एक ऐसा न्यूज़ चैनल, जिसके बारे में जानकर आप हो जायेंगे हैरान
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एक ऐसा न्यूज़ चैनल, जिसके बारे में जानकर आप हो जायेंगे हैरान

    एक गैर-सरकारी संगठन ने ऐसे क्रिएटिव आइडिया को साकार कर दिखाया है, जिसके बारे में हम और आप सोच भी नहीं सकते...

    बच्चों को छोटे-छोटे मनोरंजक टास्क के रूप में रिपोर्टिंग के लिए न्यूज स्टोरी कवर करने को दी जाती है। उदाहरण के तौर पर बच्चों को स्क्रैपी कार रेस का टास्क दिया जाता है।


स्क्रैपी न्यूज की नन्हीं एंकर

       इस न्यूज सर्विस की डायरेक्टर पद्मिनी वैद्यनाथन का मानना है कि आमतौर पर हमारे समाज में लड़कियां खेल के मैदान पर खेलती हुई नहीं दिखतीं, खासतौर पर गांवों और छोटे शहरों में। इस न्यूज सर्विस के न्यूज रूम्स बेंगलुरु, मुंबई समेत बिहार की 14 जगहों पर शुरू किए जा रहे हैं। करीब 700 बच्चों में से इस न्यूज सर्विस के लिए बच्चों का चुनाव किया गया है।
     दिल्ली के एक गैर-सरकारी संगठन 'गोइंग टू स्कूल' ने एक ऐसे क्रिएटिव आइडिया को साकार कर दिखाया है, जिसके बारे में हम और आप सोच भी नहीं सकते। क्या आप सोच सकते हैं कि बच्चे अपना न्यूज चैनल चला सकते हैं, लेकिन उनके चैनल पर बातें बच्चों वाली नहीं बल्कि पर्यावरण और देश के गंभीर मुद्दों पर बात हो? ऐसा संभव हुआ है। बच्चों की इस न्यूज सर्विस का नाम है, 'द चिल्ड्रेन्स स्क्रैपी न्यूज सर्विस', जिसे बाल दिवस (14 नवंबर) को लॉन्च किया गया है। इसमें बच्चे ही ऐंकर हैं और वह गंभीर मुद्दों पर बड़ों से बातचीत और अपील करते नजर आ रहे हैं।
     बच्चों को छोटे-छोटे मनोरंजक टास्क के रूप में रिपोर्टिंग के लिए न्यूज स्टोरी कवर करने को दी जाती है। उदाहरण के तौर पर बच्चों को स्क्रैपी कार रेस का टास्क दिया जाता है। इस टास्क में बच्चे बेकार हो गईं या फेंकी जा चुकी सामग्री की सहायता के कार बनाते हैं और रेस में हिस्सा लेते हैं। तुलसीपुर जमुनिया हाई स्कूल (भागलपुर) में पढ़ रही एक लड़की ने इस रेस में जीत हासिल की। उनका कहना है कि लड़कियों को हर मामले में लड़कों के कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए।
     इस न्यूज सर्विस की डायरेक्टर पद्मिनी वैद्यनाथन का मानना है कि आमतौर पर हमारे समाज में लड़कियां खेल के मैदान पर खेलती हुई नहीं दिखतीं, खासतौर पर गांवों और छोटे शहरों में। उनका कहना है कि वह इस शो के माध्यम से वही करना चाहती हैं, जो ‘सेसेम स्ट्रीट' और ‘द मपेट' शोज ने अमेरिका में 1970 के दशक में किया।
कैसा है न्यूज रूम?


     मुंबई में इस सर्विस के न्यूज रूम को पुरानी और बेकार चीजों से बनाया गया, जो एक बीच पर स्थापित है। इसे बांस से बनाया गया है। इस न्यूज रूम में रंगीन छातों के नीचे लाइट्स लगाई गई हैं। यह मुंबई में वर्ली के बीच पर है, जहां मछुआरों का गांव है। इसमें एक स्ट्रीट कार से बेंच बनाई गई है और एक पुरानी टूटी-फूटी फिएट कार की सीटों पर ऐंकर बैठते हैं।
कौन हैं ये ऐंकर बच्चे?
     इस न्यूज सर्विस के न्यूज रूम्स बेंगलुरु, मुंबई समेत बिहार की 14 जगहों पर शुरू किए जा रहे हैं। करीब 700 बच्चों में से इस न्यूज सर्विस के लिए बच्चों का चुनाव किया गया है।
कौन कर रहा रिपोर्टिंग?


स्क्रैपी न्यूज रूम के अंदर की तस्वीर
      रिपोर्टिंग का जिम्मा भी इन नन्हें हाथों को सौंपा गया है। स्थानीय मुद्दों पर ये बच्चे खुद ही रिपोर्टिंग कर रहे हैं। ये बच्चे बड़ों को सबक दे रहे हैं कि आपकी जागरुकता शायद वर्तमान समय की व्यापक समस्याओं के लिए काफी नहीं है, इसलिए और सतर्क होने की जरूरत है। साथ ही, इन मुद्दों पर काम करने की भी जरूरत है।
मुहिम के पीछे कौन?
      इस मुहिम की निदेशक और संस्थापक हैं, लीजा हेडलॉफ। उनका कहना है कि भारत में बच्चों की मानसिकता, यूके और यूएस के बच्चों से अलग है और ऐजुकेशन सिस्टम में इन बातों को ध्यान में रखते हुए बदलाव करने चाहिए। उनका मानना है कि भारतीय ऐजुकेशन सिस्टम में और बच्चों के लिए टीवी पर उपलब्ध सामग्री में सबसे बड़ी खामी है, सांकेतिक डिजाइनिंग की गैरमौजूदगी। उनकी सलाह है कि बच्चों के लिए टेक्स्टबुक या कम्यूनिकेशन सामग्री तैयार करने में हमें डिजाइनिंग के इस पहलू को ध्यान में रखना चाहिए।
    हेडलॉफ, बच्चों के ऊपर किताब लिखने के सिलसिले में 19 साल पहले भारत आई थीं। उन्होंने 2003 से स्कूलों में जाकर रिसर्च करना

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