इंजीनियर ने नौकरी छोड़ लगाया बाग, अब 500 रुपये किलो बिकते हैं अमरूद
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इंजीनियर ने नौकरी छोड़ लगाया बाग, अब 500 रुपये किलो बिकते हैं अमरूद

      हरियाणा के जींद जिले के संगतपुर गांव के नीरज ढांडा पेशे से इंजीनियर हैं, लेकिन अमरूदों से उन्हें इतना प्यार हुआ कि वे नौकरी छोड़कर इसकी खेती करने में लग गए।


अमरूद के बाग

     बीटेक की पढ़ाई करने के बाद नीरज ने कुछ दिनों तक डेवलपर की नौकरी की थी, लेकिन घर परिवार और गांव से काफी लगाव होने के बाद उन्होंने वापस गांव की ओर अपने कदम खींच लिए।
     अब उनकी मेहनत रंग लाई है और उनके पौधों ने फल देना शुरू कर दिया। ये अमरूद इतने बड़े होते हैं कि उसे एक आदमी सही से खा नहीं सकता। उसका पेट भर जाएगा। इस साल उन्हें एक पेड़ से लगभग 50 किलो के फल मिले हैं, जो कि काफी सकारात्मक है।
      सर्दी का मौसम आ गया है और इस सुहाने मौसम में अमरूद दिख जाए तो बस मन करता है कि खा ही लें। कौन भला ऐसा होगा जिसे अमरूदों से प्यार न हो। अपने अंदर तमाम खूबियां समेटे अमरूद किसी इंजिनियर की जिंदगी भी बदल रहा है। हरियाणा के जींद जिले के संगतपुर गांव के नीरज ढांडा पेशे से इंजिनियर हैं, लेकिन अमरूदों से उन्हें इतना प्यार हुआ कि वे नौकरी छोड़कर इसकी खेती करने में लग गए। बीटेक की पढ़ाई करने के बाद नीरज ने कुछ दिनों तक डेवलपर की नौकरी की थी, लेकिन घर परिवार और गांव से काफी लगाव होने के बाद उन्होंने वापस गांव की ओर अपने कदम खींच लिए। उन्होंने खास किस्म के अमरूदों से अपनी जिंदगी बदल दी। उनके अमरूदों की चर्चा देश के बड़े-बड़े शहरों के लोग करते हैं।
      नीरज ने दैनिक भास्कर से बातचीत में बताया कि कुछ साल पहले वो छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में थे। वहां उन्होंने अमरूद की खास प्रजाति के बारे में सुना। उन्होंने उस अमरूद को देखा तो वे हैरान रह गए। देखने में काफी सुंदर और बड़े अमरूद देखकर उनका मन ललचा गया। उन्होंने इसके बाग लगाने के बारे में विचार किया और घर लौटकर इसकी कार्ययोजना भी बनानी शुरू कर दी। उन्होंने अपने 7 एकड़ के खेतों में लगभग 1900 पौधे रोपे। उन्होंने रायपुर से ही उस थाई किस्म के सारे पौधे मंगाए। इसमें उन्हें काफी खर्च आया लेकिन उन्होंने ठान लिया था कि वे इसे पूरा कर के ही रहेंगे।


एक प्रदर्शनी में अपने स्टाल के साथ नीरज
       अब उनकी मेहनत रंग लाई है और उनके पौधों ने फल देना शुरू कर दिया। ये अमरूद इतने बड़े होते हैं कि उसे एक आदमी सही से खा नहीं सकता। उसका पेट भर जाएगा। इस साल उन्हें एक पेड़ से लगभग 50 किलो के फल मिले हैं, जो कि काफी सकारात्मक है। उन्होंने बताया कि जब नींबू आकर के अमरूद पौधे को लगे थे तभी से उनका सेलेक्शन करना शुरू कर दिया था और उसके बाद अत्याधुनिक तकनीक से उसके ऊपर बारिश, आंधी, ओले आदि किसी प्राकृतिक आपदा बीमारी का नुकसान हो इसके लिए फोम लगाया गया। जब थोड़ा बड़ा हुआ तो फिर तापमान संतुलित रखने के लिए पॉलीथीन और अखबार का कागज बांधा गया। अगस्त माह में 1 से डेढ़ किलो के अमरूद मिलने शुरू हो गए थे।


इतने बड़े होते हैं जंबो अमरूद
       जितनी अनोखी कहानी नीरज के अमरूद के बाग लगाने की है उससे भी ज्यादा दिलचस्प है उनकी मार्केटिंग की रणनीति। वे अपने अमरूदों को किसी सब्जी मंडी या दुकान में नहीं बेचते। वे इसे सीधे ऑनलाइन रिटेलिंग के जरिए बेचते हैं। उन्हें थोक में जहां से भी ऑर्डर मिलते हैं वे इन्हें बेच देते हैं। उन्हें दिल्ली, चंडीगढ़, पंचकूला, नोएडा, गुरूग्राम, गाजियाबाद सहित कई जगहों से लोगों के ऑर्डर मिलते हैं और इसी के हिसाब से वे अमरूद वहां पहुंचा देते हैं। उन्होंने इसके लिए डोर नेक्स्ट फार्म नाम से एक कंपनी भी बनाई है। उनकी वेबसाइट से ऑर्डर करने के बाद 48 घंटो के अंदर अमरूदों की डिलिवरी हो जाती है।

डिलिवरी के लिए रेडी अमरूद के गत्ते
       नीरज इन जंबो अमरूदों के पेड़ों को रासायनिक खाद की बजाय ऑर्गैनिक तरीके से पोषण देते हैं। इसलिए ये और भी ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। इनसे कोई नुकसान नहीं हो सकता। उन्होंने नीम की खली, गोबर की खाद और वर्मी कंपोस्ट डालकर इन पौधों को शक्तिशाली बना दिया। पानी की समस्या को दूर करने के लिए उन्होंने बाग के पास ही एक तालाब बनवाया। इस तालाब में वे नहर के जरिए पानी इकट्ठा करते हैं और जरूरत पड़ने पर उसी तालाब से सिंचाई करते रहते हैं। अमरूद की खासियत ये होती है कि ये गर्मी और सर्दी दोनों सीजन में हो जाते हैं। इसलिए उन्हें अधिक फायदा हो रहा है। नीरज बताते हैं कि उनके अमरूद 500 रुपये किलो तक बिकते हैं।नीरज अपने पौधों की देखभाल खास तरीके से करते हैं। पेड़ों में फल आने के बाद जब वो नीम के बीज के बराबर हो जाता है तो उसे हाथ नहीं लगाया जाता। पेस्टिसाइड के तौर पर वे नीम के तेल का इस्तेमाल करते हैं और थोड़े बड़े हो जाने पर वे फलों को किसी कागज या अखबार से लपेट कर उसे डोरी से बांध देते हैं। नीरज कहते हैं कि वे कृषि अर्थव्यवस्था में बदलाव लाना चाहते हैं क्योंकि पारंपरिक खेती में किसानों को खास लाभ नहीं होता। वे कहते हैं कि आज के युग में किसानों को ऐसी नकदी वाली खेती करनी चाहिए। 

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