तो इस वजह से आते है खर्राटे ..
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तो इस वजह से आते है खर्राटे ..

Image result for motape ki vajah se aate hai kharatte    नई दिल्ली।। देश में 10 पर्सेंट लोगों को स्लीप डिसऑर्डर है और वे नींद में खर्राटे लेते हैं। खर्राटे लेकर सोने वालों के बारे में समझा जाता है कि वे गहरी नींद में हैं, लेकिन हकीकत यह है कि उनके हार्ट को सही तरीके से ऑक्सीजन नहीं मिलती है। खर्राटे भरने वाले मरीजों की स्लीप स्टडी में पाया गया कि एक घंटे की नींद में 80 से ज्यादा बार नींद खुल जाती है। रात में नींद पूरी न होने से ऐसे लोग गाड़ी चलाते हुए, बस में बैठे हुए और रिक्शे पर बैठे-बैठे सो जाते हैं। इससे कई बार एक्सिडेंट का खतरा रहता है। इस बीमारी का समय पर इलाज न हो, तो यह न केवल डायबीटीज और बीपी का कारण बनता है बल्कि हार्ट अटैक होने का खतरा रहता है। इसके मद्देनजर एम्स ने दिल्ली के स्कूली बच्चों की स्लीप स्टडी करने का फैसला किया है, ताकि समय पर इलाज हो सके। 
     एम्स के पल्मनरी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन के एचओडी डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने बताया कि खर्राटे की मुख्य वजह मोटापा है। मोटे व्यक्ति के गर्दन के पास मोटापा होता है। नींद में होने पर मशसल्स रिलैक्स हो जाते हैं, जिससे थ्रोट का डायमीटर कम हो जाता है और सांस नली में उस लेवल पर ऑक्सीजन नहीं जा पाता है जितने की जरूरत होती है। इस वजह से कितने लोगों की मौत हो रही है इसका डेटा नहीं है। रोजाना 2-3 मरीजों की स्लीप स्टडी की जा रही है। इसके अलावा, बच्चों की स्लीप स्टडी करने का भी फैसला किया गया है। डॉक्टर गुलेरिया ने बताया कि डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्रोलॉजी के सहयोग से एम्स में यह स्टडी की जा रही है। बच्चों की स्टडी के लिए एनडीएमसी इलाके के स्कूलों को चुना गया है। 5 से 16 साल के इन बच्चों की स्क्रीनिंग घर-घर जाकर की जाएगी। बच्चों का वजन लिया जाएगा और उनसे सवाल-जवाब किए जाएंगे। उन्हें नींद कैसी आती है और सुबह का उनका व्यवहार कैसा होता है इसकी भी जांच होगी। इसके बाद पोर्टेबल स्लीप डिसऑर्डर मशीन लेकर उनके घर पर ही पूरी रात बच्चे की स्लीप स्टडी की जाएगी। इसमें एक तरह का मास्क होता है और एक पंप होता है, जो बिजली से चलता है। पल्मनरी, क्रिटिकल केयर और स्लीप मेडिसिन के अपडेट पर एम्स और अमेरिकन कॉलेज ऑफ चेस्ट फिजिशन के साथ मिलकर एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया, जिसमें देश भर के डॉक्टर शामिल हुए। एम्स में इसके लिए एक स्पेशल डिपार्टमेंट है, जिसमें लगभग 20 बेड हैं और रोजाना दो से तीन मरीजों की स्लीप स्टडी की जा रही है।

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