कही इसलिए तो नहीं बड़ा राफाल डील में खर्च ,,
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कही इसलिए तो नहीं बड़ा राफाल डील में खर्च ,,

No automatic alt text available.     बिना किसी कारण सिर्फ छुट्टियां मनाने के लिए राहुल विदेश जाते हैं तब भी उनकी यात्राओं को सुरक्षा के नाम पर गुप्त रखा जाता...राफेल डील तो पूरे देश की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है...उसकी जानकारी कांग्रेस को क्यों चाहिए.?
     पहला कारण है राफाल में अतिरिक्त अत्याधुनिक उपकरण भी अब सम्मिलित किये गए हैं जो पहले नहीं थे, किन्तु इनकी जानकारी भारत सरकार चाहे भी तो नहीं दे सकती है क्योंकि कांग्रेस के शासन में ही फ्रांस से 2008 में समझौता हुआ था कि फ्रांस द्वारा दिए गए क्लासिफाइड जानकारी को भारत गुप्त रखेगा | राफाल संसार के सर्वशेष्ठ युद्धक विमानों में से है और इसके कुछ लक्षण तो सर्वोत्तम हैं | 2011 में छ कम्पनियों ने टेंडर भरे थे जिनके बारे में वायुसेना की तकनीकी कमिटी ने जनवरी 2012 में रिपोर्ट दी थी कि भारत की जो आवश्यकता है उसके लिए राफाल सबसे उत्तम है |
       राफाल की वह तकनीकी श्रेष्ठता क्या है और भारत की क्या आवश्यकता है यह भारत सरकार नहीं बता सकती यह फ्रांस ने करार करा लिया था, कांग्रेस के ही शासन काल में | यह फ्रांस का सर्वोत्तम युद्धक विमान है | फ्रांस अपनी सर्वोत्तम तकनीक को गुप्त रखना चाहता है |
       वह खासियत है -- एक राफाल विमान तीन ब्रह्मोस मिसाइल को एकसाथ लेकर चार हज़ार किलोमीटर तक उड़ सकता है, दो हज़ार जाना और दो हज़ार आना | भारत के पास हाइड्रोजन बम भी है | एक अकेला पायलट बीजिंग, शंघाई और हांगकांग-कैण्टन इन तीन क्षेत्रों को हाइड्रोजन बम से युक्त तीन ब्रह्मोस मिसाइल द्वारा अकेले स्वाहा कर सकता है | विएतनाम से चीन पर ब्रह्मोस छोड़ने की तैयारी भारत ने पहले ही कर ली थी, अब पनडुब्बी से भी छोड़ने की तैयारी हो रही है | यह बात विएतनाम भी खुलकर स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि वहां भी क़ानून है कि किसी अन्य देश को वहां सैन्य अड्डा स्थापित करने की अनुमति नहीं दी जायेगी, किन्तु विएतनाम पर भी चीन आक्रमण कर चुका है और भारत पर भी, अतः इस मुद्दे पर विएतनाम भारत का सहयोगी है | जब कांग्रेस ने राफाल डील को टलवा दिया तो वायुसेना ने मनमोहन सरकार को बिना बताये रूस के सुखोई विमान पर ही ब्रह्मोस मिसाइल लगाने पर कार्य आरम्भ कर दिया जो अब पूरा हुआ है | सुखोई की रेंज राफाल से भी डेढ़ गुनी अधिक है, किन्तु राफाल तीन ब्रह्मोस एकसाथ छोड़ सकता है -- वह भी तीन अलग-अलग ठिकानों पर | रूस ने सुखोई विमान बनाने की तकनीक तो भारत को सौंप दी थी किन्तु सुखोई पर ब्रह्मोस जैसा भारी और सूक्ष्म तकनीक वाला क्रूज मिसाइल कैसे लगेगा यह तकनीक रूस नहीं दे रहा था (या भारत ने माँगा ही नहीं ? कांग्रेस राज में तो राफाल भी नहीं लिया गया)|
     ये बातें फ्रांस या भारत यदि बताये तो कई अन्तर्राष्ट्रीय संधियों के उल्लंघन का विवाद खड़ा हो जाएगा | चीन तो जानबूझकर हंगामा कराकर भारत के विरुद्ध हर प्रकार के प्रतिबन्ध लगाना चाहेगा ही |
     कांग्रेस कहती है कि राफाल डील कांग्रेस ने सस्ते में किया था | सस्ता या मँहगा बाद में, डील किया था तो जनवरी 2012 में वायुसेना द्वारा स्वीकृति मिलने के बाद भी कांग्रेस ने खरीदा क्यों नहीं ?
      कांग्रेस का यह प्रचार झूठा है कि रक्षामन्त्री ने राफाल डील के बारे में कोई उत्तर नहीं दिया | रक्षामन्त्री ने तो राफाल की कीमत भी बता दी है, जो कांग्रेस द्वारा निर्धारित कीमत से डेढ़ गुनी कम है, यह है निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में उत्तर :--
http://zeenews.india.com/…/rafale-deal-is-a-scam-rahul-gand…
       किन्तु राफाल विमान की कीमत में अन्य खर्चों को जोड़कर राहुल गांधी झूठा प्रचार कर रहे है कि विमान की कीमत बढ़ गयी है | अन्य खर्चे हैं भारत में अनेक तकनीक ट्रान्सफर करना, विमान में नवीनतम तकनीक वाले अनेक आयुधों को जोड़ना, और 2011 के टेन्डर के काल से मँहगाई में वृद्धि | अतिरिक्त खर्चों को छोड़ दें तो विमान की कीमत घटी है, जिसका अर्थ यह है कि घूस पहले सम्मिलित था, अब नहीं | कुल खर्चे को केवल विमानों का खर्चा बताकर कांग्रेस और मीडिया देश को गुमराह कर रही थी जिस कारण लगता था कि सेना के अधिकारियों ने घूस खाया होगा तभी मूल्य इतना बढ़ गया ! किन्तु पूरे डील की जांच से स्पष्ट होता है कि घूस की गुंजाइश नहीं है | आरम्भ में जब मोदी सरकार ने डील किया था तब सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी घूसखोरी के आरोप लगाए थे। मिस्र की वायुसेना को मोदी-सरकार द्वारा तय कीमत से 33% अधिक कीमत पर राफाल दिया गया, जिसका अर्थ यह हुआ कि मिस्र के घूसखोर को 33% घूस दिया गया तब जाकर मिस्र राफाल खरीदने के लिए राजी हुआ |
       राफाल डील में तकनीकी आयुध स्थानान्तरण का भी करार हुआ है जिस कारण खर्च बढ़ा है (इसी बढे खर्च को कांग्रेस "घोटाला" कह रही है), भारत में ही भविष्य में राफाल बन सके इसकी बात हुई है किन्तु करार नहीं हुआ है | 2012 में फ्रांस सम्पूर्ण तकनीकी स्थानान्तरण के लिए तैयार था किन्तु उसका कहना था कि हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स के कारखाने में राफाल बनाने की तकनीकी क्षमता नहीं है, उसका उपाय करना होगा | इसपर भारत सरकार ने कोई उत्तर नहीं दिया और मामले को टाल दिया, हालाँकि वायुसेना कह रही थी कि मिग विमान बहुत पुराने पड़ चुके हैं जबकि चीन और पाकिस्तान के पास आधुनिक विमान हैं | भारत के तेजस विमान की परियोजना को भी कांग्रेस रुकवा देती थी, भाजपा शासन में ही प्रगति होती थी (उस परियोजना के निदेशक मेरी नानीगाँव के हैं - डॉ मानस बिहारी वर्मा, जो कलाम साहब के मित्र हैं, राष्ट्रपति रहते हुए कलाम साहब दरभंगा आये थे तो जिलाधीश को भेजकर मानस बाबू को अपने मंच पर बुलवाए थे)| अभी भी हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स के कारखाने में राफाल बनाने की तकनीकी क्षमता नहीं है, किन्तु अब मोदी सरकार ने हरी झण्डी दे दी है कि यदि फ्रांस तकनीक देने के लिए तैयार है तो भारत समुचित कदम उठाने के लिए तैयार है | हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स को वह तकनीक दी जायेगी या किसी अन्य भारतीय कम्पनी को यह निर्णय फ्रांस लेगा क्योंकि मामला तकनीक का है और तकनीक जिसकी है वही तय करेगा कि उस तकनीक के लिए कौन सी भारतीय कम्पनी बेहतर होगी | अभी फ्रांस ने इस विषय में निर्णय नहीं लिया है, फ्रांस जाँच करने के बाद ही निर्णय लेगा |
       अतः कांग्रेस ने जितने बिन्दु राफाल पर उठाये हैं वे सब के सब झूठे हैं | राहुल को पता है कि राफाल डील की गोपनीयता वाली बातें भारत सरकार कभी नहीं खोल सकती, अतः इस बहाने मोदी को घूसखोर कहकर गरियाना सम्भव है !! यदि मोदी सरकार झूठी है तो राहुल संसद में इस मुद्दे पर बहस से क्यों कतराते है ? केवल मीडिया में ही हंगामा क्यों करते है ?
      अतः राफाल डील में "घोटाला" हुआ है और यह घोटाला मनमोहन सरकार ने किया था जिसे अब सुधारा गया है | इस घोटाले के दो हिस्से हैं :--
       गौण हिस्सा यह है कि कांग्रेस ने अधिक कीमत पर समझौता किया था, 67% के बदले 100% को आज निर्मला सीतारमण "डेढ़ गुना" बता रही है जो उचित ही है (67 का डेढ़ गुना 100 है), और अपने पुराने लेख में मैंने मिस्र की तुलना में 33% बताया था जो सही ही था (67 और 100 में 33 का अन्तर)| मिस्र द्वारा राफाल की खरीद में घूस की जो रकम दी गयी वही रकम कांग्रेस ने भी माँगी, क्योंकि इन्दिरा गांधी ने ही कह दिया था कि भ्रष्टाचार एक "ग्लोबल फेनोमेनन" है | अतः कांग्रेस को ग्लोबल रेट वाला घूस चाहिए ! राजीव गांधी ने रेट घटाकर बोफोर्स में केवल 3% पर ला दिया जिसे सोनिया राज में सुधारकर 33% तक पंहुचाया गया |
       किन्तु इससे भी कई गुना अधिक महत्वपूर्ण है इस घोटाले का दूसरा हिस्सा :- इतना अधिक घूस देने के लिए फ्रांस की कम्पनी तैयार थी फिर भी कांग्रेस ने निर्णय टाल दिया जबकि वायुसेना के सारे विमान पुराने पड़ गए थे और नए विमान के लिए वायुसेना मांग कर रही थी, आये दिन पुराने युद्धक विमानों की दुर्घटनाएं हो रही थीं | स्पष्ट है कि भारत राफाल खरीदे इसके लिए फ्रेंच कम्पनी जितना घूस दे रही थी उससे बहुत अधिक घूस राफाल नहीं खरीदने के लिए कोई अन्य देश दे रहा था !
       यद्यपि भारत के वैज्ञानिकों ने सुखोई पर ब्रह्मोस लगाकर सफल परीक्षण कर लिया है और सुखोई की रेंज राफाल से डेढ़ गुनी अधिक है, आज भी ब्रह्मोस के लिए सुखोई से बहुत श्रेष्ठ राफाल ही है | इस मामले में और अनेक अन्य अतिरिक्त गुणों के कारण राफाल संसार का सर्वश्रेष्ठ विमान है यह भारतीय वायुसेना के तकनीकी कमिटी की रिपोर्ट है | ब्रह्मोस जैसा द्रुतगामी क्रूज मिसाइल अमरीका और चीन के पास भी नहीं है, समुद्रतल से केवल तीन मीटर की ऊँचाई पर यह उड़ सकता है ! कल्पना कर सकते हैं कि कलाम साहब की टोली ने इतने तेज मिसाइल को राडार से बचाने के लिए इतनी कम ऊँचाई पर उड़ाने में कितनी सूक्ष्म और त्रुटिहीन नैनो तकनीक का प्रयोग किया होगा ! ऐसे मिसाइल को लक्ष्य तक सही सलामत पँहुचाने के लिए किस प्रकार का अत्याधुनिक विमान चाहिए यह कल्पना करना कठिन नहीं है |
   वैज्ञानिक सबूत चाहिए ? यह है भाभा एटॉमिक रिसर्च सेन्टर (BARC) की प्रामाणिक विस्तृत विज्ञप्ति जिसमें 45 किलोटन वाले एक थर्मोन्यूक्लियर बम का स्पष्ट उल्लेख है :--
https://fas.org/nuke/guide/india/nuke/990700-barc.htm
     एक पिछले अंग्रेजी लेख में मैंने विस्तार से तकनीकी और तथ्यात्मक प्रमाण दिए थे कि पोख्र२न-2 में एक बम हाइड्रोजन बम (थर्मोन्यूक्लियर) भी था | परमाणु बम 20 किलोटन TNT ऊर्जा से अधिक हो ही नहीं सकता, जिसका कारण है क्रिटिकल भार | किन्तु थर्मोन्यूक्लियर बम की कोई सीमा नहीं होती, एक बार आपके पास यह तकनीक हो जाय तो पूरे महादेश को भस्म करने वाले बम भी आप बना सकते हैं जिन्हें कॉन्टिनेंटल क्रैकर कहा जाता है, ऐसे देश को कोई पराजित नहीं कर सकता | किन्तु थर्मोन्यूक्लियर बम बनाकर घर में रखे रहने से कोई लाभ नहीं, शत्रुदेश के हृदय तक उसे पंहुचाना भी तो पडेगा ! यह कार्य सुखोई भी कर सकता है और राफाल भी, किन्तु राफाल की तकनीक बेहतर है | राफाल या सुखोई जैसा विमान, ब्रह्मोस जैसा राडार-प्रूफ मिसाइल और थर्मोन्यूक्लियर बम -- इन तीनों का संयोग भारत को सुपरपावर बनाने के लिए पर्याप्त है और यह क्षमता भारत अर्जित कर चुका है |
      पोखरण-2 का एक बम 45 किलोटन वाला थर्मोन्यूक्लियर था जिसे हाइड्रोजन-हीलियम की संलयन-प्रक्रिया कराने के लिए अनिवार्य 2 करोड़ डिग्री तापमान बनाने के लिए 20 किलोटन से कुछ कम वाले एक परमाणु विस्फोट की आवश्यकता पड़ी और शेष 25 किलोटन से कुछ अधिक ऊर्जा विशुद्ध संलयन-प्रक्रिया वाली थी जिसे मनचाही सीमा तक बढाया जा सकता है -- थर्मोन्यूक्लियर बम की वह सीमा केवल मिसाइल और विमान की क्षमता द्वारा ही सीमित होगी | संलयन आरम्भ कराने के लिए अत्यधिक तापमान हेतु परमाणु विस्फोट के कारण ही हाइड्रोजन बम में "थर्मो-" लगाकर इसे थर्मोन्यूक्लियर बम भी कहा जाता है |
     (जी-न्यूज़ टीवी और अन्य चैनलों को थर्मोन्यूक्लियर बम के उपरोक्त प्रमाण भेजिए, ये लोग भी पाकिस्तान के पास भारत से अधिक परमाणु बम होने का प्रचार करते हैं | सैकड़ों परमाणु बमों से अधिक क्षमता एक थर्मोन्यूक्लियर बम की हो सकती है, पाकिस्तान के पास थर्मोन्यूक्लियर बम नहीं है, अतः भारत अब परमाणु बमों की संख्या क्यों बढाए ? पूरे पाकिस्तान के लिए एक ही थर्मोन्यूक्लियर बम पर्याप्त है |)

(Sanjay Dwivedi)

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