जनता को नहीं पता है कि भगत सिंह के विरुद्ध गवाही देने वाले दो व्यक्ति
कौन थे। जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम
फेंकने का मुकद्दमा चला तो भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ
शोभा सिंह ने गवाही दी और दूसरा गवाह था शादी लाल !
दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनों को न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले। शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले आज कनौट प्लेस में सर शोभा सिंह स्कूल में कतार लगती है बच्चो को प्रवेश नहीं मिलता है जबकि शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है।
सर शादीलाल और सर शोभा सिंह, भारतीय जनता कि नजरों मे घृणा के पात्र थे अब तक है, लेकिन शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया। शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था।
शोभा सिंह खुशनसीब रहा। उसे और उसके पिता सुजान सिंह (जिसके नाम पर पंजाब में कोट सुजान सिंह गांव और दिल्ली में सुजान सिंह पार्क है) को राजधानी दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में हजारों एकड़ जमीन मिली और खूब पैसा भी। उसके बेटे खुशवंत सिंह ने शौकिया तौर पर पत्रकारिता शुरु कर दी और बड़ी-बड़ी हस्तियों से संबंध बनाना शुरु कर दिया। सर सोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा मैनेज करता है। आज दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाराखंबा रोड पर जिस स्कूल को मॉडर्न स्कूल कहते हैं वह शोभा सिंह की जमीन पर ही है और उसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम से जाना जाता था। खुशवंत सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पिता को एक देश भक्त और दूरद्रष्टा निर्माता साबित करने का भरसक कोशिश की।
खुशवंत सिंह ने खुद को इतिहासकार भी साबित करने की भी कोशिश की और कई घटनाओं की अपने ढंग से व्याख्या भी की। खुशवंत सिंह ने भी माना है कि उसका पिता शोभा सिंह 8 अप्रैल 1929 को उस वक्त सेंट्रल असेंबली मे मौजूद था जहां भगत सिंह और उनके साथियों ने धुएं वाला बम फेका था। बकौल खुशवंत सिह, बाद में शोभा सिंह ने यह गवाही दी, शोभा सिंह 1978 तक जिंदा रहा और दिल्ली की हर छोटे बड़े आयोजन में बाकायदा आमंत्रित अतिथि की हैसियत से जाता था। हालांकि उसे कई जगह अपमानित भी होना पड़ा लेकिन उसने या उसके परिवार ने कभी इसकी फिक्र नहीं की। खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित करवाता है। जिसमे बड़े-बड़े नेता और लेखक अपने विचार रखने आते हैं, बिना शोभा सिंह की असलियत जाने (या फिर जानबूझ कर अनजान बने) उसकी तस्वीर पर फूल माला चढ़ा आते हैं, और भी गवाह थे ।
1. शोभा सिंह
2. शादी राम
3. दिवान चन्द फ़ोर्गाट
4. जीवन लाल
5. नवीन जिंदल की बहन के पति का दादा
6. भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दादा
दीवान चन्द फोर्गाट D. L. F. कम्पनी का founder था इसने अपनी पहली कालोनी रोहतक में काटी थी। इसकी इकलौती बेटी थी जो कि K. P. Singh को ब्याही और वो मालिक बन गया DLF का।
अब K. P. Singh की भी इकलौती बेटी है जो कि कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आज़ाद (गुज्जर से मुस्लिम Converted) के बेटे सज्जाद नबी आज़ाद के साथ ब्याही गई है। अब ये DLF का मालिक बनेगा। जीवनलाल मशहूर एटलस कम्पनी का मालिक था।
दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनों को न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले। शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले आज कनौट प्लेस में सर शोभा सिंह स्कूल में कतार लगती है बच्चो को प्रवेश नहीं मिलता है जबकि शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है।
सर शादीलाल और सर शोभा सिंह, भारतीय जनता कि नजरों मे घृणा के पात्र थे अब तक है, लेकिन शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया। शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था।
शोभा सिंह खुशनसीब रहा। उसे और उसके पिता सुजान सिंह (जिसके नाम पर पंजाब में कोट सुजान सिंह गांव और दिल्ली में सुजान सिंह पार्क है) को राजधानी दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में हजारों एकड़ जमीन मिली और खूब पैसा भी। उसके बेटे खुशवंत सिंह ने शौकिया तौर पर पत्रकारिता शुरु कर दी और बड़ी-बड़ी हस्तियों से संबंध बनाना शुरु कर दिया। सर सोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा मैनेज करता है। आज दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाराखंबा रोड पर जिस स्कूल को मॉडर्न स्कूल कहते हैं वह शोभा सिंह की जमीन पर ही है और उसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम से जाना जाता था। खुशवंत सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पिता को एक देश भक्त और दूरद्रष्टा निर्माता साबित करने का भरसक कोशिश की।
खुशवंत सिंह ने खुद को इतिहासकार भी साबित करने की भी कोशिश की और कई घटनाओं की अपने ढंग से व्याख्या भी की। खुशवंत सिंह ने भी माना है कि उसका पिता शोभा सिंह 8 अप्रैल 1929 को उस वक्त सेंट्रल असेंबली मे मौजूद था जहां भगत सिंह और उनके साथियों ने धुएं वाला बम फेका था। बकौल खुशवंत सिह, बाद में शोभा सिंह ने यह गवाही दी, शोभा सिंह 1978 तक जिंदा रहा और दिल्ली की हर छोटे बड़े आयोजन में बाकायदा आमंत्रित अतिथि की हैसियत से जाता था। हालांकि उसे कई जगह अपमानित भी होना पड़ा लेकिन उसने या उसके परिवार ने कभी इसकी फिक्र नहीं की। खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित करवाता है। जिसमे बड़े-बड़े नेता और लेखक अपने विचार रखने आते हैं, बिना शोभा सिंह की असलियत जाने (या फिर जानबूझ कर अनजान बने) उसकी तस्वीर पर फूल माला चढ़ा आते हैं, और भी गवाह थे ।
1. शोभा सिंह
2. शादी राम
3. दिवान चन्द फ़ोर्गाट
4. जीवन लाल
5. नवीन जिंदल की बहन के पति का दादा
6. भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दादा
दीवान चन्द फोर्गाट D. L. F. कम्पनी का founder था इसने अपनी पहली कालोनी रोहतक में काटी थी। इसकी इकलौती बेटी थी जो कि K. P. Singh को ब्याही और वो मालिक बन गया DLF का।
अब K. P. Singh की भी इकलौती बेटी है जो कि कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आज़ाद (गुज्जर से मुस्लिम Converted) के बेटे सज्जाद नबी आज़ाद के साथ ब्याही गई है। अब ये DLF का मालिक बनेगा। जीवनलाल मशहूर एटलस कम्पनी का मालिक था।
(Abhiruni Jha)
our generation should know about this. Very nice article
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