कोरोना वायरस ने जब देशवासियों पर हमला किया तो ज्यादातर व्यापारियो ने मास्क और सैनेटाईज़र की काला बाज़ारी शुरू कर दी. आम लोगो ने इसकी क़ीमत कई गुना अदा की. जब तक शाशन हरकत में आई तब तक बाज़ार से स्टॉक ही ख़तम हो चूका था. मगर मास्क की ज़रूरत तो थी ही और इसकी आपूर्ति कर नामुमकिन सी हो गई.
कलेक्टर जबलपुर व सीएमओ ने गोपाल ताम्रकार जेल अधीक्षक जबलपुर को फ़ोन किया की बाज़ार में मास्क की काला बाज़ारी हो रही है और इसकी आपूर्ति नहीं हो पा रही हैं, क्या ये जेल में बनाया जा सकता हैं? तो जेल अधीक्षक ने सैंपल माँगा और कैदियों से बनवाया और स्वास्थ्य विधाग भोपाल ने इसका परीक्षण कर हरी झंडी दी.
जबलपुर जेल देश की पहली जेल बनी जो मेडिकल सर्टिफाइड मास्क बना रही थी. अब कई और जेल मास्क बना रही हैं पर जबलपुर जेल ने कोरोना वायरस की लड़ाई में अपना नाम दर्ज कर दिया. मास्क का सबसे पहला आर्डर रेड क्रॉस सोसाइटी ने दिया था.
कोई भी कच्छा माल बाज़ार से नहीं लिया जाता. इस मास्क का कपड़ा जो की शुद्ध कॉटन जेल में हैंडलूम मशीन से तैयार किया जाता हैं और सिला जाता हैं. इस मास्क की खासियत है की ये तीन परतो का होता है और इसको धो कर कई बार इस्तेमाल किया जा सकता हैं. 40 मशीनों पर 100 बंदी मास्क बना रहे है, 1600 मास्क हर दिन तैयार हो रहे है. इसकी क़ीमत 10 रूपए है.
इस जेल ने सबसे पहलें जबलपुर मेडिकल कॉलेज के स्टाफ़ को मास्क दिए, फिर शाशन व पुलिस को और अब इस मास्क की इतनी मांग हो गई हैं की जेल प्रशासन इसको पूरी नहीं कर पा रहा हैं.