नई दिल्ली।। तीन साल की तल्खी के बाद बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना ने उससे नाता तोड़ने का फैसला कर लिया है. शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में यह फैसला लिया गया है कि पार्टी 2019 का चुनाव बिना किसी गठबंधन के अकेले अपने दम पर लड़ेगी. इसको सियासी लिहाज से बीजेपी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है लेकिन इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि हालिया दौर में जिस तरह दोनों दलों के बीच तल्खी बढ़ी, उसके मद्देनजर इस कदम को अप्रत्याशित नहीं माना जाना चाहिए. इस पूरे घटनाक्रम में इन दोनों दलों के बीच बढ़ती दूरी की मुख्य वजहों पर आइए डालते हैं एक नजर:2014 का लोकसभा चुनाव
मोदी लहर के चलते आम चुनाव में महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को 23 और शिवसेना को 18 सीटें मिली थीं. उसके बाद महाराष्ट्र की सियासत में पहली बार शिवसेना का दबदबा थोड़ा कमजोर हुआ और बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं. इससे पहले महाराष्ट्र की सियासत में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन में से शिवसेना बड़े भाई की भूमिका में रहा करती थी. लेकिन उसका रुतबा कमजोर हुआ.
मोदी लहर के चलते आम चुनाव में महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को 23 और शिवसेना को 18 सीटें मिली थीं. उसके बाद महाराष्ट्र की सियासत में पहली बार शिवसेना का दबदबा थोड़ा कमजोर हुआ और बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं. इससे पहले महाराष्ट्र की सियासत में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन में से शिवसेना बड़े भाई की भूमिका में रहा करती थी. लेकिन उसका रुतबा कमजोर हुआ.