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यह जानकारी पढ़ने से पहले आपसे निवेदन है कि कृपया मानवता के नाते इस पोस्ट को शेयर जरूर करना ताकि जरुरत मंद का निःशुल्क उपचार हो जाये।
पुरादेवऽसुरायुद्धेहताश्चशतशोसुराः।
हेन्यामान्यास्ततो देवाः शतशोऽथसहस्त्रशः।
अर्थात जीवन मे चाहे धन, एश्वर्य, मान, पद, प्रतिष्ठा आदि सभी कुछ हो, परंतु शरीर मे बीमारी है तो सब कुछ बेकार है ओर जीवन भी नीरस है। ऐसी ही एक बीमारी है पक्षाघात, जिससे पीड़ित व्यक्ति जीवनभर सारे परिवार पर बोझ बन जाता है।
राजस्थान की धरती पर के ऐसा मंदिर भी है जहा देवी देवता आशीष ही नही देते बल्कि लकवे के रोगी को इस रोग से मुक्त कर देते है | इस मंदिर में दूर दूर से लकवे के मरीज अपनों के सहारे आते है पर जाते है खुद के सहारे | कलियुग में ऐसे चमत्कार को नमन है | जहा विज्ञान फ़ैल हो जाता है और चमत्कार रंग लाता है तो ईश्वर में आस्था और अधिक बढ़ जाती है | इसी कड़ी में जानते है इस मंदिर की महिमा जो पैरालायसिस (लकवे) को सही करती है |
राजस्थान में नागौर से चालीस किलोमीटर (40KM) दूर अजमेर-नागौर रोड पर कुचेरा क़स्बे के पास है बूटाटी धाम जिसे जहाँ चतुरदास जी महाराज के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है | यह प्रसिद्द है लकवे से पीड़ित व्यक्तियों का इलाज करने में |
यह जानकारी पढ़ने से पहले आपसे निवेदन है कि कृपया मानवता के नाते इस पोस्ट को शेयर जरूर करना ताकि जरुरत मंद का निःशुल्क उपचार हो जाये।
पुरादेवऽसुरायुद्धेहताश्चशतशोसुराः।
हेन्यामान्यास्ततो देवाः शतशोऽथसहस्त्रशः।
अर्थात जीवन मे चाहे धन, एश्वर्य, मान, पद, प्रतिष्ठा आदि सभी कुछ हो, परंतु शरीर मे बीमारी है तो सब कुछ बेकार है ओर जीवन भी नीरस है। ऐसी ही एक बीमारी है पक्षाघात, जिससे पीड़ित व्यक्ति जीवनभर सारे परिवार पर बोझ बन जाता है।
राजस्थान की धरती पर के ऐसा मंदिर भी है जहा देवी देवता आशीष ही नही देते बल्कि लकवे के रोगी को इस रोग से मुक्त कर देते है | इस मंदिर में दूर दूर से लकवे के मरीज अपनों के सहारे आते है पर जाते है खुद के सहारे | कलियुग में ऐसे चमत्कार को नमन है | जहा विज्ञान फ़ैल हो जाता है और चमत्कार रंग लाता है तो ईश्वर में आस्था और अधिक बढ़ जाती है | इसी कड़ी में जानते है इस मंदिर की महिमा जो पैरालायसिस (लकवे) को सही करती है |
राजस्थान में नागौर से चालीस किलोमीटर (40KM) दूर अजमेर-नागौर रोड पर कुचेरा क़स्बे के पास है बूटाटी धाम जिसे जहाँ चतुरदास जी महाराज के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है | यह प्रसिद्द है लकवे से पीड़ित व्यक्तियों का इलाज करने में |
परिक्रमा और हवन कुण्ड की भभूति ही है दवा :
इस मंदिर में बीमारी का इलाज ना तो कोई पंडित करता है ना ही कोई वैद या हकिम | बस यहा आपको 7 दिन के लिए मरीज के साथ आना होता है और 7 दिनों तक मंदिर की परिक्रमा लगानी होती है | उसके बाद हवन कुंड की भभूति लगाये | धीरे धीरे लकवे की बीमारी दूर होने लगती है, हाथ पैर हिलने लगते है, जो लकवे के कारण बोल नही सकते वो भी धीरे धीरे बोलना शुरू कर देते है|
इस मंदिर में बीमारी का इलाज ना तो कोई पंडित करता है ना ही कोई वैद या हकिम | बस यहा आपको 7 दिन के लिए मरीज के साथ आना होता है और 7 दिनों तक मंदिर की परिक्रमा लगानी होती है | उसके बाद हवन कुंड की भभूति लगाये | धीरे धीरे लकवे की बीमारी दूर होने लगती है, हाथ पैर हिलने लगते है, जो लकवे के कारण बोल नही सकते वो भी धीरे धीरे बोलना शुरू कर देते है|
कैसे होता है यह चमत्कार :
कहते है 500 साल पहले यहाँ एक महान संत हुए जिनका नाम था चतुरदास जी महाराज | इन्होने घोर तपस्या की और रोगों को मुक्त करने की सिद्धि प्राप्त की | आज भी इनकी शक्ति ही इनके मानवीय कार्य में साथ देती है | जो इनके समाधी की परिक्रमा करते है वो लकवे में राहत पाते है|
रहने और खाने की व्यवस्था :
कहते है 500 साल पहले यहाँ एक महान संत हुए जिनका नाम था चतुरदास जी महाराज | इन्होने घोर तपस्या की और रोगों को मुक्त करने की सिद्धि प्राप्त की | आज भी इनकी शक्ति ही इनके मानवीय कार्य में साथ देती है | जो इनके समाधी की परिक्रमा करते है वो लकवे में राहत पाते है|
रहने और खाने की व्यवस्था :
इस मंदिर में इलाज करवाने आये मरीजो और उनके परिजनों के रुकने और खाने की व्यवस्था मंदिर निशुल्क करता है |
दान में आते है प्रबंध के रूपये :
दान में आते है प्रबंध के रूपये :
मंदिर की इसी कीर्ति और महिमा देखकर भक्त दान भी करते है और यह पैसा जन सेवा में ही लगाया जाता है | बहुत से लोग है जिन्हें अभी भी यकीन नही हो रहा होगा? यही मेरा भी सोच था जब तक मैं नागौर नही गया था। जब मैं वहाँ पहुँचा तो आश्चर्य चकित रह गया इस स्थान की सत्यता खुद रोगीयो ने बताई जो लकवा से पीड़ित थे। यहाँ आने के बाद वो स्वस्थ हो गए थे। आप भी एक बार जरूर जाये और सत्य अपनी आँखों से देखे।