अशोक गहलोत जो बारी-बारी से तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने उनसे ऐसी बचकानी हरकतो की कतई उम्मीद नही थी। बीजेपी के विरोध मे तैश मे आकर पंचायतो के चुनावों मे पंच सरपंचों की शैक्षणिक योग्यता को ही हटा दिया परिणाम हजारो अनपढ व्यक्ति सरपंच पंच बन बैठे है। अब वो क्या सरपंची करेंगे क्या गांवो का विकास करेंगे जो भी करना होगा पटवारी ग्रामसेवक एवंम बीडीओ जैसे अधिकारी ही अपनी मर्जी से करेगें।
दूसरी तरफ 25 जनवरी को सीएए और एनपीआर के विरोध मे राजस्थान विधानसभा मे संकल्प प्रस्ताव पारित करवा के अपनी राजनीतज्ञ अपरिपक्वता और नासमझी दिखायी है। क्योंकि इस संकल्प प्रस्ताव से सीएए एनपीआर कानून वापिस होने वाला नही है फिर इस संकल्प को पारित कर राज्य की जनता को वो क्या बताना चाहते है।
सच तो ये है कि राजस्थान प्रदेश की बहुसंख्यक आबादी सीएए और एनपीआर के पक्ष मे है। अगर गहलोतजी को विश्वास नही है तो एकबार विधानसभा भंग करवा कर इस विषय पर पुनः चुनाव करवा के देख ले। चालीस का आंकडा भी नही छू पायेंगे। दुख तो इस बात का है कि गहलोत उम्र मे बडे होने के बावजूद भी दिल्ली मे बैठे उस बुद्धू बच्चे को क्यों नही समझा पा रहे है कि सीएए एनपीआर का विरोध राष्ट्र हित मे नही है।
अफसोस जब सीएए बिल लोकसभा राज्यसभा मे पारित होकर राष्ट्रपति के हस्ताक्षरो के बाद कानून बन चूका जब उसको रोकने की क्षमता विधानसभा के पास ही नही है तो फिर गहलोत सरकार को विधानसभा का सत्र बुलाकर नोटंकी करने की जरुरत कहा पड गयी थी। इस बिल को पास करवाने के लिए विधानसभा का सत्र बिना 21 दिन की पुर्व सूचना के आहुत करना सरासर नियम विरुद्ध है। मगर सब जानते है गहलोत इस समय पायलट के भारी दबाव मे है। पायलट आगे न बढ जाये इस चक्र मे उनको सोनिया गांधी और राहुल गांधी की खिदमत दुगनी करनी पड रही है।
(Omendra singh raghav)