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देश में कही भी पुलिस को न रोको, बस हैदराबाद की तरह ठोंको

  वाह ये तो कमाल हो गया। तेलंगाना पुलिस ने हैदराबाद कांड के चार दरिंदों को ठोंक दिया। फ़ास्ट ट्रैक जस्टिस का इससे बेहतर उदाहरण नहीं मिलेगा। हैदराबाद की निर्भया को न्याय मिला और पुलिस की वर्दी पर लगा दाग धुल गया। अब पुलिस की जय जयकार हो रही है फूल बरसाए जा रहे हैं।
    उत्तर प्रदेश पुलिस को इससे सबक लेना चाहिए। बसपा सुप्रीमो मायावती ने तो कह भी दिया कि यूपी की बीजेपी सरकार को इससे सबक लेना चाहिए। यह एक नए ट्रेंड की शुरुआत है। ये अच्छी बात है कि हैदराबाद की मुठभेड़ के बाद महिला आयोग ने सवाल नहीं उठाया है।
    बहुत अच्छी बात है कि तथाकथित मानवाधिकारवादी, एक्टिविस्ट और सूडो बुद्धिजीवी हल्ला नहीं मचा रहे। लेकिन अभी भी कुछ कानूनची और लकीर के फ़कीर ज्ञान देने से बाज नहीं आरहे। तेलंगाना पुलिस की कारवाई अब अन्य राज्यों, खासकर उत्तर प्रदेश की पुलिस के लिए भी नजीर बनेगी ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए। क्योंकि उत्तर प्रदेश में एक दिन पहले ही उन्नाव में ऐसी ही घटना घटी। वहां जमानत पर छूटे दबंगों ने एक रेप पीडिता को ज़िंदा जला दिया।
पुलिस बिना राजनितिक दबाव के कार्य करे 
   इससे पता चलता है कि प्रदेश में अपराधियों में क़ानून और पुलिस का खौफ और धमक बिलकुल नहीं है। जैसा कि बताया जा रहा है कि हैदराबाद काण्ड के बाद तेलंगाना पुलिस दरिंदों को तडके राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर क्राइम सीन रीक्रिएट करने के लिए ले जा रही थी। दरिंदों को पुलिस रात में घटनास्थल पर ले गई थी।
    लेकिन दरिंदों का दुस्साहस तो देखिये, पुलिस की मजूदगी में भागने की हिम्मत की और पुलिस का हथियार छीन हमला करने की कोशिश की। पुलिस ने बिना हिचके उन चारो को ठोंक दिया। कई बार कानून जहाँ मदद नहीं कर पता वहां परिस्थितियों के अनुसार विवेक से फैसला लेना पड़ता है।
   हैदराबाद पुलिस ने यही किया। इस पर बसपा सुप्रीमों मायावती ने बिलकुल सटीक प्रतिक्रिया दी है कि उत्तर प्रदेश पुलिस भी हैदराबाद पुलिस से सबक ले तभी अपराधियों में कानून और पुलिस का खौफ पैदा होगा। हालांकि बहन जी इसके साथ ही बीजेपी के राज में जंगलराज की बात कहना नहीं भूलीं।
दरिन्दे कानूनी खामियों का फायदा न उठाने दें
    आम जनता पुलिस की जयजयकार कर रही। बताया जा रहा है कि हैदराबाद कांड के चारों आरोपियों में ज्यादातर नाबालिग थे। उन्हें पता था कि जुवेनाइल एक्ट अभी भी उनका रक्षक है और भागने में असफल रहने के बाद भी इस कमजोर कानून का लाभ उन्हें मिलेगा।
    दरिंदों के दुस्साहस का एक प्रमुख कारण भी यही जुवेनाइल एक्ट है। इसने हालांकि कुछ बदलाव किये गए हैं लेकिन अभी भी इसमें कुछ कमियाँ हैं। इसी का फायदा अपराधी उठाते हैं। अब सबसे बड़ा सवाल, इस तरह के अपराध पर लगाम कैसे लगे? अपराधियों में पुलिस और क़ानून का डर कैसे पैदा हो?
जनता में आत्मविश्वास पैदा करने वाला कानून चाहिए 
    जनता पुलिस के इस एनकाउंटर पर फूल बरसा रही है। आपको याद होगा अभी तक 2012 में हुए निर्भया काण्ड का वह दरिंदा ज़िंदा है जो जुवेनाइल कानून की आड़ में बच गया है। निर्भया की मौत की वजह यही दरिंदा था लेकिन कानून की आड़ में बच निकला और स्वतंत्र घूम रहा है।
    तेलंगाना पुलिस बधाई की पात्र है कि उसने चारों दरिंदों के बचने के सारे रास्ते हमेशा के लिए बंद कर दिए। दरिंदों ने पुलिस को एक्शन का मौका दिया और पुलिस ने वही किया जो एक सक्षम पुलिस को करना चाहिए। सम्भवतः तेलंगाना पुलिस को भी कानून और व्यवस्था की खामियों का अहसास था। इस लिए मौके पर जो सबसे बेहतर एक्शन लेना चाहिए वो उसने लिया।
    अब जनता नाच रही है खुशियाँ मना रही है। क्योंकि उसे भरोसा नहीं था कि कमजोर और धीमी क़ानूनी प्रक्रिया के चलते तेलंगाना की निर्भया को न्याय मिलेगा। अभी आईपीसी और सीआरपीसी में बदलाव की बात की जा रही है लेकिन यह सही समय है जब विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका को एक साथ सोचना होगा कि कानून में तुरंत बदलाव की जरूरत है।
    ऐसा क़ानून बनाना होगा जो पीड़ितों में उम्मीद पैदा करे और अपराधियों में ख़ौफ़। राज्यसभा में कुछ दिन पहले सांसद जया बच्चन ने माफी मांगते हुए दरिंदों की लिंचिंग की बात कही थी। पुलिस ने यही किया अभी वक्त लकीर का फ़कीर बनने का नहीं बल्कि नजीर पेश करने का है। यह सवाल सवाल करने का नहीं, सुधार का है।

राजीव ओझा
(वरिष्ठ पत्रकार)

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