इनका ऑटोरिक्शा मीटर से नहीं दिल से चलता है
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इनका ऑटोरिक्शा मीटर से नहीं दिल से चलता है

   उदयसिंह के ऑटो की खासियत है कि इसमें मीटर की रीडिंग हमेशा जीरो ही रहती है। हां, जीरो! मतलब आप इस ऑटो से कितनी भी दूर जाना चाहें मीटर की रीडिंग हमेशा जीरो ही रहेगी।
     नि:स्वार्थ भाव से सेवा, ये वाक्य अब सिर्फ नैतिक शिक्षा की किताबों तक सीमित हो गया है। वास्तविक जीवन में इसका उदाहरण खोजना बहुत मुश्किल है। लेकिन नामुमिकन नहीं। अभी भी ऐसे लोग हैं जो वाकई में इस वाक्य के मुताबिक जीवन जी रहे हैं। हम आपको मिलवाने जा रहे हैं अहमदाबाद के फेमस ऑटोरिक्शावाले उदय सिंह जाधव से। उदय सिंह के ऑटो की खासियत है कि इसमें मीटर की रीडिंग हमेशा जीरो ही रहती है। हां, जीरो! मतलब आप इस ऑटो से कितनी भी दूर जाना चाहें मीटर की रीडिंग हमेशा जीरो ही रहेगी। आप अपना दिमाग दौड़ाएं इससे पहले ही हम बता देते हैं कि उदय सिंह किसी भी सवारी से किराया नहीं मांगते हैं। आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है? जी बिल्कुल ऐसा हो नहीं सकता बल्कि ऐसा ही होता है।
उदय भाई, जिंदादिली की अद्भुद मिसाल
       नये जमाने की गांधीगिरी: बिना पैसों के ऑटोरिक्शा चलाने वाले उदय भाई जिंदादिली की अद्भुत मिसाल हैं। वो व्यक्ति जब उदय भाई के ऑटो में बैठा तो हैरान रह गया। एकदम साफ-सुथरा ऑटो, रंगीन लाइटें, झालरें पढ़ने के लिए अखबार, मैग्जीन्स, पेपर पढ़ने के लिए छोटी सी लाइट, पीने के लिए पानी, नाश्ते के लिए भी सामान, डस्टबिन और यहां तक कि एमपीथ्री प्लेयर वो भी हिंदी और गुजराती गानों के साथ।
      तकरीबन छह साल पहले दिल्ली से एक आदमी अहमदाबाद गया। जैसे ही वो साबरमती रेलवे स्टेशन पर उतरा तो उसे मालूम चला कि उसकी जेब कट चुकी है और उसके सारे पैसे जा चुके हैं। अब उसके सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। अनजान शहर में बिना पैसों के किसी की क्या हालत हो सकती है, इसका सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है। खैर वो व्यक्ति किसी तरह स्टेशन के बाहर निकला। वहां बाहर खड़े कई ऑटोवालों से उसने अपनी हालत बयां की, लेकिन बिना पैसों के भला कोई कैसे किसी को कहीं ले जा सकता है।
कुछ दूर खड़े उदय भाई ने जब उस व्यक्ति को देखा तो उसे अपने ऑटो पर बैठा लिया और बिना कुछ पूछे उसे जहां जाना था, छोड़ने निकल पड़े। वो व्यक्ति जब उदय भाई के ऑटो में बैठा तो हैरान रह गया। एकदम साफ-सुथरा ऑटो, रंगीन लाइटें, झालरें पढ़ने के लिए अखबार, मैग्जीन्स, पेपर पढ़ने के लिए छोटी सी लाइट, पीने के लिए पानी, नाश्ते के लिए भी सामान, डस्टबिन और यहां तक कि एमपीथ्री प्लेयर वो भी हिंदी और गुजराती गानों के साथ। वो व्यक्ति सिर्फ यही सोचता रहा था, कि उसने ऐसा कौन सा काम किया था जो उसे एक अनजान शहर में ऐसे ऑटोवाले की मदद मिल गई।
       उदय सिंह अहमदाबाद में फ्री में ऑटोरिक्शा चलाते हैं। उनका ऑटो मीटर से नहीं दिल से चलता है। सफर खत्म होने के बाद वे सवारी से पैसे मांगने की बजाय उसे एक खूबसूरत लैटर पकड़ा देते हैं, जिसमें लिखा होता है कि 'दिल से पे कीजिए' औऱ जिसके मन में जो आता है वो उतना दे देता है। उदय भाई कभी किसी से कुछ नहीं कहते। चाहे कोई पांच रुपये दे या पचास।
       उदय भाई की ये कहानी शुरू होती है 2010 से। बीते सात सालों से लागातार वो भलाई का यह काम कर रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि आप ऐसा क्यों करते हैं, तो उनका जवाब था, 'मैं सिर्फ लोगों की मदद करना चाहता हूं और उन्हें बताना चाहता हूं कि प्रेम क्या होता है।' उदय कहते हैं कि अगर हम एक दूसरे की मदद नहीं करेंगे तो कौन करेगा? पूरे अहमदाबाद में उदय को 'अहमदाबाद नो ऑटोरिक्शावालों' के नाम से जाना जाता है। उन्होंने गरीबों के उत्थान के लिए काम करने वाले एनजीओ 'मानव साधना' से प्रेरणा पाकर ये काम शुरू किया था। ये एनजीओ गरीबों को मुफ्त में खाना खिलाने का काम करता है।
      उदय सिंह का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके दो भाई और छह बहने थीं। उनके पिता खुद एक ऑटो चलाते थे। लेकिन सिर्फ एक ऑटो से इतने बड़े परिवार का गुजारा नहीं होता था तो उदय सिंह अपने परिवार की मदद करने के लिए दसवीं की पढ़ाई छोड़कर एक गैराज में काम करने लगे। उन्हें हर एक गाड़ी धुलने पर उस वक्त एक रुपये मिलते थे। ऑटो गैरेज में उन्होंने तीन साल तक काम किया।
उदय भाई सवारी को देते है अपना ग्रीटिंग, जिसमें बना हुआ है दिल
        शुरू में उदय भाई के घरवाले बोलते थे, कि ये कहां गांधीगीरी करने लगा। लेकिन वे अपनी धुन के पक्के थे। उन्होंने अपने घरवालों को अच्छे से समझाया। आज उनके पिता उनका समर्थन करते हैं और अपने बेटे से इतना प्रभावित हुए कि वह खाली वक्त में पक्षियों को दाना खिलाने का काम करते हैं।
       उनके भाई भी ऑटो चलाते थे। उन्हीं ने उदय को ऑटो चलाना सिखाया और धीरे-धीरे उदय सिंह ने खुद से ऑटो चलाना शुरू कर दिया। इसी दौरान वह एक डॉक्टर के साथ तेल-मालिश का भी काम करने लगे। 15 साल तक उन्होंने ऑटो चलाने के साथ-साथ डॉक्टर के साथ काम किया। यही वो वक्त था जब उन्हें मानव साधना एनजीओ के बारे में पता चला और उनकी जिंदगी में ये मोड़ आया कि उन्होने फ्री में ऑटो चलाना शुरू कर दिया। हालांकि उनके घरवाले बोलते थे कि ये कहां गांधीगीरी करने लगा, लेकिन वह अपनी धुन के पक्के थे। उन्होंने अपने घरवालों को अच्छे से समझाया।
      आज उनके पिता उनका समर्थन करते हैं और अपने बेटे से इतना प्रभावित हुए कि वह खाली वक्त में पक्षियों को दाना खिलाने का काम करते हैं और उनकी पत्नी सवारियों के लिए खाना और नाश्ता बनाती हैं।
उदय भाई रोटरी क्लब द्वारा Baroda Management award से भी सम्मानित हुए है
      जब उन्होंने जीरो मीटर से ऑटो चलाना शुरू किया था तो उन्हें अच्छे से मालूम था कि इससे उनके परिवार का गुजारा मुश्किल हो सकता है, लेकिन समाज के भले और लोगों में प्रेम फैलाने का जज्बा जो उनके भीतर था उसने उन्हें प्रेरणा मिलती रही। उदय ने अपने ऑटो में एक 'अक्षय पात्र बॉक्स' रखा हुआ है जिसमें वह खुद कुछ पैसे डालते हैं और उन पैसों को इकट्ठा कर जरूरतमंदों के लिए खर्च कर देते हैं।
       ऐसा भी नहीं है कि इससे उनकी जिंदगी में मुश्किलें नहीं आईं। उदय भाई बताते हैं कि एक वक्त उनके घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया था और यहां तक कि उनके बच्चे की फीस नहीं जमा हो पाई। जिससे उनके बच्चे का रिजल्ट तक रुक गया। लेकिन उदय सिंह ने हार नहीं मानी। उन्होंने कहा, 'बस मैं हार नहीं मानता, कभी नहीं।' उनके इस नेक काम के लिए उन्हें कई अवॉर्डों से नवाजा गया। यहां तक कि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन और लेखक चेतन भगत उनसे मिलने के लिए अहमदाबाद आए।
     उदय भाई के स्टार मोमेंट्स। इन तस्वीरों को उन्होंने हमेशा-हमेशा के लिए अपने अॉटो और अलबम का हिस्सा बना लिया है।
     उदय कहते हैं, 'मैं लोगों को प्रेरित जरूर करता हूं, लेकिन किसी से ये नहीं कहता कि आप यह करो।' उदय बताते हैं कि एक बार एक यात्री उनके ऑटो में बैठा और उतरने पर बिना पैसा दिए चला गया। वे हमेशा कि तरह आगे बढ़े कि उनके पास एक फोन आया। जब उन्होंने फोन रिसीव किया तो उसी व्यक्ति ने कहा कि आप वापस आ जाइये। जब वो ऑटो मोड़कर वापस पहुंचे तो उस यात्री ने ग्लानि मन से कहा कि उसने पैसे न देकर अच्छा नहीं किया। (उदय की सीट के पीछे उनका नंबर लिखा हुआ है।)
उदय भाई की नई-नई वैन 'साबरमतीनो सारथी'
      अब उदय के काम का दायरा थोड़ा बढ़ गया है और उन्होंने एक वैन खरीद ली है। यह वैन जिसे वे 'साबरमतीनो सारथी' कहते हैं इसमें भी वही सारी सुविधाएं हैं जो उनके ऑटो में हैं। ये वैन लेने के लिए एक संस्था की मदद से उन्होंने साढ़े तीन लाख का लोन लिया है।
      उदय कहते हैं, 'मैं लोगों को ये संदेश देना चाहता हूं कि जीवन में पैसा ही सबकुछ नहीं है। बल्कि प्रेम बहुत जरूरी है। लव ऑल यानी सबके लिए प्रेम।' और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं, कि यदि जीवन में स्ट्रगल ही नहीं होगा तो काहे की जिंदगी। साथ ही उनका मानना है, कि यदि इंसान हिम्मत हार जाये तो वो कुछ नहीं कर सकता।

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