आखिर हर शुभ कार्य की शुरूआत स्वस्तिक बनाकर ही क्यों की जाती है ?
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आखिर हर शुभ कार्य की शुरूआत स्वस्तिक बनाकर ही क्यों की जाती है ?

Image result for swastik      स्वस्तिक का भारतीय संस्कृति में बड़ा महत्व है। हर शुभ कार्य की शुरूआत स्वस्तिक बनाकर ही की जाती है। यह मंगल भावना एवं सुख सौभाग्य का प्रतीक है। ऋग्वेद में स्वस्तिक के देवता सवृन्त का उल्लेख है। सवृन्त सूत्र के अनुसार इस देवता को मनोवांछित फलदाता सम्पूर्ण जगत का कल्याण करने और देवताओं को अमरत्व प्रदान करने वाला कहा गया है। स्वस्तिक शब्द को 'सु' औरं 'अस्ति' दोनों से मिलकर बना है। 'सु' का अर्थ है शुभ और 'अस्तिका अर्थ है- होना यानी जिस से 'शुभ हो', 'कल्याण हो वही स्वस्तिक है।  
   यही कारण है कि घर के वास्तु को ठीक करने के लिए स्वस्तिक का उपयोग किया जाता है। स्वस्तिक के चिह्न को भाग्यवर्धक वस्तुओं में गिना जाता है। इसे बनाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाती है। घर में किसी भी तरह का वास्तुदोष होने पर घर के मुख्यद्वार के बाहरी हिस्से को धोएं और गोमूत्र का छिड़काव कर। दरवाजे के दोनों और नियम से हल्दी-कुमकुम का स्वस्तिक बनाएं। यह प्रयोग नियमित रूप से करने पर कई तरह के वास्तुदोष अपने आप खत्म हो जाएंगे। साथ ही, मां लक्ष्मी प्रसन्न होंगी और घर में कभी दरिद्रता नहीं आएगी।
कहा गया है....
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:।
स्वस्तिनस्ता रक्षो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पर्तिदधातु।।
   माना जाता है कि इस मंत्र में चार बार आए 'स्वस्ति' शब्द के रूप में चार बार कल्याण और शुभ की कामना से श्रीगणेश के साथ इन्द्र, गरूड़, पूषा और बृहस्पति का ध्यान और आवाहन किया गया है।
- इस मंगल-प्रतीक का गणेश की उपासना, धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ, बही-खाते की पूजा की परंपरा आदि में विशेष स्थान है।चारों दिशाओं के अधिपति देवताओं, अग्नि, इन्द्र, वरुण और सोम की पूजा हेतु एवं सप्तऋषियों के आशीर्वाद को पाने के लिए स्वस्तिक बनाया जाता है। यह चारों दिशाओं और जीवन चक्र का भी प्रतीक है।
   शास्त्रों के मुताबिक स्वस्तिक परब्रह्म, विघ्रहर्ता व मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेश का भी साकार रूप है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा 'गं' बीजमंत्र होता है, जो भगवान श्रीगणेश का स्थान माना जाता है। इसमें जो चार बिंदियां होती है, उनमें गौरी, पृथ्वी, कूर्म यानी कछुआ और अनन्त देवताओं का वास माना जाता है।
   इसी तरह वेद भी 'स्वस्तिक' श्रीगणेश का स्वरूप होने की बात कहते हैं। स्वस्तिक बनाने के धर्म दर्शन में व्यावहारिक नजरिए से संकेत यही है कि जहां माहौल और संबंधों में प्रेम, प्रसन्नता, श्री, उत्साह, उल्लास, सौंदर्य व विश्वास होता है, वहां शुभ, मंगल और कल्याण होता है यानी श्री गणेश का वास होता है। उनकी कृपा से अपार सुख और सौभाग्य प्राप्त होता है।
- स्वस्तिक का आविष्कार आर्यों ने किया और पूरे विश्व में यह फैल गया। आज तक स्वस्तिक का प्रत्येक धर्म और संस्कृति में अलग-अलग रूप में इस्तेमाल किया गया है। कुछ धर्म और समाजों में स्वस्तिक का गलत अर्थ लेकर उसका गलत जगहों पर इस्तेमाल किया तो कुछ ने उसके सकारात्मक पहलू को समझा।
   स्वस्तिक को भारत में ही नहीं, दुनिया के कई दूसरे देशों में विभिन्न स्वरूपों में देखा गया है। जर्मनी, यूनान, अमेरिका, स्कैण्डिनेविया, सिसली, स्पेन, सीरिया, तिब्बत, चीन, साइप्रस और जापान, फ्रंस, रोम, मिस्र, ब्रिटेन, आदि देशों में भी स्वस्तिक का प्रचलन किसी न किसी रूप में मिलता है।

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