आखिर क्या है ऑफिस ऑफ प्रॉफिट (लाभ का पद) ?
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आखिर क्या है ऑफिस ऑफ प्रॉफिट (लाभ का पद) ?

      संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (ए) के तहत सांसद या विधायक ऐसे किसी और पद पर नहीं हो सकता, जहां वेतन, भत्ते या अन्य फायदे मिलते हों. इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 191 (1) (ए) और जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (ए) के तहत भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट में सांसदों-विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रावधान है.
       21 अगस्त 1954 को लोकसभा के पहले स्पीकर जी वी मावलंकर ने राज्यसभा के चेयरमैन से सलाह कर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के लिए एक कमेटी बनाई. इस कमेटी के अध्यक्ष थे पंडित ठाकुर दास भार्गव, जिनके कारण इसे भार्गव कमेटी कहा जाता है. वे हिसार से सांसद थे. कमेटी का सुझाव था कि एक बिल लाकर साफ किया जाए कि कौन सा पद लाभ का है और कौन सा नहीं है.
     सुप्रीम कोर्ट ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट निर्धारित करने के लिए कुछ टेस्ट तय किए हैं. पहला टेस्ट यह है कि ऑफिस है या नहीं. दूसरा टेस्ट है कि प्रॉफिट हुआ या नहीं. सबसे अहम टेस्ट यह है कि क्या सरकार ने नियुक्ति की है. क्या सरकार विधायक को वेतन देती है, भत्ते का भुगतान करती है. उधर, 2006 में जया बच्चन के मामले में दिया गया सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला कहता है कि अगर किसी सांसद या विधायक ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का पद लिया है तो उसे सदस्यता गंवानी होगी चाहे वेतन या भत्ता लिया हो या नहीं।

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