पढ़कर आपकी भी भर आएंगी आंखें
अगर आप सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं तो 29 नवंबर से एक पत्र यहां वायरल हो रहा है. जब आप इसे पढ़ना शुरू करते हैं तो एक-एक लाइन के साथ आपका दिल बैठता जाता है, आंखें भर आती हैं और दिल्ली की ठंड कुछ और अधिक काटने लगती है. 29 नवंबर को लाखों की संख्या में किसान दिल्ली के रामलीला मैदान में एकबार फिर इकट्ठे हुए हैं. ये किसान क्या बेचकर दिल्ली तक आए हैं, इस सर्दी में कहां और किन मुश्किलों से जगे और सोये हैं, इसका अंदाजा लगाना भी आपके और हमारे लिए संभव नहीं है.
यह पत्र इन्हीं भारतीय किसानों की तरफ से है. ये किसान एक पत्र के द्वारा अपनी बात आपसे कहना चाहते हैं और इसके लिए उन्हें आपका सिर्फ एक मिनट चाहिए. यह पत्र हिंद किसान नाम के एक फेसबुक पेज से शेयर किया गया है और न्यूज18 हिंदी इस पत्र की प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं करता है.
इस पत्र की शुरुआत ही आपको अपनी संवेदनहीनता का बोध कराएगी. इसकी शुरुआत में लिखा है, 'माफ कीजियेगा! हमारे इस मार्च से आपको परेशानी हुई होगी'. जिन किसानो को शहरी लोग हीं दृष्टि से देखते हैं उनकी समझ और संवेदनशीलता बहुत से शहरी लोगों से बेहतर है. इस पत्र में किसान आगे लिखते हैं कि उनका इरादा कहीं भी किसी को तंग करने का नहीं है. वो लोग खुद बहुत परेशान हैं. वो बहुत दूर से अपनी बात सरकार को और आपको सुनाने आए हैं और इसके लिए उन्हें आपका सिर्फ एक मिनट ही चाहिए.
इस पत्र में जो डेटा है वो बहुत दिल तोड़ने वाला है. इसके मुताबिक बीते बीस साल में तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं. इसमें मांग की गई है कि संसद का एक विशेष अधिवेशन किसानों की समस्या पर बुलाया जाए. साथ ही किसान चाहते हैं इस अधिवेशन में किसानों के लिए दो कानून पास किए जाएं- फसलों के उचित दाम की गारंटी का कानून और किसानों को कर्ज मुक्त करने का कानून. ये किसान आपसे पूछ रहे हैं कि क्या उनकी यह मांग कुछ गलत है?
इस पत्र के मुताबिक साबुत मूंग के लिए आप 120 रुपए प्रति किलो देते हैं, लेकिन इसके लिए किसानों को आधे से भी कम यानी महज 46 रुपए प्रति किलो मिलते हैं. टमाटर आप 30 रुपए प्रति किलो खरीदते हैं लेकिन किसानों को इसके लिए सिर्फ 5 रुपए मिलते हैं. 110 रुपए प्रति किलो सेब के लिए किसानों को सिर्फ 10 रुपए और 42 रुपए प्रति लीटर वाले दूध के लिए उन्हें सिर्फ 20 रुपए मिलते हैं. इन्हीं की सही कीमत के लिए ये किसान आज दिल्ली में सरकार से मिलने आए हैं.
किसानों की मांगें मोटे तौर पर यहीं हैं कि सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करे. सरकार ने वर्ष 2004 में स्वामीनाथन आयोग का गठन किया था लेकिन पिछले आठ सालों से इस रिपोर्ट पर ज्यादा काम नहीं हुआ है. इस पत्र के अंत में किसानों ने लिखा है कि 30 नवंबर यानी आज ये किसान संसद मांग पर इकट्ठे हो रहे हैं. वो चाहते हैं कि हम और आप भी वहां पहुंचें और उनका हौसला बढ़ाएं और उन्हें यह एहसास दिलाएं कि वो अकेले नहीं है.
अगर आप सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं तो 29 नवंबर से एक पत्र यहां वायरल हो रहा है. जब आप इसे पढ़ना शुरू करते हैं तो एक-एक लाइन के साथ आपका दिल बैठता जाता है, आंखें भर आती हैं और दिल्ली की ठंड कुछ और अधिक काटने लगती है. 29 नवंबर को लाखों की संख्या में किसान दिल्ली के रामलीला मैदान में एकबार फिर इकट्ठे हुए हैं. ये किसान क्या बेचकर दिल्ली तक आए हैं, इस सर्दी में कहां और किन मुश्किलों से जगे और सोये हैं, इसका अंदाजा लगाना भी आपके और हमारे लिए संभव नहीं है.
यह पत्र इन्हीं भारतीय किसानों की तरफ से है. ये किसान एक पत्र के द्वारा अपनी बात आपसे कहना चाहते हैं और इसके लिए उन्हें आपका सिर्फ एक मिनट चाहिए. यह पत्र हिंद किसान नाम के एक फेसबुक पेज से शेयर किया गया है और न्यूज18 हिंदी इस पत्र की प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं करता है.
इस पत्र की शुरुआत ही आपको अपनी संवेदनहीनता का बोध कराएगी. इसकी शुरुआत में लिखा है, 'माफ कीजियेगा! हमारे इस मार्च से आपको परेशानी हुई होगी'. जिन किसानो को शहरी लोग हीं दृष्टि से देखते हैं उनकी समझ और संवेदनशीलता बहुत से शहरी लोगों से बेहतर है. इस पत्र में किसान आगे लिखते हैं कि उनका इरादा कहीं भी किसी को तंग करने का नहीं है. वो लोग खुद बहुत परेशान हैं. वो बहुत दूर से अपनी बात सरकार को और आपको सुनाने आए हैं और इसके लिए उन्हें आपका सिर्फ एक मिनट ही चाहिए.
इस पत्र में जो डेटा है वो बहुत दिल तोड़ने वाला है. इसके मुताबिक बीते बीस साल में तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं. इसमें मांग की गई है कि संसद का एक विशेष अधिवेशन किसानों की समस्या पर बुलाया जाए. साथ ही किसान चाहते हैं इस अधिवेशन में किसानों के लिए दो कानून पास किए जाएं- फसलों के उचित दाम की गारंटी का कानून और किसानों को कर्ज मुक्त करने का कानून. ये किसान आपसे पूछ रहे हैं कि क्या उनकी यह मांग कुछ गलत है?
इस पत्र के मुताबिक साबुत मूंग के लिए आप 120 रुपए प्रति किलो देते हैं, लेकिन इसके लिए किसानों को आधे से भी कम यानी महज 46 रुपए प्रति किलो मिलते हैं. टमाटर आप 30 रुपए प्रति किलो खरीदते हैं लेकिन किसानों को इसके लिए सिर्फ 5 रुपए मिलते हैं. 110 रुपए प्रति किलो सेब के लिए किसानों को सिर्फ 10 रुपए और 42 रुपए प्रति लीटर वाले दूध के लिए उन्हें सिर्फ 20 रुपए मिलते हैं. इन्हीं की सही कीमत के लिए ये किसान आज दिल्ली में सरकार से मिलने आए हैं.
किसानों की मांगें मोटे तौर पर यहीं हैं कि सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करे. सरकार ने वर्ष 2004 में स्वामीनाथन आयोग का गठन किया था लेकिन पिछले आठ सालों से इस रिपोर्ट पर ज्यादा काम नहीं हुआ है. इस पत्र के अंत में किसानों ने लिखा है कि 30 नवंबर यानी आज ये किसान संसद मांग पर इकट्ठे हो रहे हैं. वो चाहते हैं कि हम और आप भी वहां पहुंचें और उनका हौसला बढ़ाएं और उन्हें यह एहसास दिलाएं कि वो अकेले नहीं है.