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कोरोना कहर : वो लाशे अपनो के कंधो को ही तरस गयी

कोरोना-हरिद्वार गंगा को तरसते अस्थि कलश
    कोरोना ने इंसान को इतना भयभीत कर दिया है कि वो उसके डर से जन्म मरण के धार्मिक अनुष्ठानो को भी छोडकर अपनी जान बचाने मे लगा हुआ है। युद्ध के मैदान मे भी जब कोई सैनिक शहिद हो जाता था तो उसके अंतिम संस्कार भी पुरे राजकिय सम्मान और आदर से किया जाता था मगर पिछले दो महिनो मे जिन लोगो की मृत्यु हुयी है वो लाशे अपनो के कंधो को ही तरस गयी। अस्पतालो से पैक लाशे आती है और आनन फानन मे दाह संस्कार की बजाय फुंक दी जाती है। अंतिम संस्कार से पुर्व नहलाने धुलाना तो दुर की बात चेहरे न देखने की भी परिजनों की बेबसी हो गयी है। 
    कहीं आदमी की मजबूरी है, तो कहीं सरकार की मजबूरी है। इस मजबूरी के चलते कई जगह तो डर के मारे अपने ही लोग अपनो की लाशे लेने से ओर दाह संस्कार करने से इंकार कर रहे है। कई जगह सरकारी प्रतिनिधियो ने दाह संस्कार किये है। जयपुर मे अपनो की बेरुखी देखकर एक व्यक्ति को दुसरे धर्म के लोगो ने कंधे दिये है। भोपाल मे जब एक बेटे ने अपने पिता के अंतिम संस्कार करने से इंकार कर दिया तब एक साहसी तहसीलदार ने उनके दाह संस्कार किये है। तीये की बैठके श्रदांजलि कार्यक्रम बंद हो गये है। सब मुंह के मास्क बांधकर अपनी बेबसी पर सिर पीट रहे है। दाह संस्कार के बाद बचे अवशेषो के ढेर लग गये है हरिद्वार नही जा पा रहे है। जाने कब वो दिन आयेगा जब इन अवशेषों को गंगा मे प्रवाहित किया जायेगा।
     पिछले दो महिनो मे गुजरे लोगो की मुक्ति का अब क्या उपाय होगा ये ईश्वर ही जाने। मगर उन लोगो का धार्मिक विधिपूर्ण अंतिम संस्कार न करने का मलाल उनके परिजनों को हमेशा जीवनभर रहेगा। सरकार चाहे तो हरिद्वार के लिए स्पेशल बसे व ट्रेने चलाकर मरनेवालों की अस्थियां कलश को गंगा मे विसर्जन करवाने मे मदद कर उनके परिजनों की मदद कर उपकृत कर सकती है। ईश्वर एसे सभी लोगो को अपने चरणो मे स्थान दे। ऐसे सभी लोगो को सादर नमन शतःशत प्रणाम।



(Omendra singh Raghav)

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