कीनिया दुनिया के ग़रीब मु्ल्कों में शुमार है. कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन से वहां लाखों लोगों का रोज़गार छिन गया और ग़रीबों के सामने भुखमरी की नौबत आ गई. पंकज शाह इन लोगों के नई उम्मीद बनकर आए हैं.
कोरोनावायरस की मार झेल रही दुनिया में मदद के लिए हाथ बढ़ाने वालों की भी कमी नहीं है. लेकिन, ये कहानी ऐसी है जो दिल को छू जाएगी. कहानी है पूर्वी अफ्रीका के देश कीनिया में सैलानियों को सफ़ारी से घुमाने वाले पंकज शाह की. भारतीय मूल का ये व्यक्ति इन दिनों अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है.
इन दिनों पर्यटन उद्योग चरमरा गया है और पंकज का धंधा बैठा हुआ है, लेकिन संकट की इस घड़ी में उनका हौसला पहले से भी ज़्यादा बुलंद है. पंकज इन दिनों कीनिया में हज़ारों ग़रीब परिवारों का पेट भरने का काम कर रहे हैं. कोरोनावायरस के कारण बर्बाद हुए काम धंधों की वजह से कीनिया में लाखों लोग इस वक़्त भुखमरी की कगार पर खड़े हैं. इन लोगों के लिए पंकज शाह उम्मीद का दूसरा नाम बनकर सामने आए हैं.
भारतीय मूल के इस शख्स ने कीनिया में 24,000 परिवारों का पेट भरने का नेक काम किया है. वो इन दिनों इसी नेक काम के कारण चर्चा में हैं. दरअसल, पहले पकंज शाह ने उन लोगों से बात की जो इस मुश्किल दौर में लोगों की मदद करने के लिए आगे आना चाहते थे. इसके बाद उन्होंने ग़रीब लोगों को खाना खिलाने का ये सिलसिला शुरू किया. अब पंकज के बारे में अंतरराष्ट्रीय मीडिया में धरती के चारों तरफ़ ख़बरें छप रही हैं.
ग़रीबों का भर रहे हैं पेट
कीनिया में कोरोनावायरस का पहला केस 12 मार्च को सामने आया था और उसके बाद वहां स्कूल, बिजनेस बंद कर दिए गए. नतीजा ये हुआ कि झटके में राजधानी नैरोबी में लाखों लोग बेरोज़गार हो गए.
ऐसे में पेशे से सफारी ऑपरेटर शाह ने इन लोगों की मदद की ठानी. वे बताते हैं कि कीनिया में लॉकडाउन के कारण ग़रीब आबादी भूखी है और लोगों में ग़ुस्सा है. उन्हें खाना नहीं मिल रहा. वे कहते हैं, “किसी को तो काम करना होगा.”
जोड़ लिए कई वॉलेंटियर्स, ऐसे शुरू हुआ सिलसिला
उन्होंने अपने कुछ दोस्तों से बात की. फिर उन्होंने कुछ वालंटियर्स जोड़े और लोगों तक खाना पहुंचाना शुरू किया. पकंज की टीम के वांलटियर्स खुद को ‘पकंज टीम’ बुलाते हैं. वो 22 मार्च से लोगों के घर-घर जाकर खाना दे रहे हैं. एक पैकेट में कम से कम चार से पांच लोगों का खाना होता है. पकंज बताते हैं, “एक बूढ़ी औरत ने मुझे बताया कि उसने कई दिनों से खाना नहीं खाया है. उसके बेटों ने उसे खाना देना बंद कर दिया, क्योंकि उनके पास काम नहीं है.”
हज़ारों परिवारों तक पहुंचा रहे हैं खाना, मदर टेरेसा से मिली प्रेरणा
वे कहते हैं कि नैरोबी में वो मदर टेरेसा से मिले थे. यहीं से उन्हें यह नेक काम करने का हौसला मिला. दरअसल, इस काम में पकंज की मदद कुछ रईस एशियन लोग कर रहे हैं. लोग उन्हें डोनेशन देते हैं. वो बताते हैं कि उनके खाने के पैकेट्स कीनिया के दूर-दराज के इलाक़ों में भेजे जाते हैं. वो चाहते हैं कि और लोग भी मदद के लिए इस दौर में आगे आएं, ताकि कोई भूखा ना रहे.
चारों तरफ़ हो रही है प्रशंसा
कीनिया में तीन साल पहले ही एशियाई लोगों को 44वें समुदाय के तौर पर आधिकारिक मान्यता मिली थी. अब इन लोगों ने जिस तरह की मिसाल कायम की है, उससे कीनिया के स्थानीय लोग काफी ख़ुश हैं. शाह ने कीनिया के अमीरों से अपील की है कि वो 4000 कीनिया शीलिंग (40 अमेरिकी डॉलर) की मदद करें ताकि भूख के ख़िलाफ़ इस जंग को क़ामयाबी मिल सके. पंकज शाह कहते हैं कि इतने पैसों में अमीर लोग दो पिज़्ज़ा या एक बोतल वाइन पी जाते हैं.