महाराणा : जिनकी उस ऊंचाई को आज तक भी कोई छु नही पाया
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महाराणा : जिनकी उस ऊंचाई को आज तक भी कोई छु नही पाया

हे वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप----तुम्हें शतःशत नमन
    आज से 480 वर्ष पुर्व (कुछ लोग 9, तो कुछ लोग 25 मई को उनका जन्मदिन मानते है) मेवाड़ की धरती पर जिस वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था उसने अपनी वीरता और बहादुरी के बल पर इतिहास के पन्नों मे हमेशा-हमेशा के लिए अपना नाम स्वर्ण अक्षरो से लिखवा लिया। जब राजपूताना के अनेक राजा अकबर की अधिनता स्वीकार करके राजशाही वैभव के रास्ते को चुन रहे थे उसी समय अकबर की विशाल सेना से टक्कर लेकर वन-वन भटकते इस वीर प्रताप ने जंगलो, पठारो, पहाडो के कंकर पत्थरों को अपना बिछोना सेज बनाकर व घास की रोटीयो से पेट भर कर अकबर के विरुद्ध स्वाधीनता का संग्राम जारी रखा था।भुख प्यास महलो की जगह निझर्न वन भी उनको अपने पथ से डीगा नही सके थे।
    महाराणा प्रताप के चेहरे की तेजस्विता मोटी-मोटी बडी दो आंखे, बडा ललाट (लिलाड), बडी-बडी मुंछे, लंबी गर्दन, उठी हुयी भुजाये, हाथ मे भाला, चेतक की सवारी उनकी वीरता को प्रकट करती थी। वह युद्धभूमि में एक क्षण मे हाथी पर बैठे शत्रुओं को नीचे पटक कर चीटियों की तरह मसल देते थे। अकबर ने अपनी जिंदगी मे अनेक राजाओ तथा मुस्लिम शासको को युद्ध मे हराकर अपने अधीन किया मगर प्रताप को अपने अधीन नही कर सका। इस बात का मलाल अकबर को उसके अंतिम समय तक रहा।
     महाराणा प्रताप के शोर्य, साहस और ईमानदारी की राजपूताना ही नही पुरे हिंदुस्तान के सभी वीर पुरुष, राजा महाराजा, सामान्य लोग और खुद मुगल भी कद्र करते थे। इसलिए हल्दीघाटी के युद्ध मे राजपूताना के तमाम शासक अकबर की तरफ से महाराणा प्रताप के विरुद्ध युद्ध लडते हुये भी महाराणा प्रताप को व्यक्तिगत क्षति नही पहुचाना चाहते थे। युद्ध के मैदान मे ऐसे अनेक अवसर आते थे जब महाराणा प्रताप मुगलो की सेना से बुरी तरह से घीर जाते थे मगर तब भी कोई न कोई अकबर की सेना की तरफ से जंग लडते बहादुर राजपूत सरदार उनको ब्युह से बचकर जाने का रास्ता दे देते थे ताकि मेवाड़ का सुर्य कभी अस्त न होकर हमेशा प्रदीप्तमान होता रहे। एकबार तो खुद उनके सोतेले भाई शक्ति सिंह ने जो अकबर की तरफ से उनके विरुद्ध हल्दीघाटी का युद्ध लड रहा था चेतक के घायल होकर मरणासन्न हो जाने पर अपना घोडा देकर अपने बडे भाई मेवाड़ की शान महाराणा प्रताप की जान बचाई थी। 
   आज महाराणा प्रताप के शोर्य साहस के किस्से घर-घर कहे जाते है। उनके बाद भी इस धरती पर अनेक वीर पैदा हुये और मातृभूमि के लिए लडते हुये बलिदान हो गये। मगर उनकी उस ऊंचाई को आज तक भी कोई छु नही पाया है। महाराणा प्रताप को अपना आदर्श बना कर हम सबको मातृभूमि के लिए अपना योगदान देते रहना चाहिए। यही महाराणा प्रताप को हमारी तरफ से सच्ची श्रदांजलि होगी। जय जय महाराणा प्रताप.... शतःशत प्रणाम।


(Omendra singh Raghav) 




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