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योगी जी यह भी डेंजर क्रिमिनल है इनका ढिचक्याऊं कब होगा ?

  साल था 1979. प्रयागराज तब इलाहाबाद हुआ करता था. इलाहाबाद में उन दिनों नए कॉलेज बन रहे थे. उद्योग लग रहे थे. खूब ठेके बंट रहे थे. नए लड़कों में अमीर बनने का चस्का लगना शुरू हो गया था. वो अमीर बनने के लिए कुछ भी करने को उतारू थे. कुछ भी मतलब कुछ भी, हत्या और अपहरण भी. इलाहाबाद में एक मोहल्ला है चकिया. इस मोहल्ले का एक लड़का हाई स्कूल में फेल हो गया. पिता उसके इलाहाबाद स्टेशन पर तांगा चलाते थे, लेकिन अमीर बनने का चस्का तो उसे भी था. 17 साल की उम्र में हत्या का आरोप लगा और इसके बाद उसका धंधा चल निकला. खूब रंगदारी वसूली जाने लगी. नाम था अतीक अहमद. फिरोज तांगेवाले का लड़का.  
    उन दिनों इलाहाबाद में चांद बाबा का खौफ हुआ करता था. पुराने जानकार बताते हैं कि पुलिस भी उसके इलाके में जाने से डरती थी. अगर कोई खाकी वर्दी वाला चला गया तो पिट कर ही वापस आता. लोग कहते हैं कि उस समय तक चकिया के इस 20-22 साल के लड़के अतीक को ठीक-ठाक गुंडा माना जाने लगा था. पुलिस और नेता दोनों शह दे रहे थे. और दोनों चांद बाबा के खौफ को खत्म करना चाह रहे थे. इसके लिए खौफ के बरक्स खौफ को खड़ा करने की कवायद की गई. और इसी कवायद का नतीजा था अतीक का उभार, जो आगे चलकर चांद बाबा से ज्यादा खतरनाक साबित हुआ.
   साल था 1986. प्रदेश में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी. केंद्र में थे राजीव गांधी. अब तक चकिया के लड़कों का गैंग चांद बाबा से ज्यादा उस पुलिस के लिए ही खतरनाक हो चुका था, जिसे पुलिस ने ही शह दी थी. अब पुलिस अतीक और उसके लड़कों को गली-गली खोज रही थी. एक दिन पुलिस अतीक को उठा ले गई. बिना किसी लिखा पढ़ी के. थाने नहीं ले गई. किसी को कोई सूचना नहीं. लोगों को लगा कि अब काम खत्म है. परिचितों ने खोजबीन शुरू की. इलाहाबाद के ही रहने वाले एक कांग्रेस के सांसद को सूचना दी गई. सांसद प्रधानमंत्री राजीव गांधी का करीबी था. दिल्ली से फोन आया लखनऊ. लखनऊ से फोन गया इलाहाबाद और फिर पुलिस ने अतीक को छोड़ दिया.
    लेकिन अब अतीक पुलिस के लिए नासूर बन चुका था. वो उसे ऐसे ही नहीं छोड़ना चाहती थी. अतीक को भी भनक लग गई थी. एक दिन भेष बदलकर अपने एक साथी के साथ कचहरी पहुंचा. बुलेट से. और एक पुराने मामले में जमानत तुड़वाकर सरेंडर कर दिया. जेल जाते ही पुलिस उसपर टूट पड़ी. उसके खिलाफ एनएसए लगा दिया. बाहर लोगों में मैसेज गया कि अतीक बर्बाद हो गया. लोगों में सहानुभूति पैदा हो गई. अतीक जब जेल से बाहर आया तो निये कलेवर में देख उसके समर्थक भी ठगे रह गए.वह अब नेता के चोले में था.बाद के चरणों मे वो विभिन्न चुनावो को लड़ते हुए राज्य स्तर का नेता बन गया . अल्पसंख्यकों में उसकी विशेष पैठ बन गयी.
    फिर आया 2003 . मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी. अतीक सपा का बड़ा चेहरा बन गए. 2004 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर से चुनाव लड़ा. और संसद पहुंच गए. अब जो पुलिस उनको खत्म करना चाहती थी वो उनकी सेवा चाकरी में लग गई. इधर इलाहाबाद पश्चिमी की सीट खाली हुई. अतीक ने अपने भाई खालिद अजीम ऊर्फ अशरफ को मैदान में उतारा. लेकिन जिता नहीं पाए. 4 हजार वोटों से जीतकर विधायक बने बसपा के राजू पाल. वही राजू पाल जिसे कभी अतीक का दाहिना हाथ कहा जाता था. राजू पर भी उस समय 25 मुकदमे दर्ज थे. ये हार अतीक को बर्दाश्त नहीं हुई. अक्टूबर 2004 में राजू विधायक बने. अगले महीने नवंबर में ही राजू के ऑफिस के पास बमबाजी और फायरिंग हुई. लेकिन राजू बच गए. दिसंबर में भी उनकी गाड़ी पर फायरिंग की गई. राजू ने सांसद अतीक से जान का खतरा बताया.
    25 जनवरी, 2005. राजू पाल के काफिले पर हमला किया गया. राजू पाल को कई गोलियां लगीं, जिसके बाद फायरिंग करने वाले फरार हो गए. पीछे की गाड़ी में बैठे समर्थकों ने राजू पाल को एक टेंपो में लादा और अस्पताल की ओर लेकर भागे. इस दौरान फायरिंग करने वालों को लगा कि राजू पाल अब भी जिंदा है. एक बार फिर से टेंपो को घेरकर फायरिंग शुरू कर दी गई. करीब पांच किलोमीटर तक टेंपो का पीछा किया गया और गोलियां मारी गईं. अंत में जब राजू पाल जीवन ज्योति अस्पताल पहुंचे, उन्हें 19 गोलियां लग चुकी थीं. डॉक्टरों ने उनको मरा हुआ घोषित कर दिया. आरोप लगा अतीक पर. राजू की पत्नी पूजा पाल ने अतीक, भाई अशरफ, फरहान और आबिद समेत लोगों पर नामजद मुकदमा दर्ज करवाया. फरहान के पिता अनीस पहलवान की हत्या का आरोप राजू पाल पर था. 9 दिन पहले ही राजू की शादी हुई थी. बसपा समर्थकों ने पूरे शहर में तोड़फोड़ शुरू कर दिया. बहुत बवाल हुआ. राजू पाल की हत्या में नामजद होने के बावजूद अतीक सत्ताधारी सपा में बने रहे. 2005 में उपचुनाव हुआ. बसपा ने पूजा पाल को उतारा. सपा ने दोबारा अशरफ को टिकट दिया. पूजा पाल के हाथों की मेंहदी भी नहीं उतरी थी, और वो विधवा हो गई थीं. लोग बताते हैं. पूजा मंच से अपने हाथ दिखाकर रोने लगती थीं. लेकिन पूजा को जनता का समर्थन नहीं मिला. जनता ने या यूं कहें सपा की सरकार ने अशरफ को चुनाव जितवा दिया.
    साल 2007. इलाहाबाद पश्चिमी से एक बार फिर पूजा पाल और अशरफ आमने सामने थे. इस बार पूजा ने अशरफ को पछाड़ दिया. अतीक का किला ध्वस्त हो चुका था. मायावती की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी. सपा ने अतीक को पार्टी से बाहर कर दिया. मायावती सरकार ने ऑपरेशन अतीक शुरू किया. अतीक को मोस्ट वांटेड घोषित करते हुए गैंग का चार्टर तैयार हुआ. पुलिस रिकॉर्ड में गैंग का नाम है. आईएस ( इंटर स्टेट) 227. उस वक्त गैंग में 120 से ज्यादा मेंबर थे. 1986 से 2007 तक अतीक पर एक दर्जन से ज्यादा मामले केवल गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज किए गए. 2 महीने के भीतर अतीक पर इलाहाबाद में 9, कौशांबी और चित्रकूट में एक-एक मुकदमा दर्ज हुआ. अतीक पर 20 हजार का इनाम घोषित किया गया. उसकी करोड़ों की संपत्ति सीज कर दी गई. बिल्डिंगें गिरा दी गईं. खास प्रोजेक्ट अलीना सिटी को अवैध घोषित करते हुए ध्वस्त कर दिया गया. इस दौरान अतीक फरार रहा. एक सांसद, जो इनामी अपराधी था, उसे फरार घोषित कर पूरे देश में अलर्ट जारी कर दिया गया. मायावती से अपनी जान का खतरा बताया. दबाव सपा मुखिया मुलायम सिंह पर भी था. पार्टी से बाहर कर दिया. एक दिन दिल्ली पुलिस ने कहा, हमने अतीक को गिरफ्तार कर लिया है. दिल्ली के पीतमपुरा के एक अपार्टमेंट से. यूपी पुलिस आई और अतीक को ले गई. जेल में डाल दिया.
   साल 2012. अतीक अहमद जेल में था. विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अपना दल से पर्चा भरा. इलाहाबाद हाईकोर्ट में बेल के लिए अप्लाई किया. लेकिन हाईकोर्ट के 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया. 11वें जज सुनवाई के लिए राजी हुए. और अतीक को बेल दे दी. अतीक के पास गढ़ बचाने का अंतिम मौका था. अतीक खुद पूजा पाल के सामने उतरे. लेकिन जीत नहीं पाए. राज्य में सपा की सरकार बनी और अतीक ने फिर से अपनी हनक बनाने की कोशिश की. 
   फिर आया 22 दिसंबर 2016. अतीक 500 गाड़ियों के काफिले के साथ कानपुर पहुंचा. खुद ‘हमर’ पर सवार था. हमर, जिसकी कीमत उस समय 8 करोड़ बताई गई थी. जिधर से काफिला गुजरता जाम लग जाता. मीडिया में खूब हल्ला मचा. अखिलेश यादव सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके थे. अतीक अब राज्य के सबसे खौफनाक अपराधियों में शामिल हो चुका था.फरवरी 2017 में अतीक को गिरफ्तार कर लिया गया. हाईकोर्ट ने सारे मामलों में उसकी जमानत रद कर दी. इसके बाद से अब तक अतीक जेल में ही है.
   लेकिन कहानी अभी बाकी है . तारीख 26 दिसंबर 2018 . उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ. कुछ गुंडे यहां से एक बिजनेसमैन को किडनैप करते हैं. 300 किलोमीटर दूर देवरिया ले जाते हैं. वो भी ऐसी वैसी जगह नहीं, सीधे जेल में. देवरिया जेल में बिजनेसमैन की पिटाई की जाती है. प्रॉपर्टी के लिए सादे कागज पर साइन करवाया जाता है. पूरी घटना का वीडियो बनता है और सोशल मीडिया पर वायरल हो जाता है .
     बिजनेसमैन जिन्हें पीटा गया वो थे मोहित अग्रवाल. मोहित ने आरोप लगाया. कहा कि उनका अपहरण अतीक अहमद ने करवाया था. जेल में गुर्गों से पिटाई भी करवाई. वारदात के दौरान मोहित ने एक टीवी चैनल से बातचीत में कहा था,"जेल के अंदर ले जाकर मुझे डंडों से मारा गया. 15-20 आदमियों ने पकड़कर मुझे बहुत मारा. 48 करोड़ रुपये की संपत्ति के लिए खाली पेपर पर साइन करवाए गए. मुझसे मेरी एसयूवी छीन ली गई. कहा गया कि तुम जेल के अंदर हो इसलिए तुम्हारी हत्या नहीं हो सकती. नहीं तो मार देते."
    ताजा जानकारी यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अतीक अहमद को गुजरात के अहमदाबाद जेल भेज दिया गया है. योगी सरकार उसे जेल में रखने के लिए गुजरात सरकार को एक लाख रुपये महीना दे रही है.
    अतीक अहमद के खिलाफ जितने केस दर्ज हैं, उनकी सुनवाई अतीक के इस जन्म में पूरा होने से रही. मामले चलते रहेंगे. अतीक की जिंदगी भी कभी इस जेल तो कभी उस जेल में कटती रहेगी. कोई सरकार मेहरबान हुई तो बाहर भी आ सकता है. किसी सरकार में मंत्री बन गया तो अपने ऊपर लगे मामले रद्द भी करवा सकता है. 
    विकास दुबे के एनकाउंटर पर खड़े होते सवालों के बीच यह दास्तान आपसे इसलिए शेयर की है ताकि आप जान सकें कि उत्तर प्रदेश में अपराधियों को सजा नहीं मिलती.उन्हें इज्जत और शौहरत से नवाजा जाता है.अगर गलती से कोई मुकदमा कर भी दे तो हाईकोर्ट के 1 या 2 नहीं बल्कि पूरे 10 जज केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लेते हैं . 
   विकास दुबे के एनकाउंटर पर उसके गांव और मोहल्ले में खुशी का माहौल है लेकिन उसको न जानने वाले सोशल मीडिया पर स्यापा मचाये हैं.हकीकत को समझें. जानें कि एनकाउंटर किन परिस्थितियों में किया गया.

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