संवेदनहीन व्यवस्था के बेशर्म कर्णधारों कभी फुर्सत मिले तो ….
संसद में जय श्रीराम और अल्लाहु अकबर का नारा लगाने, साथ ही राम और रहीम को बांटने में जुटे देश के 'बेशर्म' कर्णधारों कभी फुर्सत मिले तो तस्वीरों पर भी एक नज़र डाल लेना। पिछले चार-पांच दिनों से मुजफ्फरपुर बच्चों की कब्रगाह बना हुआ है। अनुमानतः 150 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है। सैकड़ों बच्चे सरकारी और निजी अस्पतालों में भर्ती हैं। अस्पताल के हर कोने से रोने की आवाजें 24 घंटे आ रही है। आईसीयू से कोई शव बाहर निकलता है तो कोहराम मच जाता है। डॉक्टर, अस्पताल के कर्मचारी और मीडियाकर्मी आईसीयू से इमरजेंसी तक दिनभर दौड़ते रहते हैं। सफेद कपड़े में लिपटे मासूमों के शव, उन्हें सीने से चिपकाए रोती-बिलखती माताएं और दूर कहीं सिसकते पिता की तस्वीरें साफ़ तौर पर नज़र आ रही हैं। कहीं एक ही गांव के छह बच्चे मर गये हैं तो कहीं अलग ग्रामीण इलाकों से बच्चों की मौत की खबरें लगातार आ रही हैँ। चारों ओर चीख-पुकार मची हुई है ।
बावजूद इसके कि मैं बेऔलाद हूँ फिर भी मुझे खूब अहसास है क्योंकि मैं भी किसी का लाल हूँ। चमकी बुखार का शिकार हुए बच्चों को मां-बाप अपने सामने ही मरते हुए देख रहे हैं तो बताने की ज़रुरत नहीं कि उन पर क्या गुज़र रही होगी । बेचारे इतने बेबस हैं कि कभी डॉक्टर के हाथ जोड़ते हैं कभी ऊपर वाले से दुआ मांगते हैं। पत्नी रोती है तो पति चुप कराता है और पुरुष रोते हैं तो कोई महिला उन्हें ढांढस बंधाती हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जिनके आसपास कोई नहीं।
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एक मां अपनी सास को पकड़कर रो रही थी। उसके पति उसे पहले ही छोड़कर जा चुके थे। 10 साल का बेटा ही सब कुछ था, लेकिन अफसोस वो चमकी का शिकार हो गया। यह मंजर मेरे लिए सबसे दुखदायी था। वार्ड में जैसे ही डॉक्टर आते हैं, उम्मीदों भरी निगाहें उन्हें घेर लेती हैं। हर जुबान से बस यही आवाज आती है, डॉक्टर साहब, मेरे बच्चे को बचा लीजिए, क्या मेरा बच्चा बच जायेगा? आपने उस शख्स का शायद वीडियो देखा होगा जो केंद्रीय मंत्रियों से अपना दुखडा न सुना पाने पर कहता है "मेरे बच्चे मर रहे हैं मुझे भी मार दो।" जब ये हंगामा हो रहा था उसी वक्त अस्पताल के दूसरे कोने में लकड़ी के बेंच पर लेटी एक मां रो रही है। कुछ समय पहले ही उसकी बच्ची की मौत हुई थी।
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ग़ौरतलब है कि बिहार में बच्चों की मौत का आंकड़ा दोहरे शतक को छूने वाला है, और अकेले मुजफ्फरपुर में लगभग 150 बच्चे मौत की आगोश में समा गये हैं। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने इस मामले पर चुप्पी साध ली है। विभागीय अधिकारी ठोस कदम उठाने की बात करते हैं। डॉक्टर्स बीमारी और सुविधाओं के अभाव के बारे में बता रहे, लेकिन नीतीश और मोदी चुप हैं। मीडिया के सामने आने से दोनों कतरा रहे, और कभी आ गये, तो कन्नी काट कर निकल जाना कोई उनसे सीखे। अभी कुछ दिन पहले ही चुनाव के दौरान मीडिया को खोजते फिरने वाले ये नेता अब हमसे ही नज़र चुराने लगे हैं। पटना में बैंकर्स मीट था और यहां उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी पहुंचे थे। लेकिन इससे पहले कि उनसे कोई बच्चों की मौत पर सवाल पूछता, उन्होंने पत्रकारों को साफ साफ चेतावनी दे डाली। अरे साहब, थोड़ी तो शर्म कीजिये। राज्य के उपमुख्यमंत्री हैं आप। मुख्यमंत्री तो दिल्ली के दौरे पर हैं। ऐसे में राज्य की जिम्मेदारी आपकी भी तो है। लेकिन आप तो खुल्लम खुल्ला कन्नी काटने लगे।
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लेकिन हम इतनी आसानी से आपको छोड़ नहीं सकते न साहब। आखिर ये बच्चों की मौत का सवाल है। उन नौनिहालों का सवाल है जिनपर देश का दारोमदार टिका होता है। हम तो पूछेंगे ही। कि आखिर इन बच्चों से आपको इतनी नफरत क्यों। पर ये क्या, ऐसा लगा कि आपने तो मुंह में दही जमा रखी है। इतनी घबराहट क्यों साहब। कुछ कर नहीं पा रहे, तो वो भी स्वीकार करने का साहस तो कीजिये। खैर, हम तो समझ गये आपको। उम्मीद है जनता भी समझ ही गयी होगी। हमारे सवाल से आप बचकर निकल लिये, लेकिन जब आगामी चुनाव में जनता आपसे सवाल पूछेगी, तो आप कहां अपना मुंह छिपाइयेगा। हम तो उपरवाले से दुआ करते हैं, कि ऐसा कभी न हो, लेकिन इतना तो ज़रुर जानते हैं, कि अगर ये हालात महज कुछ दिन पहले चुनाव के वक्त हुए होते, तो यहां नेताओं का तांता लगा होता, साथ ही उनके इलाज की समुचित व्यवस्था भी हो गयी होती। शर्म इस व्यवस्था पर, शर्म आप जैसे नेताओं पर। आखिर कब तक हम आप जैसों की हाथों की कठपुतली बने रहेंगे।