किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है और राजनीति होती जा रही है इन किसानों की सच्ची श्रद्धांजलि तब ही मानी जाएगी। जब यह इन किसानों को बलिदान के बदले एक तो उस मजबूत योजना तैयार करे ।संगठित होकर इनके उत्थान का प्रयास हो। कोटा संभाग में 3 जून से लेकर 8 जुलाई तक 6 से ज्यादा किसान मौत के मुंह में जा चुके हैं। पक्ष प्रतिपक्ष दोनों ही दलों के नेताओं में फोटो खिंचवाने की होड़ लगी हुई है। जागो उठो लड़ाई हक की लडो।


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