अतिथि अध्यापक राजनीति के शिकार क्यों ?
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अतिथि अध्यापक राजनीति के शिकार क्यों ?

Image result for congress and bjp on guest teacher delhi     हाल ही में दिल्ली सरकार द्वारा पन्द्रह हज़ार अतिथि अध्यापकों को नियमित करने के फैसले ने राजनैतिक गलियारों में गर्माहट पैदा कर दी है और भाजपा तथा कांग्रेस दोनों पार्टियों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। दिल्ली सरकार के इस फैसले को ना तो कांग्रेस और ना ही भाजपा पचा पा रही है। परन्तु भाजपा अब अजीब स्थिति में फंस गयी है, वह अगर अध्यापकों को नियमित करने के फैसले में टांग अड़ाती है तो अतिथि अध्यापकों में उसकी छवि खलनायक की बन जाती है और अध्यापकों के एक तबके में उसका वोट बैंक शुन्य हो जाता है. और अगर आप सरकार के फैसले को निर्विघ्न लागू होने देती है तो भी अतिथि अध्यापक तो एहसान तो केवल आम आदमी पार्टी का ही मानेंगें तथा भाजपा को इसका कोई लाभ भी नहीं मिलेगा. देखना यह है कि क्या भाजपा कोई ऐसा रास्ता निकाल पाती है जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे.
     राजनीति के विश्लेषकों को फैसले पर कांग्रेस तथा भाजपा की प्रतिक्रिया स्पष्ट रूप से नकारात्मक व राजनीति से संचालित नज़र आ रही हैं।दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के प्रधान अजय माकन कहते हैं कि सत्ता में आने के काफी पहले से ही आप पार्टी लगातार कहती रही है कि वह इन शिक्षकों को नियमित करेगी ।वे सवाल उठाते हैं कि आखिर इतने दिनों से उसे ऐसा करने से किसने रोका था ? माकन आरोप लगाते हैं कि असल में यह आप पार्टी की सरकार अतिथि अध्यापकों की आँखों में धूल झोंकना चाहती है।
     दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी भी आप सरकार के इस फैसले से आहत नज़र आते हैं। वे कहते हैं कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार का अतिथि अध्यापक नियमितीकरण का फैसला पन्द्रह हज़ार अतिथि अध्यापकों द्वारा किये गए लम्बे संघर्ष और इसके लिए भाजपा के समर्थन व दवाब का परिणाम है। तिवारी का कहना है कि दिल्ली भाजपा साल २०१३ से ही लगातार केजरीवाल सरकार से आग्रह करती रही है कि वह अतिथि शिक्षकों को नियमित करे।
     परन्तु यहाँ प्रश्न उठता है कि अगर भाजपा इतनी ही शिक्षक हितेषी है तो हरियाणा की भाजपा सरकार, जो वर्ष २०१४ से सत्तासीन है, क्यों नहीं हरियाणा में बारह वर्ष से मेहमान बने बैठे अतिथि अध्यापकों को नियमित कर रही है ? दिल्ली की आप पार्टी की सरकार के फैसले पर शंका जाहिर करने वाली कांग्रेस पार्टी ने अपने दस वर्ष के सत्ता कार्यकाल (२००४-२०१४) में क्यों हरियाणा में इन अध्यापकों को अतिथि बनाया? क्यों नहीं अध्यापकों की स्थाई भर्ती की गयी ? और यदि किसी मजबूरी वश इन्हें अतिथि अध्यापक के रूप में लगाना ही पड़ा तो क्यों नहीं अपने दस वर्ष के लम्बे कार्यकाल में स्थाई किया गया?
     अब हरियाणा में भी अतिथि अध्यापक पुनः आंदोलन का रास्ता अख्तियार करने की धमकी दे रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक सरकार उनकी नौकरी को स्थार्इ करने की गारंटी नहीं देगी, वे आंदोलन जारी रखेंगें. अभी प्रथम अक्टूबर, २०१७ को कुरुक्षेत्र में हरियाणा के गेस्ट टीचर्स की यूनियन की एक मीटिंग हुई जिसमे एकजुट होकर नियमित करने की मांग को लेकर आर पार की लड़ाई लड़ने का एलान किया गया है। प्रदेश स्तरीय इस बैठक में हरियाणा सरकार पर अतिथि अध्यापकों की मांग को अनदेखा करने पर आन्दोलन करने का फैसला लिया गया है। प्रदेश अध्यक्ष राजेंदर शास्त्री ने कहा कि २९ अक्टूबर को करनाल में एक प्रदेश स्तरीय रैली का आयोजन किया जायेगा, जिसमे आगामी कदम का फैसला भी लिया जायेगा। इसी कड़ी में गेस्ट अध्यापकों द्वारा जिला स्तर पर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भी भेजा जायेगा तथा अतिथि अध्यापक घर घर जाकर भाजपा द्वारा वादा खिलाफी का प्रचार भी करेंगें।
     आज स्थिति यह है कि हरियाणा में लगभग पन्द्रह हज़ार अतिथि अध्यापक पिछले बारह वर्ष से अभी भी मेहमान ही बने हुए हैं। अतिथि देवो भव: के लिए प्रसिद्ध हरियाणा प्रदेश का शिक्षा विभाग जहां एक तरफ अतिथि अध्यापकों से छुटकारा पाने का रास्ता तलाश रहा है, वहीं प्रदेश के शिक्षा विभाग में कार्यरत लगभग पन्द्रह हजार अतिथि अध्यापक मान न मान मै तेरा मेहमान की शैली में आंदोलन का रुख अपनाये हुए हैं। दोंनो की इस रस्साकसी में पिस रहा है बेचारा छात्र।
     2005 से 2007 के मध्य हरियाणा के शिक्षा विभाग ने स्थायी अध्यापकों की नियुक्ति होने तक लगभग पन्द्रह हजार अतिथि अध्यापक नियुक्त किये थे। परन्तु आज तक बारह वर्ष बीत जाने के बावजूद सरकार अध्यापकों की नियमित भर्ती के माध्यम से स्कूलों में सभी खाली पदों को भरने में असफल रही है या यों कहें कि जरुरत के मुताबिक़ स्थायी भर्ती से कन्नी काटने में सफल रही है। समय समय पर इन पन्द्रह हजार अध्यापकों को विभिन्न संवर्गों में अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया गया था। इनको जेबीटी, बीएड तथा पीजीटी अध्यापक के पदों पर नियमित अध्यापकों के समान वेतन देने की बजाए आधे से भी कम वेतन पर कार्य करवाया जा रहा है। अतिथि अध्यापकों का कहना है कि उनसे नियमित अध्यापकों के बराबर कार्य लिया जा रहा है, परन्तु वेतन आधा ही दिया जा रहा है, जबकि माननीय कोर्ट द्वारा कर्इ बार समान कार्य समान वेतन के सिद्धांत को मान्यता दी जा चुकी है। हालांकि अतिथि अध्यापकों का मानना है कि वे कम वेतन में भी नियमित अध्यापकों से बेहतर परीक्षा परिणाम दे रहे हैं, परन्तु उन पर किसी भी समय नौकरी से हटाये जाने की लटकती तलवार के कारण उनका व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जीवन संकट में पड़ गया है। उनकी सांप छछुंदर की गति हो गर्इ है। वे अब ओवर ऐज हो गए हैं, न नौकरी छोड़ते बनता है और न नौकरी का एक पल का भरोसा है।
       इतने सालों तक अध्यापकों को गेस्ट टीचर्स रखने पर तंज कसते हुए पूर्व अध्यापक नेता मास्टर छोटू राम आर्य कहते हैं कि बारह वर्ष के बाद भी अध्यापक मेहमान ही बने हुए हैं, मेहमान तो एक दो दिन के लिए होता है। बारह वर्ष में तो कुरड़ी के भी दिन फिर जाते हैं। यह इन अध्यापकों के साथ अमानवीय अत्याचार है। जब किसी अध्यापक को अपनी ही नौकरी का ही भरोसा नहीं कि अगले दिन वह अध्यापक रह भी पायेगा या नहीं, कैसे उससे बच्चों का भविष्य संवारने की अपेक्षा की जा सकती है?
     अतिथि अध्यापक अशोक कुमार, जो अपनी जगह स्थाई अध्यापक आ जाने से रिलीव किये जा चुके हैं, कहते हैं कि जब भी सरकार नियमित अध्यापकों की ट्रान्सफर करती है हर बार खामियाजा अतिथि अध्यापकों को ही भुगतना पड़ता है, उन्हें ओन रोड कर दिया जाता है। और उन्हें अगला स्टेशन मिलने तक बिना वेतन घर बैठना पड़ता है। अगला स्टेशन कब मिलेगा, कहाँ मिलेगा, कोई निश्चितता नहीं है। हाल के तबादलों के कारण सैंकड़ों अतिथि अध्यापक घर बैठे हैं और बच्चे अध्यापक न होने का खामियाजा भुगत रहे हैं।
     अतिथि अध्यापक विवाद पर सरकार तथा अध्यापक यूनियनों के पास अपने अपने पक्ष में चाहे कितने ही तर्क क्यो न हों, पर इतना तो सुनिश्चित है कि सरकार की इस ढुलमुल नीति के कारण सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर गिरावट की दिशा में अग्रसर है। यदि सरकार अतिथि अध्यापकों को नियमित करने के योग्य नहीं मानती है और सरकार का आंकलन यह है कि अतिथि अध्यापक स्थायी श्रेणी की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं तो क्यों इतने वर्षों से ऐसे अध्यापकों के माध्यम से नौनिहालों का भविष्य दांव पर लगाया जाता रहा है? क्या उन छात्रों का वह काल दोबारा लौटाया जा सकेगा? यदि सरकार इन अतिथि अध्यापको को नीम हकीम मानकर कम वेतन देकर शिक्षा जैसे क्षेत्र में खानापूर्ति कर रही है तो क्या यह सरकार का छात्रों के साथ विश्वासघात नहीं है? और यदि सरकार इन अतिथि अध्यापकों को योग्य मानती है तो क्यो नहीं सरकार इनको नियमित कर शिक्षा क्षेत्र में रिक्त पड़े स्थानों पर इनको सेवा करने का मौका देना चाहती? कारण जो भी हो सरकार को हठधर्मिता छोड़कर अपने द्वारा नियुक्त अतिथि अध्यापकों से अतिथि तुल्य सम्मान नहीं तो कम से कम अपने मातहत कर्मचारियों के समान व्यवहार तो करना ही चाहिए। सरकार, अध्यापकों एवं विधार्थियों के हित में यही उचित है कि शीघ्रतम समस्या का सम्मानजनक हल निकाला जाये ताकि कोई अध्यापक अपने माथे पर कच्चे अध्यापक का कलंक ना महसूस करे। समय राजनीति करने का नहीं, ठोस निर्णय लेने का है। सभी राजनैतिक पार्टियों को कम से कम शिक्षा क्षेत्र को तो अपनी दुर्गन्ध युक्त राजनीति से दूर ही रहने देना चाहिए।


( जग मोहन ठाकन )






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