ऐसे लोगों का अन्न और आमंत्रण स्वीकार करना पड़ सकता है भारी
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ऐसे लोगों का अन्न और आमंत्रण स्वीकार करना पड़ सकता है भारी

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   भारत में एक कहावत सदियों से चली आ रही है - जैसा खाएं अन्न, वैसा बनेगा मन। अन्न सिर्फ शरीर के लिए ही जरूरी नहीं, यह मन की भी आवश्यकता है। अन्न किस कमाई, किस उद्देश्य के लिए लाया और तैयार किया गया है, मन पर उसका प्रभाव होता है।
   सभी धर्मों में इस बात का जिक्र किया गया है कि अन्न सदैव पवित्र और ईमानदारी से अर्जित की गई कमाई का होना चाहिए। बेईमानी, ठगी, लूट, कपट, अत्याचार और चोरी से अर्जित अन्न पेट तो भर सकता है लेकिन भविष्य में वह मनुष्य को उसका बुरा फल भी देता है।
    भारत में इसीलिए कहा जाता है कि ईमानदारी की कमाई को जो बांटकर खाता है, वह बैकुंठ में जाता है। अगर किसी ने चोरी, अनीति और अत्याचार से कमाया गया अन्न-धन दान भी कर दिया तो उसका पाप दूर नहीं होता। उसका दंड देर-सबेर परमात्मा उसे अवश्य देते हैं।
   हमारे शास्त्रों में ऋषियों-महात्माओं ने भोजन के बारे में अनेक विधान बताए हैं। साथ ही उन लोगों का भी उल्लेख किया है जिनके घर भोजन नहीं करना चाहिए। जानिए ऐसे लोगों के बारे में जिनका अन्न और आमंत्रण स्वीकार नहीं करना चाहिए।
1- जो मनुष्य धन पर ब्याज लेता है, उसकी शास्त्रों में घोर निंदा की गई है, क्योंकि ब्याज चुकाते हुए गरीब इंसान को बहुत दुख होता है।
    गरुड़ पुराण के अनुसार, सूदखोर के घर का अन्न कभी नहीं खाना चाहिए, क्योंकि वह व्यक्ति न जाने कितने लोगों का दिल दुखाकर उनके खून की कमाई को हड़प लेता है। सूदखोर का अन्न मनुष्य के जीवन में दुर्भाग्य लाता है।
2- जिसके दिल में रहम नहीं है, जो बड़े से बड़ा पाप करने में न हिचके, जो जीवों को कष्ट देता है, जो गाय को सताता है, उस व्यक्ति के घर भोजन नहीं करना चाहिए। अगर कोई उसके घर का अन्न खाता है तो वह पाप का भागीदार बनता है। ऐसा अन्न मनुष्य के मन में दुर्गुणों को बढ़ावा देता है, उसे पतन की ओर लेकर जाता है।
3- जिसके मन में क्रोध है, उसे किसी शत्रु की आवश्यकता नहीं। शास्त्रों में ऐसे व्यक्ति के घर भोजन करने का निषेध किया है जो अत्यधिक क्रोधी है या जो बात-बात पर झगड़ा करने को तैयार रहता है।
   उसके घर भोजन करने से हानि की आशंका रहती है। साथ ही भोजन के दौरान उसके क्रोधी स्वभाव से व्यक्ति का अपमान भी हो सकता है। अतः उसके घर भोजन करने कभी नहीं जाना चाहिए।
4- राजा या शासक की भूमिका एक पिता जैसी होती है जो प्रजा का पालन करता है। अगर राजा दुष्ट स्वभाव का, क्रोधी, कामी, लालची, भ्रष्ट और बेईमान हो तो समझदार व्यक्ति वही है जो न तो उसका आमंत्रण स्वीकार करे और न ही कभी उसका अन्न खाए। ऐसा भोजन जनता के उत्पीड़न से अर्जित रहता है, इसलिए खाने वाला भी दोष का भागी होता है।
5- रोग भी शरीर की एक अवस्था है। मनुष्य के लिए शास्त्रों में स्वस्थ जीवन की कामना की गई है। अगर शरीर रोगी हो जाए तो उसकी चिकित्सा करानी चाहिए। शरीर को ऐसा रोग हो जो संपर्क में आने वाले को भी प्रभावित कर सकता है तो किसी व्यक्ति को भोजन का आमंत्रण नहीं देना चाहिए और न ही ऐसा भोजन ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि इससे रोगी होने की आशंका रहती है।
6- किसी की चुगली करना शास्त्रों व सामाजिक जीवन में अच्छा नहीं माना गया है। इससे बड़े-बड़े अनर्थ हो जाते हैं। दार्शनिकों ने चुगलखोर व्यक्ति का आमंत्रण व अन्न स्वीकार करने का निषेध किया है, क्योंकि भोजन के दौरान ऐसा व्यक्ति किसी की चुगली कर सकता है और भविष्य में कोई मुसीबत खड़ी कर सकता है। इसलिए बेहतर होगा कि ऐसे व्यक्ति के आमंत्रण को दूर से नमस्कार कर दें।
7- शास्त्रों में नशे को नाश की जड़ बताया गया है। शराब, गांजा, भांग, अफीम ने न जाने कितने घर उजाड़ दिए लेकिन कुछ लोगों को इसमें आनंद आता है और उन्हें विनाश की परवाह नहीं होती।
    सभी धर्मों में ऐसे लोगों को धिक्कारा गया है जो नशे की चीजें बेचते हैं, क्योंकि उनके कारण कई लोगों का जीवन अंधकारमय हो जाता है। समझदार मनुष्य वही है जो न तो किसी प्रकार का नशा करता है और न उस व्यक्ति का अन्न खाता है जो नशे की कमाई करता है।




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